Saturday, April 26, 2014

SCIENTIFIC FARMING IS RESPONSIBLE FOR NITROGEN DEFICIENCY.






वैज्ञानिको ने फोड़ा हार का ठीकरा किसानो पर 

ये सही है कि खेतों की उर्वरकता दिन प्रतिदिन कम  हो रही है और  यह भी  सही है कि नरवाई जलाने से  खेतों की उर्वरकता कम होतीं है किन्तु ये कहना  कि इस समस्या के पीछे वे किसान जिम्मेवार हैं जो अपने  खेतोँ मे नरवाई  को जला देते हैं. 
बिना जुताई  गेंहूँ की फसल 

असल में ये दोष वैज्ञानिक खेती का है. वैज्ञानिक किसानो को गर्मियों मे गहरी जुताई करने की सलाह देते हैं उनका कहना है कि धूप  से खेतोँ के कीड़े मर जाते हैं ओर बीमारियों की रोक थाम हो जाती है. ये भ्रान्ती है असल मे मिटटी स्वं  अनेक सुक्ष्म जीवाणुओं क़ा समूह होतीं है. धूप या आग से जीवाणु नस्ट हो जाते हैं ओर मिट्टी मर जातीं है.
सुबबूल के पेड़ों के साथ बिना जुताई गेंहूँ की खेती 

खेतों में नत्रजन की कमी क़ा मुख्य कारण गहरी जुताई और कृत्रिम नत्रजन का उपयोग है। जुताई करने से एक और जहाँ जैविक खाद का छरण होता हैँ वहीं यह खाद गैस बन कर उङ जातीं है। कृत्रिम नत्रजन के उपयोग से नत्रजन को भगाने वाले सूक्ष्म जीवाणु पैदा हो जाते हैं जो कृत्रिम नत्रजन के साथ साथ कुदरती नत्रजन को भी भगा देते हैं। 
पनपती फसल  के ऊपर नरवाई का  ढकाव 


हम अपने खेतों मे पिछले २७ सालों से जुताई के बिना खेती कर रहे हैँ हम सभी कृषि के अवशेषों को जहाँ क तहॉं पडा रहे देते हैँ इस से कुदरती जैविक खाद बन जाती है। हमारे खेतों मे नत्रजन बनानें वाले सूक्ष्म जीवाणुओं  क़ी संख्या  बढ्ती जा रही है। हम अपने अनाज के खेतों मे सुबबूल के पेड़ों की भी खेती करते हैं. सुबबूल जबर्दस्त नत्रजन बनाने वाला पेड़ है। यह अपनी छाया के छेत्र मे लागातार नत्रजन सप्लाई करता रहता है। 


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