Tuesday, June 24, 2014

Misunderstanig about chemical fertilizers and compost.

खाद और उर्वरक के बारे में भ्रान्ति 

क्ले बाल  का दर्शन और विज्ञान 


मारे देश में आज भी अनेक आदिवासी अंचलों में किसान बिना किसी खाद और कम्पोस्ट के खेती कर रहे हैं। अनेक ऐसे स्थान हैं जहाँ पर बरसात का पानी इकठा होता है या बह  कर जाता है वहां आसपास जहाँ कपा (Clay ) इकठा हो जाता है वहां बहुत अधिक पैदावार होती है। किसान वहां बिना जुताई करे केवल बीजों को सीधा छिड़क देते हैं यहाँ की  पैदावार आज के आधुनिकतम सबसे उर्वरक इलाकों में होने वाली पैदावार से कई गुना अधिक रहती है। ऐसा कपे  वाली मिट्टी के कारण होता है। इस मिट्टी के एक कण का  यदि हम सूक्ष्मदर्शी यंत्र की सहायता से अध्यन करें तो पाएंगे की इस मिट्टी में कोई भी रासायनिक पदार्थ या कम्पोस्ट नहीं दिखाई देगा यह मिट्टी में अजैविक तत्व भी बिलकुल नहीं रहते है यह मिट्टी स्वम् असंख्य सूक्ष्म जीवाणुओ का समूह रहता है। ये जीवाणु ही जमीन को उर्वरक बनाते हैं। इन्ही जीवाणुओं   के कारण फसलों को पूरा पोषण मिलता है।
क्ले से बनी बीज गोलियां 
रायगडा की आदिवासी महिलाये सीड बाल बना रही हैं। 

आज भी अनेक आदिवासी अंचलों में झूम खेती देखी जा सकती है इस खेती में किसान जंगल में बदल बदल कर स्थानो पर खेती करते हैं वे पहले वहां हरियाली को पनपने देते हैं फिर उसे साफ़ कर वहां फसलें लेते रहते हैं वे भी जुताई ,खाद, सिंचाई  आदि का बिलकुल उपयोग  नहीं करते हैं।

इसी प्रकार प्राचीन देशी खेती किसानी में भी जहाँ खेत बेलों से जोते जाते हैं वहां किसान कमजोर होते खेत को चरोखरों में तब्दील कर देते हैं और चरोखरों को खेत बना लेते हैं वे भी इस प्रकार बदल बदल कर खेती करते हैं। जिस से हजारों साल खेत ताकतवर और पानी दार बने रहते हैं।

जापान के मस्नोबू फुकुओका जी अब तो वे नहीं रहे वे कई दशकों तक गेंहूँ ,चांवल ,सरसों की सबसे अधिक उत्पादकता और गुणवत्ता वाली खेती बिना जुताई और खाद के करते रहे हैं हम अपने होशंगाबाद स्थित  पारिवारिक फार्म में पिछले २७ सालो  से भी अधिक समय से बिना जुताई और खाद के खेती कर रहे हैं।
सूखा क्ले 

इसलिए हम दावे के साथ कह सकते हैं की खेतीके लिए खाद ,उर्वरक और दवाओं की कोई जरुरत नहीं है इनका उपयोग भ्रान्ति है। असल में खाद और मिट्टी में कोई फर्क नहीं रहता है। इसका निर्माण जमीन पर रहने तमाम जीव जंतु ,कीड़े मकोड़े ,सूक्ष्म जीवाणु ,जानवर और वनस्पतियां से होता है।

गीला क्ले  
असल में किसान जमीन की जुताई कर इस कुदरती खाद को बहा देता है फिर खाद के नाम पर न जाने क्या क्या जमीन में डालता रहता है कोई कहता है गोबर की खाद अच्छी होती है कोई कहता है केंचुओं की खाद अच्छी होती है तो कोई रसायनो की सलाह देता है कोई सूख्स्म जीवाणु से खाद बनाता  है तो कोई गुड और जड़ो बूटियों से खाद बनाने की सलाह देता है कोई झाड़ा फूंकी करवाता है तो कोई हवन करवाता है ये सब मनगढ़ंत टोटके हैं। यदि हम अपने खेतों में स्वं बन रही खाद को नहीं बहाएं तो हमे खाद की कोई जरुरत नहीं है।
सीड बाल से पनपता पौधा 

फसलोत्पादन के लिए की जा रही जमीन की जुताई के कारण खेत खाद मांगते हैं जुताई  करने से बरसात का पानी जमीन में नहीं जाता वह तेजी से बहता है जो खेत की खाद (क्ले ) को बहा कर ले जाता ह। इस कारण खेत भूखे और प्यासे हो होते जा रहे हैं। खाद की मांग के कारण सरकारें कंगाल हो रही हैं।  हमे बहते पानी रोकने की बजाय बहती मिट्टी को रोकने पर ध्यान देने की जरुरत है। बहती मिट्टी रुकेगी तो पानी भी आ जायेगा। 



क्ले जिसे हम कपा कहते हैं जो हरियाली से भरे वनो ,चरोखरों आदि से बह  कर नदी के किनारो ,तालाब की तलहटी आदि में प्राय आसानी से मिल जाता  है जिस से मिट्टी के बर्तन बनते हैं में असंख्य मिट्टी को खटोडा बनाने वाले  जीव जंतु ,सूख्स्म जीवाणुओं के बीज रहते हैं। इस मिट्टी से बीजों को सुरक्षित कर खेतों में फेंकने से न केवल खेती हो जाती है वरन क्ले के जामन (rennet ) से हमारे कमजोर खेत भी अपने आप खटोडे हो जाते हैं। इन सीड बॉल को हम करीब एक फ़ीट के अंतर पर फेंकते है यह  अपने एक फ़ीट के दायरे में नत्रजन आदि किसी भी प्रकार की खाद की कमी नहीं होने देती है।

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