महानगरीय व्यवस्था और ऋषि खेती
विगत दिनों मुझे एक जाने माने N.G.O. ने बेंगलुरु में जो एक महानगर है में ऋषि खेती पर व्याख्यान हेतु आमंत्रित किया था। वहां मैने उन्हें बताया की हम पिछले अनेक वर्षों से अपने फार्म में बने फार्म हॉउस में रहते हैं और कुदरती खेती करते हुए अनाज,सब्जी,दूध ,अंडे पानी ,हवा ,ईंधन आदि को बिना कुछ किए आसानी से प्राप्त कर लेते हैं। हमने अपने फार्म में एक सुबबूल का जंगल भी लगाया है जिस से हमे साल भर पशुओ के लिए चारा और जलाऊ लकड़ी भारी तादात में मिल जाती है जिसे हम गरीब परिवारों को बाजार भाव से आधी कीमत में बेच देते हैं। अधिकतर ये वो परिवार हैं जो रोजगार के लिए गांवों से पलायन कर यहाँ आकर बसें हैं। ये आसपास खाली पड़ी जमीनो पर झुग्गियां बनाकर रहते हैं इन्हे खाने के लिए तो सब कुछ मिल जाता है किन्तु पकाने के लिए ईंधन नहीं मिलता है। इन्हे ईंधन इकठा करने के लिए सप्ताह में कम से कम दो दिन की छुट्टी लेनी पड़ती है फिर भी उनका ईंधन पूरा नहीं हो पाता है।
नगर छोटे हों या बड़े या महानगर सभी जगह आजकल पेट्रोलियम और बिजली आधारित जीवन पद्धति चल रही है। वहां सबसे बड़ी समस्या कुदरती रोटी ,जल ,हवा और ईंधन की है। पैसा होते हुए भी आम आदमी को ये चीजें उपलब्ध नहीं है। बेंगलुरु में लोगों ने मुझ से पुछा की आप तो किस्मत वाले हैं खेत में रहते हैं हमारे पास तो खेत नहीं है हम तो चौथी मंजिल पर रहते हैं हम क्या करें ? मेने कहा गांव में एक चौथाई एकड़ जमीन में रहकर हम अपने जीवन लायक सब कुछ प्राप्त कर सकते है। जिस मकान में आप रहते हैं उस से तो कई एकड़ जमीन आप ले सकते हैं। फिर उन्होंने कहा है हम अपने बच्चों को कहाँ पढ़ाएंगे गांव में तो अच्छे स्कूल हैं ही नहीं मेने कहा की जब हम जमीन और कुदरत की संगति में रहने लगते हैं तो हमारा पर्यावरण ही स्वं: स्कूल बन जाता है महानगरों में बहुत बड़े बड़े स्कूल है क्या वे हमे कुदरत के साथ आत्मनिर्भरता के साथ रहना सिखा रहे हैं यदि ऐसा होता तो यहाँ आत्म निर्भरता होती जो कहीं भी दिखाई नहीं दे रही है।
दूसरा सवाल उन्होंने बताया की महानगरों में बड़े बड़े अस्पताल हैं गांव में यदि बीमार पड़ जायेंगे तो इलाज कैसे होगा ? मैने कहा कुदरती आवो हवा और भोजन स्वम् एक अस्पताल है जिसमे महानगरीय बड़े से बड़ा रोगी भी बिना पैसे के ठीक हो जाता है जबकि महानगर के अस्पताल अब मौत के सौदागर हो गए हैं उनकी फीस को देख कर ही लोग बीमार हो जाते है। इन अस्पतालों में महंगी दवाये और मशीनरी तो रहती है किन्तु कुदरती आवो हवा और भोजन नहीं मिलता है जो हम लोगों के लिए निहायत जरूरी है।
असल में ऋषि खेती कुदरत के मिलकर जीने की ऐसी पद्धति है जिसमे कुदरती आवो हवा और भोजन के साथ साथ हमे सच्चाई और ईमानदारी के साथ जीने का अवसर भी प्राप्त होता है हम एक अच्छे इंसान की जिंदगी जी सकते हैं किन्तु महानगरों में जितना भी पैसा खर्च करो वहां कुदरती आवो हवा और भोजन नसीब नहीं है।सच्चाई और ईमानदारी का वहां भारी अभाव है झूठ और फरेब के बिना लोगों का काम ही नहीं चलता है।
उसी समय एक सज्जन ने कहा की महानगरों में अब कुदरती /जैविक भोजन मिलने लगा है किन्तु वह महंगा है। मैने कहा की कुदरती या जैविक खाना पैदा करने में लागत नहीं के बराबर आती है वह महंगा क्यों है ?
यदि महंगा है तो जानिए असली नहीं है ये एक बहुत बड़ा गोरख धंधा है।
यही कारण है की आजकल अनेक लोग महनगरों को छोड़कर गांवों में जमीन के साथ मिलकर रहने लगे हैं।
एक चौथाई एकड़ में आराम से ५-६ सदस्यों के परिवार का भरण पोषण आसानी से हो जाता है एक सदस्य को एक घंटे से अधिक काम करने की जरुरत नही है। इस खेती में कुछ करना नहीं पड़ता है मात्र मिट्टी की बीज गोलियों को बनाकर यहाँ वहां फेकने मात्र से खेती हो जाती है।
यदि हम आराम से और शांति से जीवन व्यतीत करने चाहते है तो हमे महानगरों को छोड़कर गांवों की तरफ लोटना ही होगा।
1 comment:
Thank you very much sir,
Agree with you Keep posting
Post a Comment