ऋषि -खेती
No-Till Natural Farming
क्या है आमआदमी पार्टी की कृषी नीति ?
आमआदमी पार्टी का आदर्श"सत्य और अहिंसा " है.
भारतीय अहिंसात्मक स्वतंत्रता आंदोलन की लड़ाई भी 'सत्य और अहिंसा ' के मार्ग पर लड़ी गयी थी और स्वराज की स्थापना हुई थी. जिसके नायक महात्मा गांधीजी थे. गांधीजी की निधन के बाद जब 'सत्य और अहिंसा ' के मूल्यों पर आधारित टिकाऊ विकास की बात आयी तो आचार्य विनोबा भावे ने गांधीजी के शिष्य के रूप में इस का बीड़ा उठाया था.
उन्होंने पाया कि असली भारत गांव में रहता है इसलिए गांव के टिकाऊ विकास के बिना देश का विकास नहीं हो सकता और गांव की अर्थ व्यवस्था खेती पर टिकी है इस लिए जब तक खेती आत्म निर्भर नहीं होती जब तक किसान का जीवन स्तर का विकास नहीं हो सकता है और तब तक ना गांव का विकास होगा नाही देश का विकास हो सकता है.
इस लिए उन्होंने ऐसी खेती की खोज के लिए अनुसन्धान करना शुरू कर दिया था.
उन्होंने मशीनो से होने वाली खेती को 'एंजिन ' खेती नाम दिया ,दूसरी खेती जो पशु बल से होती है उसका नाम उन्होंने 'ऋषभ ' खेती रखा तीसरी खेती जिसमे किसान मशीन और पशुबल दोनों के बिना केवल अपने हाथों से खेती करते हैं को उन्होंने 'ऋषि-खेती ' नाम दिया था.
उन्होंने तीनो किस्म की पारम्परिक खेती की विधियों में तुलनात्मक अध्यन कर 'ऋषि-खेती' को "सत्य और अहिंसा " के मूल्यों पर आधारित खेती मान कर सरकार से सही मायने में स्वराज कायम करने के लिए आग्रह किया था.
ऋषि-खेती योजना को लागू करने के पीछे विनोबाजी का सोच था कि देश में जमीनो की कमी नहीं है हम सब अपना खाना स्वम पैदा कर सकते हैं इस से पर्यावरण सुरक्षित रहेगा और किसान का शोषण नहीं होगा, रोजगार की कोई समस्या नहीं रहेगी ,आयातित तेल की कोई जरुरत नहीं रहेगी।
उन्होंने खेती से गांव का विकास ,गांव से देश के विकास के मार्ग का नाम 'सर्वोदय ' रखा था. जो असली स्वराज की भावना से ओत प्रोत था.
इस योजना को भारत सरकार ने ठुकरा दिया और सरकार ने 'असत्य और हिंसा ' पर आधारित "एंजिन खेती " को अपना लिया जो पूरी तरह आयातित तेल की गुलाम है ,जिस से हमारे पर्यावरण का बहुत विनाश हो रहा है ,खेत और किसान मरते जा रहे हैं ,थाली में जहर मिल रहा है .
आज देश में जितनी सरकारे हैं सब हिंसात्मक खेती को ही विकास की कुंजी मान रही हैं.
हम अपने खेतों में पिछले २७ सालो से ऋषि-खेती कर रहे हैं और उसके प्रचार प्रसार में सलग्न हैं. अनेक किसान भारत में और भारत के बाहर इस खेती को करने लगे हैं. इस खेती में' जुताई ' (Plowing ) करने को सबसे बड़ा हिसात्मक काम माना जाता है.
जुताई करने से जमीन की तमाम जैव-विविधताएं मर जाती है ,बरसात का पानी जमीन में नहीं समाता है वह बह जाता है, जिस से एक ओर जमीन के अंदर का जल स्तर गिरता जाता है. सूखा और बाढ़ दोनों इस के कारण है.
आज भी ये खेती दूरदराज आदिवासी इलाकों में देखने को मिलती है. अनेक किसान भिन्न भिन्न प्रांतों में इसे करने लगे हैं. इस खेती को करने से किसान को घाटा नहीं होता है उसको इतना मुनाफा होता है कि उसे सरकार के किसी भी प्रकार के अनुदान की जरुरत नहीं रहती है. `
अमेरिका ,कनाडा ,ब्राज़ील ,आस्ट्रेलया आदि अनेक देशो में No-Till Farming के नाम से ये खेती की जाने लगी है. ये किसान इतने सक्षम हैं कि वे यूनिअन बना कर नए किसानो को अनुदान देते हैं. इन किसानो के बच्चे अब खेती किसानी को छोड़कर नहीं जा रहे हैं.
अब अमेरिका की सरकार ने भी पर्यावरण संरक्षण के लिए इस खेती को बढ़ावा देना शुरू कर दिया है.
ऋषि-खेती एक ईमानदार खेती है. इसका सरकारी स्तर पर प्रचार प्रसार होना चाहिए किन्तु भ्रस्टाचार के चलते ऐसा नहीं हो रहा है. सरकारे ट्रेकटर ,कृषि रसायनो की कम्पनियों को बढ़ावा देने के खातिर इस खेती को बढ़ावा नहीं दे रही हैं.
इस लिए हमारा निवेदन है कि ऐसी सरकार चुनी जाये जो "सत्य और अहिंसा " के आदर्श को मानती हैं. जो ऋषि-खेती को बढ़ावा देतीं हैं. जिनकी आर्थिक नीति पर्यावरण के संवर्धन पर आधारित हैं. जो प्रदूषणकारी हिंसात्मक उधोगधंदों के खिलाफ है. rajuktitus@gmail.com.
No-Till Natural Farming
क्या है आमआदमी पार्टी की कृषी नीति ?
आमआदमी पार्टी का आदर्श"सत्य और अहिंसा " है.
भारतीय अहिंसात्मक स्वतंत्रता आंदोलन की लड़ाई भी 'सत्य और अहिंसा ' के मार्ग पर लड़ी गयी थी और स्वराज की स्थापना हुई थी. जिसके नायक महात्मा गांधीजी थे. गांधीजी की निधन के बाद जब 'सत्य और अहिंसा ' के मूल्यों पर आधारित टिकाऊ विकास की बात आयी तो आचार्य विनोबा भावे ने गांधीजी के शिष्य के रूप में इस का बीड़ा उठाया था.
उन्होंने पाया कि असली भारत गांव में रहता है इसलिए गांव के टिकाऊ विकास के बिना देश का विकास नहीं हो सकता और गांव की अर्थ व्यवस्था खेती पर टिकी है इस लिए जब तक खेती आत्म निर्भर नहीं होती जब तक किसान का जीवन स्तर का विकास नहीं हो सकता है और तब तक ना गांव का विकास होगा नाही देश का विकास हो सकता है.
इस लिए उन्होंने ऐसी खेती की खोज के लिए अनुसन्धान करना शुरू कर दिया था.
उन्होंने मशीनो से होने वाली खेती को 'एंजिन ' खेती नाम दिया ,दूसरी खेती जो पशु बल से होती है उसका नाम उन्होंने 'ऋषभ ' खेती रखा तीसरी खेती जिसमे किसान मशीन और पशुबल दोनों के बिना केवल अपने हाथों से खेती करते हैं को उन्होंने 'ऋषि-खेती ' नाम दिया था.
उन्होंने तीनो किस्म की पारम्परिक खेती की विधियों में तुलनात्मक अध्यन कर 'ऋषि-खेती' को "सत्य और अहिंसा " के मूल्यों पर आधारित खेती मान कर सरकार से सही मायने में स्वराज कायम करने के लिए आग्रह किया था.
ऋषि-खेती योजना को लागू करने के पीछे विनोबाजी का सोच था कि देश में जमीनो की कमी नहीं है हम सब अपना खाना स्वम पैदा कर सकते हैं इस से पर्यावरण सुरक्षित रहेगा और किसान का शोषण नहीं होगा, रोजगार की कोई समस्या नहीं रहेगी ,आयातित तेल की कोई जरुरत नहीं रहेगी।
उन्होंने खेती से गांव का विकास ,गांव से देश के विकास के मार्ग का नाम 'सर्वोदय ' रखा था. जो असली स्वराज की भावना से ओत प्रोत था.
इस योजना को भारत सरकार ने ठुकरा दिया और सरकार ने 'असत्य और हिंसा ' पर आधारित "एंजिन खेती " को अपना लिया जो पूरी तरह आयातित तेल की गुलाम है ,जिस से हमारे पर्यावरण का बहुत विनाश हो रहा है ,खेत और किसान मरते जा रहे हैं ,थाली में जहर मिल रहा है .
आज देश में जितनी सरकारे हैं सब हिंसात्मक खेती को ही विकास की कुंजी मान रही हैं.
हम अपने खेतों में पिछले २७ सालो से ऋषि-खेती कर रहे हैं और उसके प्रचार प्रसार में सलग्न हैं. अनेक किसान भारत में और भारत के बाहर इस खेती को करने लगे हैं. इस खेती में' जुताई ' (Plowing ) करने को सबसे बड़ा हिसात्मक काम माना जाता है.
ऋषि-खेती गेंहूं |
जुताई करने से जमीन की तमाम जैव-विविधताएं मर जाती है ,बरसात का पानी जमीन में नहीं समाता है वह बह जाता है, जिस से एक ओर जमीन के अंदर का जल स्तर गिरता जाता है. सूखा और बाढ़ दोनों इस के कारण है.
आज भी ये खेती दूरदराज आदिवासी इलाकों में देखने को मिलती है. अनेक किसान भिन्न भिन्न प्रांतों में इसे करने लगे हैं. इस खेती को करने से किसान को घाटा नहीं होता है उसको इतना मुनाफा होता है कि उसे सरकार के किसी भी प्रकार के अनुदान की जरुरत नहीं रहती है. `
अमेरिका ,कनाडा ,ब्राज़ील ,आस्ट्रेलया आदि अनेक देशो में No-Till Farming के नाम से ये खेती की जाने लगी है. ये किसान इतने सक्षम हैं कि वे यूनिअन बना कर नए किसानो को अनुदान देते हैं. इन किसानो के बच्चे अब खेती किसानी को छोड़कर नहीं जा रहे हैं.
अब अमेरिका की सरकार ने भी पर्यावरण संरक्षण के लिए इस खेती को बढ़ावा देना शुरू कर दिया है.
ऋषि-खेती एक ईमानदार खेती है. इसका सरकारी स्तर पर प्रचार प्रसार होना चाहिए किन्तु भ्रस्टाचार के चलते ऐसा नहीं हो रहा है. सरकारे ट्रेकटर ,कृषि रसायनो की कम्पनियों को बढ़ावा देने के खातिर इस खेती को बढ़ावा नहीं दे रही हैं.
इस लिए हमारा निवेदन है कि ऐसी सरकार चुनी जाये जो "सत्य और अहिंसा " के आदर्श को मानती हैं. जो ऋषि-खेती को बढ़ावा देतीं हैं. जिनकी आर्थिक नीति पर्यावरण के संवर्धन पर आधारित हैं. जो प्रदूषणकारी हिंसात्मक उधोगधंदों के खिलाफ है. rajuktitus@gmail.com.
1 comment:
यह एक बहुत ही जानकारीपूर्ण और ज्ञानवर्धक सामग्री है, जो कृषि उत्पादकता को बढ़ाने में मदद करता है, इसे साझा करने के लिए धन्यवाद।
https://www.merikheti.com/prakritik-kheti-ya-natural-farming-me-jal-jungle-jameen-sang-insaan-ki-sehat-se-jude-hain-raaj/
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