मशीनी जुताई और जहरीले रसायनो का दोष
"हरित क्रांति " के लिए ये कहते नहीं थकतीं नहीं हैं सरकारें कि पहले देश में लोग भूख से मर रहे थे अब हम इतना पैदा करने लगे हैं कि दूसरे देशों को भी भेजने लगे हैं.
ये सही है कि देश में चावल और गेंहूं इतना पैदा होने लगा है कि इसको रखने की जगह नहीं है. वह सड़ने लगा है. इस लिए सरकार इसे सस्ते दाम पर बटवा रही है.
किन्तु स्थिती इसके विपरीत है जो अनाज सरकारें किसानो से भारी अनुदान और सस्ते कर्ज को देकर पैदा करवा रही है इसमें भारी गुणवत्ता की कमी है और यह रासायनिक प्रदूषण के कारण खाने लायक नहीं रहा है. बेस्वाद है ,इसको खाने से एक और जहाँ पेट नहीं भरता है वहीं मज़दूर वर्ग यह कहता है कि पहले हम दो रोटी खाकर दिन भर बिना थके काम कर लेते थे अब आठ रोटी खाकर भी नहीं कर सकते हैं. महिलाओं और बच्चों में कुपोषण का भी यही कारण है. मधुमेह और ब्लडप्रेशर आम होने लगा हैं. ये बीमारी अब महनतकश लोगों और कम उम्र के लोगों में दिखाई दे रही है. सच पूँछें तो आम लोग इस अनाज को खाकर भूख से मर रहे हैं.
इसका कारण सरकार द्वारा गेरकुदरती भ्रस्ट खेती को बढ़ावा देना है.
जिसमे जमीन की जुताई , जहरीले रसायनो का उपयोग ,गेरकुदरती बीजों का उपयोग आदि मुख्य हैं. खेती करने के लिए जब जमीन की जुताई की जाती है तब खेतों की हरियाली और जैविकता नस्ट हो जाती है बरसात के पानी से खेत में कीचड बन जाती है जो बरसात के पानी को जमीन के भीतर नहीं जाने देती है जिस के कारण पानी तेजी से बहता है अपने साथ खेत की जैविक खाद को भी बहाकर ले जाता है. इस से हर साल खेत कमजोर होते जाते हैं कमजोर खेतों में कमजोर फसलें पैदा होती हैं जिसे खाने से पेट नहीं भरता है लोग भूख से मरने लगे हैं।
ये हर आमआदमी जानता है पर उसके पास विकल्प नहीं है सरकारें किसानो के नाम से जुताई की मशीनो और जहरीले रसायनो को बनाने वाली कम्पनियों को लाभ पहुँचाने के लिए भारी अनुदान दे रही हैं यह सबसे बड़ा भ्रस्टाचार है.
हम पिछले २७ सालो से जुताई और जहरीले रसायनो के बिना निर्विवाद खेती कर रहे है इस से हमे बिना सरकारी अनुदान कुदरती आहार मिल रहा है जो स्वादिस्ट है ,गुणकारी है जो केंसर जैसी बीमारी को भी ठीक कर देता है. -ऋषि- खेती
"हरित क्रांति " के लिए ये कहते नहीं थकतीं नहीं हैं सरकारें कि पहले देश में लोग भूख से मर रहे थे अब हम इतना पैदा करने लगे हैं कि दूसरे देशों को भी भेजने लगे हैं.
ये सही है कि देश में चावल और गेंहूं इतना पैदा होने लगा है कि इसको रखने की जगह नहीं है. वह सड़ने लगा है. इस लिए सरकार इसे सस्ते दाम पर बटवा रही है.
किन्तु स्थिती इसके विपरीत है जो अनाज सरकारें किसानो से भारी अनुदान और सस्ते कर्ज को देकर पैदा करवा रही है इसमें भारी गुणवत्ता की कमी है और यह रासायनिक प्रदूषण के कारण खाने लायक नहीं रहा है. बेस्वाद है ,इसको खाने से एक और जहाँ पेट नहीं भरता है वहीं मज़दूर वर्ग यह कहता है कि पहले हम दो रोटी खाकर दिन भर बिना थके काम कर लेते थे अब आठ रोटी खाकर भी नहीं कर सकते हैं. महिलाओं और बच्चों में कुपोषण का भी यही कारण है. मधुमेह और ब्लडप्रेशर आम होने लगा हैं. ये बीमारी अब महनतकश लोगों और कम उम्र के लोगों में दिखाई दे रही है. सच पूँछें तो आम लोग इस अनाज को खाकर भूख से मर रहे हैं.
इसका कारण सरकार द्वारा गेरकुदरती भ्रस्ट खेती को बढ़ावा देना है.
जिसमे जमीन की जुताई , जहरीले रसायनो का उपयोग ,गेरकुदरती बीजों का उपयोग आदि मुख्य हैं. खेती करने के लिए जब जमीन की जुताई की जाती है तब खेतों की हरियाली और जैविकता नस्ट हो जाती है बरसात के पानी से खेत में कीचड बन जाती है जो बरसात के पानी को जमीन के भीतर नहीं जाने देती है जिस के कारण पानी तेजी से बहता है अपने साथ खेत की जैविक खाद को भी बहाकर ले जाता है. इस से हर साल खेत कमजोर होते जाते हैं कमजोर खेतों में कमजोर फसलें पैदा होती हैं जिसे खाने से पेट नहीं भरता है लोग भूख से मरने लगे हैं।
ये हर आमआदमी जानता है पर उसके पास विकल्प नहीं है सरकारें किसानो के नाम से जुताई की मशीनो और जहरीले रसायनो को बनाने वाली कम्पनियों को लाभ पहुँचाने के लिए भारी अनुदान दे रही हैं यह सबसे बड़ा भ्रस्टाचार है.
हम पिछले २७ सालो से जुताई और जहरीले रसायनो के बिना निर्विवाद खेती कर रहे है इस से हमे बिना सरकारी अनुदान कुदरती आहार मिल रहा है जो स्वादिस्ट है ,गुणकारी है जो केंसर जैसी बीमारी को भी ठीक कर देता है. -ऋषि- खेती
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