भूकम्प और हरयाली
बिना जुताई की कुदरती खेती से भूकम्प जैसी समस्याओं को टाला जा सकता है।
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जब से हमने विकास का दामन थामा है तब से हम लगातार हरे भरे भू भागों को रेगिस्तान में बनाने में लगे हैं। यही कारण है अब हम भूकम्प जैसे संकटों में फसते जा रहे हैं।
एक समय था जब हम आदिवासियों की तरह रहते थे उस समय हमारे चारों तरफ घने जंगल हुआ करते थे। तब भूकम्प की कोई समस्या नहीं थी। आज भी जंगलों में भूकम्प पता नहीं चलते हैं।
अभी जो भूकम्प आया उसमे भी यही बात देखने को मिली की हरे भरे भू भाग इस भूकम्प से अछूते रहे हैं। हम पिछले अनेक सालो से बिना जुताई की खेती कर रहे हैं। इस से पहले हम जुताई आधारित खेती कर रहे थे इस से हमारे खेत हरियाली विहीन मरुस्थलों में तब्दील हो गए थे जो अब पूरी तरह हरे भरे वृक्षों से भर गए हैं।
हमारा मानना है की हरियाली के बल पर हम एक और जहाँ भूकम्प समस्याओं को नियंत्रित कर सकते हैं वहीँ हम खेती किसानी से जुडी समस्याओं को भी हल कर सकते हैं। दोनों समस्याएं एक दुसरे से जुडी हैं।
इसके लिए हमे बड़े व्यापक पैमाने पर मरुस्थलों को हरा भरा बनाने की जरूरत है जापान के जाने माने कुदरती मस्नोबू फुकूओकाजी इस काम के जानकार रहे हैं। उनकी लिखी यह किताब जग प्रसिद्ध है।
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