Wednesday, April 29, 2015

भूकम्प और हरयाली

भूकम्प और  हरयाली 

बिना जुताई की कुदरती खेती से भूकम्प जैसी समस्याओं को टाला  जा सकता है। 

भूमि के  पोषण और बंधन में सबसे बड़ा हाथ हरियाली का है।  जितनी अधिक हरियाली रहती है उतनी ही अधिक जड़ें  जमीन के अंदर रहती है जो जमीन को गहराई तक और सघनता  से धरती को पकड़ कर रखती उसे हिलने नहीं  देती हैं।   भूकम्प आते हैं तो ये जड़ें कम्पन को सोख लेती हैं। यही कारण है की जंगलों में भूकम्प का कोई असर नहीं होता है।

 जब से हमने विकास का दामन  थामा है  तब से हम लगातार  हरे भरे भू  भागों को रेगिस्तान में बनाने में लगे हैं।  यही कारण है अब हम भूकम्प जैसे संकटों में फसते  जा रहे हैं।

एक समय था जब हम आदिवासियों की तरह रहते थे उस समय हमारे चारों तरफ घने जंगल हुआ करते थे। तब भूकम्प की कोई समस्या नहीं थी।  आज भी जंगलों में भूकम्प पता नहीं चलते हैं।

अभी जो भूकम्प आया उसमे भी यही बात देखने को मिली की हरे भरे भू भाग इस भूकम्प से अछूते रहे हैं।  हम पिछले अनेक सालो से बिना जुताई की खेती कर रहे हैं। इस से पहले हम जुताई आधारित खेती कर रहे थे इस से हमारे खेत हरियाली विहीन मरुस्थलों में तब्दील हो गए थे जो अब पूरी तरह हरे भरे वृक्षों से भर गए हैं।

हमारा मानना है की हरियाली के बल पर हम एक और जहाँ भूकम्प  समस्याओं को नियंत्रित कर सकते हैं वहीँ हम खेती किसानी से जुडी समस्याओं को भी हल कर सकते हैं। दोनों समस्याएं एक दुसरे से जुडी हैं।

इसके लिए हमे बड़े व्यापक पैमाने पर मरुस्थलों को हरा भरा बनाने की जरूरत है जापान के जाने माने कुदरती  मस्नोबू फुकूओकाजी इस काम के जानकार रहे हैं। उनकी लिखी यह किताब जग प्रसिद्ध है। 

No comments: