हमे स्मार्ट सिटी की नहीं स्मार्ट खेतों की जरूरत है।
खेतों के सुधार के बिना नहीं रुकेंगी किसानो की आत्म हत्याएं।
बिना जुताई की कुदरती खेती है समाधान।
भारतीय परंपरागत खेती किसानी में जमीन की जुताई को फसलों के उत्पादन के लिए बहुत हानिकारक माना जाता रहा है। इस से खेतों की उर्वरकता और जलधारण शक्ति पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इसलिए किसान अपने खेतों को कुछ सालो के लिए पड़ती कर दिया कर देते थे जिस खेत हरियाली के कारण उपजाऊ और पानीदार बन जाते थे।
आदिवासी अंचलों में आज भी झूम खेती देखि जा सकती है इस खेती में किसान हरियाली को बचाकर खेतों को उर्वरक और पानीदार बना लेते हैं। छत्तीसगढ़ की उतेरा खेती में किसान बिना जुताई करे अनाजों को सीधा फेंक कर फैसले आज भी लेते दिख जायेंगे उसी प्रकार उतराखंड में हिमालय पर आज भी बारहनजी खेती को देखा जा सकता है , ये खेती करने की विधियां स्व किसानो ने विकसित की हैं जो आज तक जीवित हैं।
जबकि विज्ञान पर आधारित "हरित क्रांति " अब दम तोड़ रही है. इसके कारण खेत मरुस्थलों में तब्दील हो गए है किसान आत्म हत्या कर रहे हैं।
इस समस्या का हल कर्जों ,मुआवजों और अनुदानों से संभव नहीं है। इस समस्या के समाधान के लिए फसलोत्पादन के लिए की जारही जमीन की जुताई ,खादों और दवाओं की बिलकुल जरूरत नहीं है बल्कि इनके उपयोग से किसान कर्जदार हो रहे हैं कर्ज नहीं अदा कर पाने के कारण वे आत्म हत्या कर रहे हैं।
कृषि वैज्ञानिकों का कहना है हरित क्रांति अजैविक है इसलिए अब हमे जैविक खेती को अमल में लाना होगा किन्तु जैविक खेती और अजैविक खेती दोनों एक सिक्के के दो पहलू हैं। हमे जरूरत है स्मार्ट खेतों की जैसे जंगल जहां जुताई ,खाद और दवाइयों के बिना सब कुछ अच्छा होता है।
स्मार्ट खेती अहिंसा पर आधारित है जबकि जैविक और अजैविक खेती जुताई (हिंसा ) पर आधारित है। जब हम अपने खेतों में नींदों ,कीड़े मकोड़ों ,जीव जंतुओं और सूक्ष्म जीवाणुओं को बचाते हैं खेत अपने आप ताकतवर हो जाते हैं। ताकतवर खेतों में ताकतवर फसलें होती है जिनकी उत्पादकता और गुणवत्ता सर्वोपरि रहती है।
स्मार्ट खेती का आविष्कार जापान के जाने माने कुदरती किसान ने किया है जिसे उन्हें अनेक वर्षों तक कर दुनिया को दिखा दिया की वैज्ञानिक खेती कितनी नुक्सान दायक हैं। होशंगाबाद के हमारे (टाइटस ) फार्म में हम विगत २८ सालो से स्मार्ट खेती कर रहे हैं।
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