Sunday, April 5, 2015

कुदरती शिक्षा

कुदरती शिक्षा 

जकल शिक्षा का मतलब बदल गया है। शिक्षा अब केवल पूंजिपतयों के व्यवसायों को चलाने  के काम की रह गयी है। आधार ,मोबाइल और बैंक खाता जरूरी समझा जा रहा है किन्तु इस से किस को फायदा है इसका लाभ उधोग जगत उठा रहा है।  जो लोग जंगलों में रह रहे हैं महानगरीय शिक्षा से वंचित हैं वे फिर भी सुखी हैं। वो कुदरती खान पान और हवा का सुख भोग रहे हैं किन्तु जो लोग महानगरों में  है वे कुदरती खान पान से तो वंचित हैं तथा बेरोजगारी ,गरीबी और महामारियों के बोझ तले  दबे हैं।

इसका मतलब यह नहीं है की जंगलों में रहने वालों को शिक्षा नहीं मिलना चाहये यह उनका जन्म सिद्ध अधिकार है किन्तु यदि वह नहीं मिल रही है तो उनको चिंता करने की जरूरत नहीं है क्योंकि शिक्षा का अब मतलब बदल गया है।  सबसे अच्छी शिक्षा हमारे अपने पर्यावरण  के अनुकूल हमारे रहन सहन  और अपनी मात्र भाषा के अनुसार हमारे लिए होना चाहये। महानगरों में जो अंग्रेजी जानता  है वही  पढ़ा लिखा समझा जाता है यह गलत है। इस से हमारा शोषण हो रहा है।

जंगल आज भी  आत्मनिर्भर महाज्ञान से भरे हैं हमे उसे सही तरीके से जी सकें उसमे ही हमारी भलाई है हमे महानगरों की और ललचाई निगाह से ताकने की जरूरत नहीं है जंगल स्वर्ग हैं वहीँ महानगर अब नरक में तब्दील होते जा रहे हैं।

आधुनिक वैज्ञानिक खेती से हजार गुना अच्छी जंगलों में होने वाली बेगा , झूम, बारह अनाजी और उतेरा  खेती हैं।  जिनमे प्रदूषण बिलकुल नहीं हैं इनसे जल वायु संरक्षित रहती है जबकि आधुनिक वैज्ञानिक खेती से जलवायु परवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग पनप  रही है।  इसी प्रकार जंगलों में बीमारी और इलाज नाम की कोई चीज नहीं होती है।  वहां का रहन सहन अपने आप स्वास्थ प्रद है जबकि महानगरों में मलेरिया ,डेंगू ,स्वानफलु ,कैंसर महामारियों बन रही हैं।  नकली डाक्टरों और दवाओं का मकड़जाल जनता को चूस रहा है। जबकि जंगली हवा ,पानी और आहार खुद डाक्टर और दवा हैं।




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