Saturday, April 4, 2015

पर्यावरणीय संरक्षित भूमि को बचाने की अपील

पर्यावरणीय संरक्षित भूमि को बचाने की अपील 

वन ,स्थाई कुदरती चरोखरों ,बिना जुताई के खेतों और बाग  बगीचों को बढ़ावा दिया जाये। 

कुदरती खान पान और हवा हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है जिस से हम वंचित हो रहे हैं। 

गैर कुदरती खेती ,कल-कारखानो  और वाहनो पर रोक  लगाई  जाये। 

मारे देश में पर्यावरण प्रदूषण ,मौसम परिवर्तन ,गर्माती धरती , ग्रीन हॉउस गैसों का उत्सर्जन ,सूखा और बाढ़ की समस्या दिन प्रति दिन बढ़ती जा रही है। इसका सीधा सम्बन्ध जुताई आधारित रासायनिक  खेती , प्रदूषण फैलाने वाले कल कारखानो, तेलचलित वाहनो ,सड़कों और बड़े बांधों से है।

अनेक महानगरों में तो पर्यावरण प्रदूषण इस हद तक बढ़ गया है की लोगों को सांस लेना  दूभर हो गया है। अनेक स्थान ऐसे हैं जहां सूखे के कारण फसलें पैदा होना बंद हो गयी हैं।  अनेक स्थान ऐसे हैं जहां बेमौसम इतनी बरसात हो रही है की लोग आये दिन भूस्खलन और बाढ़ से परेशान हो रहे हैं। ज्वारभाटों के कारण समुद्र के किनारे रहने वाले लोग आये दिन परेशान हो रहे हैं।

इन  समस्याओं की जड़ में पिछले हजारों से चल रहा गैरपर्यावरणीय विकास है। इसी तारतम्य में भारत सरकार ने पुन : विकास के नाम पर नया भूमिअधिग्रहण बिल बनाया है। जिसके माध्यम से अनेक ऐसे काम किए जाने हैं जिनसे हमारा पर्यावरण और अधिक प्रभावित होने वाला है। इन कार्यों के लिए यह दलील दी जा रही है की हमारे देश में किसानो की आर्थिक स्थिती  ठीक नहीं है उन्हें और अनेक पढेलिखे बेरोजगारों को रोजगार उपलब्ध करना सरकार की जवाबदारी  है इसलिए भूमि को अधिग्रहित कर उन पर कल कारखाने आदि लगाये जायेंगे जिस से रोजगार के अवसर उपलब्ध हो सकें।

वैसे सरसरीतोर पर सरकार का यह कहना सही लगता है की जो देश अभी तक हमारे जल,जंगल और जमीन पर आश्रित था वह अब उनकी कमी के कारण समस्यों से ग्रसित हो गया है इसलिए किसानो की  माली हालत और बढ़ते पढे लिखे लोगों की बेरोजगारी की समस्या एक बहुत बड़ी मुसीबत बन गया है उसका हल जरूरी है। किन्तु प्रश्न यह उठता है की क्या हमारे पर्यावरण  की अनदेखी का असर हमारे कलकरखानो और वहां करने वालों पर नहीं पड़ेगा।

 उदाहरण के तोर पर दिल्ली और गुजरात को देखिये जो देश के  सबसे विकसित प्रदेश है वहां पीने का पानी उपलब्ध नहीं है ,सांस लेने के लिए मिलने वाली मुफ्त हवा नहीं मिल रही है। इस समस्या को कलकरखानो से नहीं दूर किया जा सकता है बल्कि  उनसे यह समस्या और बढ़ेगी।

इस समस्या का सीधा और सबसे सरल उपाय यह है की हरियाली को बढ़ाया  जाये जहां कहीं भी हरियाली के साधन उपलब्ध हैं उन्हें बचाने की जरूरत है। जैसे कुदरती वन छेत्र ,स्थाई बाग़ बगीचे ,स्थाई चरोखरें, बिना जुताई के खेत आदि। असल में होना तो यह चाहिए  की पर्यावरणीय इन छेत्रों  को बढ़ावा देने  के लिए सरकार को कुछ प्रलोभन देना चाहिए जो अभी तक सरकार नहीं कर रही है दूसरा सरकार को विकास के लिए उन तमाम छेत्रों को जिनसे हमारा पर्यावरण दूषित हो रहा है जैसे प्रदूषण फैलाने वाले कल कारखाने ,जुताई  आधारित रासायनिक खेती ,बड़े बाँध आदि पर रोक लगाने  जरूरत है।

हम पर्यावरणीय भूमि को अधिग्रहित कर उन्हें प्रदूषित करने वाले कार्यों में  उपयोग लाने  के पक्षधर नहीं है।
कुदरती खान ,पान और हवा हमारा  जन्म सिद्ध अधिकार है उसे हम अब नहीं छोड़ सकते हैं। सरकार को कोई भी भूमि को अधिग्रहित  करने से पूर्व हमे इस बात की गारंटी देने की जरूरत है।






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