Wednesday, October 1, 2014

बकरी और बंदर के दिमाग से चलें !

बकरी और बंदर के दिमाग से चलें !
"हरी पत्तियों के रस से हर बीमारी का इलाज करें "


ज कल हम डॉक्टरों के युग में जी  रहे हैं।  हर  किसी चीज़  के आज कल ढेरों डाक्टर उपलब्ध हैं। हमारी बीमारियों के  असंख्य डाक्टर हैं कोई एलोपेथी का डाक्टर है तो कोई नेचरोपैथी  का डाक्टर है तो कोई आयुर्वेद का डाक्टर है।  कोई कहता है की बस झाड़ा फूंकी ही सही इलाज है।
इन पेथियों  के चक्कर में फंस कर हैं  कितना पैसा और समय बर्बाद कर देते हैं और नतीजा सिफर ही निकलता है।
असल में हमारा शरीर ही सब से बड़ा डाक्टर है उसे बस कुदरती खान पान और हवा चाहिए।   वह अपने आप  अपना इलाज कर लेता है जब कुछ  कमी हो जाती है हमारा शरीर  अनेक  व्याधियों में फंस जाता है। हम सीधे डाक्टर के पास चले जाते हैं जो हमे गैर कुदरती दवाइयाँ देना शुरू कर देते हैं जिस से हमारा शरीर और कमजोर जाता है ठीक नहीं होने पर डाक्टर लोग दवाइयाँ बदलते जाते हैं जिस से बीमारियां बे काबू हो जाती हैं। डाक्टर इसे कैंसर बताने लगते हैं।

  यह डाक्टरी का बाज़ार हमारी गलतियों के कारण पनप रहा है। एक बार हमारे ऋषि खेती फार्म को देखने केनेडा से एक डॉ दम्पति आये उन्होंने बतया की उनकी माताजी को कैंसर हो गया था जब  इलाज के लिए कहा तो उन्होंने मना  कर दिया और अपने गाँव में कुदरती खान ,पान ,हवा पर अपने को आश्रित कर लिया  इस से वे मात्र महीने भर में स्वस्थ अनुभव करने लगीं।  उन्होंने शहर में आकर डाक्टरों से कहा की मुझे कैंसर नहीं है डाक्टरों ने उनका पेट खोलकर चेक किया तो कैंसर नदारत था।
मेने उस डाक्टर दम्पति से कहा जो हमारे यहाँ ऋषि खेती देखने आये थे आपने  अपनी माँ  को बिना दवाई से कैंसर से ठीक होते देखा है क्या  ?आप कह सकते हैं कि   कैंसर जैसी बीमारी कुदरती खान पान से ठीक हो सकती है तो  'उन्होंने कहा नहीं '  हमने देखा है पर पढ़ा नहीं है '  इस लिए हम यह नहीं कह सकते की यह इलाज है।  
हम पिछले २८ सालो से अपने खेतों में उन तमाम वनस्पियों को  बचा रहे है जो अपने आप कुदरती उगती हैं  जिन्हे आम किसान कचरा,नींदा  या खरपतवार कहता है। इनमे जंगली ,अर्ध जंगली और कुछ पालतू वनस्पतियां रहती है। इन वनस्पतियों में असंख्य वनस्पतियां बकरियां और बंदर को बहुत पसंद रहती हैं।

हम वनस्पतियों की पत्तियों को तोड़ कर उनका रस  (जूस ) निकाल लेते हैं  इस रस  को हमारे परिवार में किसी को भी कोई भी बीमारी हो पिला देते हैं।  यह रस असल  में ग्रीन ब्लड के जैसा  होता है जो पेट में पहुँच कर खून को शक्ति  प्रदान करता है  जिस से कमजोर शरीर को तुरंत लाभ होता हो जाता है और बीमारी ठीक हो जाती है।
बहुवर्षीय कुदरती वृक्षों की पत्तियां बहुत लाभ प्रद रहतीं हैं।  
इस रस को तैयार करते समय केवल इस बात का ध्यान रखा जाता है की यह पत्तियां बंदर और बकरियों के खाने लायक हैं या नहीं। बंदर और बकरियां जब स्वतंत्र विचरण करते हैं चुन चुन कर पत्तियां ,फल ,सब्जियां आदि का सेवन करते हैं।

ऋषि खेती में जमीन की जुताई ,रसायनो और मानव निर्मित किसी भी प्रकार के खाद का सेवन नहीं किया   जाता है फसलें हमेशा जंगलों में अपने आप उगने वाली वनस्पतियों की तरह उगाई जाती है। बीजों को कपे  वाली (क्ले ) से कोटिंग कर बीज गोलियां बनाई जाती हैं उन्हें कुदरती वनस्पतियों के ढकाव में छिड़क दिया जाता है कहीं कहीं सीधे बीजों को भी छिड़क दिया जाता है। इस प्रकार  ऋषि खेती की फसलें सभी कुदरती हो जाती हैं जो मानव शरीर को स्वस्थ रखने में बहुत उपयोगी सिद्ध हो रही हैं। ऋषि खेती की फसलें  बहुत ताकतवर रहती हैं उनमे बीमारियों का कोई प्रकोप नहीं नहीं रहता है। असंख्य जीव जंतु ,वनस्पतियों के अवशेषों के कारण इनकी रोगनिरोग छमता बढ़ती जाती है। 

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