कैसे करें ? ऋषि खेती
जब से आधुनिक वैज्ञानिक खेती में लगातार घाटा होने लगा है और किसान जैविक खेती करके भी संतुस्ट नहीं हो रहे हैं तब से हमारे पास आये दिन अनेको लोग फोन कर पूछने लगे हैं की हम कैसे ऋषि खेती करें ? अनेक लोग देश विदेश से बहुत कस्ट उठाकर यहाँ तक केवल यही जानने के लिए आते हैं की आखिर यह खेती होती कैसे है ?
ऋषि खेती "कुछ मत करो " के मूल सिद्धांत पर आधारित है। गीताजी में लिखा है की कर्म जब कुदरत के विरुद्ध हो जाता है वह कुकर्म में तब्दील हो जाता है। इसलिए अकर्म (कुछ मत करो ) को बहुत महत्त्व दिया गया है।
हमारे देश में आज भी ऐसे उदाहरण देखने को मिल जायेंगे जिसमे किसान एक साथ कई किस्म के बीजों को मिलकर बरसात से पहले सीधे फेंक भर देते हैं और साल भर फसलें काटते रहते हैं। इन विधियों को झूम या बेगा खेती के नाम से जाना जाता है। यह विधि आदिवासी अंचलों में देखी जा सकती है। इससे किसान हजारों साल आत्म निर्भर रहते आये हैं।
बेगा या झूम खेती की खासियत यह है की ये किसान बिजली और पेट्रोलियम के बिना ,जुताई ,खाद और दवाइयों के बिना खेती करते हैं। ये पहले हरियाली के भूमि ढकाव को बचाते हैं जिस से हरयाली के साथ असंख्य धरती की जैव विविधतायें पनप जाती है। जिस से धरती उर्वरक बन जाती है उसमे नमी का संचार हो जाता है। फिर इस हरयाली को काटकर वहीं डाल दिया जाता है सूख जाती है उसे जला दिया दिया जाता है जिस से जमीन बीज बोने लायक बन जाती है। उसमे अनेक बीजों को एक साथ सीधा बरसात आने से पहले छिड़क दिया जाता है। इस से सब बीज उग जाते हैं फिर एक एक कर फसलें काटी जाती हैं। किसान केवल तीन साल तक इस जमीन पर फसलें उगाते हैं फिर दुसरे जमीन के टुकड़े को तैयार कर लेते हैं। पुराने जमीन के टुकड़े को पुन : हरयाली पनपने के लिए छोड़ दिया जाता हैं।
ऋषि खेती का भी यही आधार है फर्क केवल इतना है इसमें हरियाली को जलाया नहीं जाता है उसे वहीं रहने दिया दिया जाता है इसलिए जमीन को बदलने की जरुरत नहीं रहती है बीजों को सुरक्षित करने के लिए उन्हें क्ले की गोलियों में बंद कर दिया जाता है जिस से बीज अपने आप समय आने पर उग आते हैं।
क्ले उस मिट्टी को कहते हैं जो खेतों ,जंगलों ,पहाड़ों से बह कर नदी ,तालाब ,पोखरों में इकठ्ठा हो जाती है इस मिट्टी से ही मिट्टी के बर्तन बनाये जाते हैं। इस मिट्टी को किसान लोग कमजोर होते खेतों में भी डालते हैं जिस से खेत पुन: ताकतवर हो जाते हैं। इस मिट्टी में असंख्य आँखों से नहीं दिखाई देने वाले सूक्ष्म जीवाणु ,केंचुओं आदि के अंडे रहते हैं जो जमीन को तेजी से उर्वरक और पानीदार बना देते हैं। इस मिट्टी में जब हम बीज को बंद कर देते हैं तो बीज चूहों,चिड़ियों, धूप और बेमौसम पानी से सुरक्षित हो जाते हैं जो अपने समय पर अनुकूल वातावरण को पाकर उग आते हैं जैसे असंख्य खरपतवारों के बीज उग आते हैं।
बीज गोलियों को बनाने के लिए सबसे पहले हमे उत्तम क्ले का चुनाव करने की जरुरत है उत्तम क्ले की खासियत यह रहती है उसकी गीली गोली पानी में पड़े रहने पर भी नहीं घुलती है, सूखने पर इतनी कड़क हो जाती है की उसे चूहे ,गिलहरी दांतों से तोड़ नहीं सकते हैं ,हवाई जहाज से फेंकने पर भी वह टूटती नहीं है। इस क्ले को आवश्यकतानुसार इकठ्ठा कर बारीक कर छान लिया जाता है फिर इसमें एकल या मिश्रित बीजों को मिलकर आटे की तरह गूथ लिया जाता है गुथी मिट्टी से एक या आधा इंच बीजों की साइज के अनुसार व्यास वाली गोलियां बना ली जाती हैं जिन्हे छाया में सुखा कर स्टोर कर लिया जाता है। अनेक लोग एक साथ बैठ कर इस प्रकार कई एकड़ खेत के लिए गोलियां बना लेते हैं।
बड़े खेतों के लिए बीज गोलियां बनाने के लिए कंक्रीट मिक्सर का इस्तमाल किया जाता है।
बीज गोलिओं को फेंकने से पूर्व खेतों में यदि घास , या अन्य वनस्पतियां उत्पन्न हो जाती हैं तो उन से डरने की कोई जरुरत नहीं है वरन उन्हें भी संरक्षण देने की जरुरत है इनके ढकाव में असंख्य जीव जंतु ,कीड़े मकोड़े पलते हैं जो खेतों को उर्वरक और पानीदार बना देते हैं। यह ढकाव बीज गोलियों को भी सुरक्षित रखते हैं। ताकतवर कुदरती बीजों की उत्तम बीज गोलियों से पहले ही साल में उत्तम परिणाम मिलते हैं।
ऋषि खेती में सभी कृषि अवशेषों जैसे खरपतवार ,पुआल ,नरवाई आदि को जहाँ का तहां कुदरती रूप में फेंक दिया जाता है जो सड़ कर खतों को उत्तम जैविक खाद प्रदान करता है। अधिक जानकारी के लिए फोन या ईमेल से सम्पर्क करें।
राजू टाइटस
rajuktitus@gmail.com. mobile no. 09179738049
जब से आधुनिक वैज्ञानिक खेती में लगातार घाटा होने लगा है और किसान जैविक खेती करके भी संतुस्ट नहीं हो रहे हैं तब से हमारे पास आये दिन अनेको लोग फोन कर पूछने लगे हैं की हम कैसे ऋषि खेती करें ? अनेक लोग देश विदेश से बहुत कस्ट उठाकर यहाँ तक केवल यही जानने के लिए आते हैं की आखिर यह खेती होती कैसे है ?
ऋषि खेती "कुछ मत करो " के मूल सिद्धांत पर आधारित है। गीताजी में लिखा है की कर्म जब कुदरत के विरुद्ध हो जाता है वह कुकर्म में तब्दील हो जाता है। इसलिए अकर्म (कुछ मत करो ) को बहुत महत्त्व दिया गया है।
दाना पानी के संपादक श्री अरुण डिकेजी हैं पत्रिका बुलाने के लिए +919926462068 पर संपर्क करें। |
हमारे देश में आज भी ऐसे उदाहरण देखने को मिल जायेंगे जिसमे किसान एक साथ कई किस्म के बीजों को मिलकर बरसात से पहले सीधे फेंक भर देते हैं और साल भर फसलें काटते रहते हैं। इन विधियों को झूम या बेगा खेती के नाम से जाना जाता है। यह विधि आदिवासी अंचलों में देखी जा सकती है। इससे किसान हजारों साल आत्म निर्भर रहते आये हैं।
बेगा या झूम खेती की खासियत यह है की ये किसान बिजली और पेट्रोलियम के बिना ,जुताई ,खाद और दवाइयों के बिना खेती करते हैं। ये पहले हरियाली के भूमि ढकाव को बचाते हैं जिस से हरयाली के साथ असंख्य धरती की जैव विविधतायें पनप जाती है। जिस से धरती उर्वरक बन जाती है उसमे नमी का संचार हो जाता है। फिर इस हरयाली को काटकर वहीं डाल दिया जाता है सूख जाती है उसे जला दिया दिया जाता है जिस से जमीन बीज बोने लायक बन जाती है। उसमे अनेक बीजों को एक साथ सीधा बरसात आने से पहले छिड़क दिया जाता है। इस से सब बीज उग जाते हैं फिर एक एक कर फसलें काटी जाती हैं। किसान केवल तीन साल तक इस जमीन पर फसलें उगाते हैं फिर दुसरे जमीन के टुकड़े को तैयार कर लेते हैं। पुराने जमीन के टुकड़े को पुन : हरयाली पनपने के लिए छोड़ दिया जाता हैं।
ऋषि खेती का भी यही आधार है फर्क केवल इतना है इसमें हरियाली को जलाया नहीं जाता है उसे वहीं रहने दिया दिया जाता है इसलिए जमीन को बदलने की जरुरत नहीं रहती है बीजों को सुरक्षित करने के लिए उन्हें क्ले की गोलियों में बंद कर दिया जाता है जिस से बीज अपने आप समय आने पर उग आते हैं।
क्ले उस मिट्टी को कहते हैं जो खेतों ,जंगलों ,पहाड़ों से बह कर नदी ,तालाब ,पोखरों में इकठ्ठा हो जाती है इस मिट्टी से ही मिट्टी के बर्तन बनाये जाते हैं। इस मिट्टी को किसान लोग कमजोर होते खेतों में भी डालते हैं जिस से खेत पुन: ताकतवर हो जाते हैं। इस मिट्टी में असंख्य आँखों से नहीं दिखाई देने वाले सूक्ष्म जीवाणु ,केंचुओं आदि के अंडे रहते हैं जो जमीन को तेजी से उर्वरक और पानीदार बना देते हैं। इस मिट्टी में जब हम बीज को बंद कर देते हैं तो बीज चूहों,चिड़ियों, धूप और बेमौसम पानी से सुरक्षित हो जाते हैं जो अपने समय पर अनुकूल वातावरण को पाकर उग आते हैं जैसे असंख्य खरपतवारों के बीज उग आते हैं।
बीज गोलियों को बनाने के लिए सबसे पहले हमे उत्तम क्ले का चुनाव करने की जरुरत है उत्तम क्ले की खासियत यह रहती है उसकी गीली गोली पानी में पड़े रहने पर भी नहीं घुलती है, सूखने पर इतनी कड़क हो जाती है की उसे चूहे ,गिलहरी दांतों से तोड़ नहीं सकते हैं ,हवाई जहाज से फेंकने पर भी वह टूटती नहीं है। इस क्ले को आवश्यकतानुसार इकठ्ठा कर बारीक कर छान लिया जाता है फिर इसमें एकल या मिश्रित बीजों को मिलकर आटे की तरह गूथ लिया जाता है गुथी मिट्टी से एक या आधा इंच बीजों की साइज के अनुसार व्यास वाली गोलियां बना ली जाती हैं जिन्हे छाया में सुखा कर स्टोर कर लिया जाता है। अनेक लोग एक साथ बैठ कर इस प्रकार कई एकड़ खेत के लिए गोलियां बना लेते हैं।
बड़े खेतों के लिए बीज गोलियां बनाने के लिए कंक्रीट मिक्सर का इस्तमाल किया जाता है।
बीज गोलिओं को फेंकने से पूर्व खेतों में यदि घास , या अन्य वनस्पतियां उत्पन्न हो जाती हैं तो उन से डरने की कोई जरुरत नहीं है वरन उन्हें भी संरक्षण देने की जरुरत है इनके ढकाव में असंख्य जीव जंतु ,कीड़े मकोड़े पलते हैं जो खेतों को उर्वरक और पानीदार बना देते हैं। यह ढकाव बीज गोलियों को भी सुरक्षित रखते हैं। ताकतवर कुदरती बीजों की उत्तम बीज गोलियों से पहले ही साल में उत्तम परिणाम मिलते हैं।
ऋषि खेती में सभी कृषि अवशेषों जैसे खरपतवार ,पुआल ,नरवाई आदि को जहाँ का तहां कुदरती रूप में फेंक दिया जाता है जो सड़ कर खतों को उत्तम जैविक खाद प्रदान करता है। अधिक जानकारी के लिए फोन या ईमेल से सम्पर्क करें।
राजू टाइटस
rajuktitus@gmail.com. mobile no. 09179738049
No comments:
Post a Comment