Sunday, October 19, 2014

नदी जिए अभियान

नदी जिए अभियान 

"पानी ना तो आसमान से आता है ना वह धरती से आता है पानी तो केवल हरियाली से आता है "
                                                                                               फुकूओकाजी
हरियाली है जहां खुशहाली है वहां
       
ब खेती करने के लिए खेतों को जोता जाता है जुती बखरी बारीक मिट्टी बरसात के पानी को जमीन में नहीं जाने देती है वह तेजी से  बह कर खेतों की जैविक खाद को बहा कर ले जाता है। इस से खेत सूख जाते है। भूमिगत जल नीचे चला जाता है जिसका असर सीधे हरियाली पर पड़ता है वनस्पतियां सूखने लगतीं है।
चित्र न. 1 

चित्र न. 1
जुताई करने से मिट्टी बह  जाती है। 
चित्र न. 2 
यहाँ दो अलग अलग जार में पानी में जुती और बिना जुती  मिट्टी को एक साथ बराबर मात्र में डाला गया है।  जुताई वाली मिट्टी  पानी में बिखर जाती है।  इस से यह पता चलता है की कितनी बड़ी मात्रा  में हमारी कीमती मिट्टी  इस प्रकार हर साल पानी के साथ बह जाती है।
दुसरे जार में जिसमे बिना जुताई की मिट्टी  को रखा गया है वह पानी के साथ बिखरती नहीं हैं। इस कारण कितना भी पानी गिरे मिट्टी खेतों बरक़रार रहती है।
चित्र न. 2
जुताई करने से बरसात का पानी जमीन में नहीं समाता है।
इस चित्र में दो बर्तन लिए गए हैं जिनमे एक साथ फिर जुती और बिना जुती  मिट्टी को बराबर मात्र में एक साथ डाल  कर ऊपर से पानी डाला गया है।  जुताई वाली मिटटी के भीतर पानी नहीं जा रहा है वह ऊपर से बह  रहा है।  जबकि दूसरे बर्तन में जिसमे बिना जुताई की मिट्टी रखी  गयी है ने पूरा पानी सोख लिया है वह नीचे बर्तन में इकठ्ठा हो गया है।

उपरोक्त दोनों प्रयोगों से पता चलता है की खेती करने के लिए की जारही जमीन की जुताई कितनी नुक्सान दायक है।

हमारी नदियों के सूखने का मूल यही कारण है। यही कारण है जिस के कारण किसान गरीब हो रहे हैं।
ऋषि खेती ,खेती करने की एक ऐसी तकनीक है जिसमे जुताई की कोई जरुरत नहीं रहती है।  मिट्टी के नहीं बहने से खाद की भी जरुरत नहीं रहती है। ताकतवर मिट्टी  में ताकतवर फसलें पैदा होती हैं उसमे बीमारियों और खरपतवारों की समस्या नहीं रहती है।

No comments: