गहरी जुताई आधारित खेती के कारण अवरुद्ध है विकास.
मध्य भारत में जब सोयाबीन की खेती आयी थी किसानो के जीवन में रोनक आ गयी थी . उनदिनों सोयाबीन आसानी से एक एकड़ में दो टन तक पैदा हो जाता था इसके खल चूरे के नियार्त से किसानो की अच्छी कमाई हो रही थी इस कारण बाजार में र्भी रोनक आ गयी थी. उन दिनों इसे " काला सोना " कहा जाने लगा था. किन्तु मात्र कुछ सालों के अंदर सोयाबीन का उत्पादन घट कर २० किलो तक आ गया है. ऐसा खेती में की जारही गहरी जुताई और नरवाई जलाने के कारण हो रहा है. सोयाबीन एक दलहनी फसल है हर दलहनी फसल जमीन में कुदरती नत्रजन सप्लाई करने का काम करती है. दलहन जाती का हर पौधा जमीन से जितना ऊपर होता है उसकी छाया के छेत्र में कुदरती नत्रजन सप्लाई करने का काम करता है. इस नत्रजन के सहारे गेंहूं का उत्पादन भी आसानी से दो टन प्रति एकड़ मिल जाता था. किन्तु आज क़ल ये भी तेजी से घट रहा है. आज इस का ओसत उत्पादन घट कर ६ से ८ क्विंटल रह गया है. वो दिन दूर नहीं जब ये सोयबीन की तरह हो जाये.
खेती करने के लिए की जारही गहरी जुताई बहुत घातक है. वैज्ञानिकों ने पता लगाया है की एक बार की जमीन की गहरी जुताई करने से खेतों की आधी ताकत नस्ट हो जाती है. खेतों में जुताई करने से एक और जहाँ बरसात का पानी जमीन नहीं जाता वहीं ये तेजी से बहता है जो अपने साथ खेत की खाद को भी बहा कर ले जाता है. असल में ऐसा जुताई के कारण खेत की छिद्रियता के मिट जाने के कारण होता है. ये छिद्रियता केंचुओं, चूहों जैसे अनेक जीव जंतुओं के द्वारा उत्पन्न होती है.
अमेरिका के नब्रासका छेत्र में करीब ५० % किसान बिना जुताई करे सोयाबीन की खेती करते हैं जिस से उनका उत्पादन हर साल बढ़ रहा है जिस से वहां एक और किसान मालामाल हो रहे हैं वहीँ सूखे की समस्या का भी अंत हो गया. किसानो के बच्चे शहर छोड़ खेती किसानी में लोटने लगे हैं.
वैज्ञानिकों ने ये भी पता किया है जब खेतों को जोता जाता है तब खेतों की जैविक खाद (कार्बन ) गेस बन कर उड़ जाता है. जो ग्लोबल वार्मिंग और मोसम परिवर्तन की समस्या को उत्पन्न करती है. बिना जुताई की खेती करने से खेतों का कार्बन यानि जैविक खाद खेतों में ही रहती है. इस से फसलो का उत्पादन बढ़ता है और पर्यावरण भी ठीक रहता है.
हम पिछले २५ सालों से बिना जुताई की की खेती कर रहे हैं और उस से बहुत लाभ कमा रहे हैं हमारा मानना है की की यदि सही टिकाऊ विकास करना है तो बिना जुताई की खेती उसकी पहली सीढ़ी है. बिना जुताई की सोयाबीन की खेती आज भी किसानो को मालामाल कर सकती है जिस ना केवल किसानो में रोनक लोटेगी वरन हमारा बाजार भी खूब फलेगा और फूलेगा. बिना जुताई की खेती करने में ८०% लागत कम हो जाती है. किसान खरपतवारों को क्रिम्पर रोलर की सहायता से जमीन में सुलादेते तथा बिना जुताई की बोने की मशीन से बोनी कर देते हैं. कर देते है. ये दोनों काम एक साथ एक चक्कर में हो जाते हैं.
मध्य भारत में जब सोयाबीन की खेती आयी थी किसानो के जीवन में रोनक आ गयी थी . उनदिनों सोयाबीन आसानी से एक एकड़ में दो टन तक पैदा हो जाता था इसके खल चूरे के नियार्त से किसानो की अच्छी कमाई हो रही थी इस कारण बाजार में र्भी रोनक आ गयी थी. उन दिनों इसे " काला सोना " कहा जाने लगा था. किन्तु मात्र कुछ सालों के अंदर सोयाबीन का उत्पादन घट कर २० किलो तक आ गया है. ऐसा खेती में की जारही गहरी जुताई और नरवाई जलाने के कारण हो रहा है. सोयाबीन एक दलहनी फसल है हर दलहनी फसल जमीन में कुदरती नत्रजन सप्लाई करने का काम करती है. दलहन जाती का हर पौधा जमीन से जितना ऊपर होता है उसकी छाया के छेत्र में कुदरती नत्रजन सप्लाई करने का काम करता है. इस नत्रजन के सहारे गेंहूं का उत्पादन भी आसानी से दो टन प्रति एकड़ मिल जाता था. किन्तु आज क़ल ये भी तेजी से घट रहा है. आज इस का ओसत उत्पादन घट कर ६ से ८ क्विंटल रह गया है. वो दिन दूर नहीं जब ये सोयबीन की तरह हो जाये.
खेती करने के लिए की जारही गहरी जुताई बहुत घातक है. वैज्ञानिकों ने पता लगाया है की एक बार की जमीन की गहरी जुताई करने से खेतों की आधी ताकत नस्ट हो जाती है. खेतों में जुताई करने से एक और जहाँ बरसात का पानी जमीन नहीं जाता वहीं ये तेजी से बहता है जो अपने साथ खेत की खाद को भी बहा कर ले जाता है. असल में ऐसा जुताई के कारण खेत की छिद्रियता के मिट जाने के कारण होता है. ये छिद्रियता केंचुओं, चूहों जैसे अनेक जीव जंतुओं के द्वारा उत्पन्न होती है.
अमेरिका के नब्रासका छेत्र में करीब ५० % किसान बिना जुताई करे सोयाबीन की खेती करते हैं जिस से उनका उत्पादन हर साल बढ़ रहा है जिस से वहां एक और किसान मालामाल हो रहे हैं वहीँ सूखे की समस्या का भी अंत हो गया. किसानो के बच्चे शहर छोड़ खेती किसानी में लोटने लगे हैं.
वैज्ञानिकों ने ये भी पता किया है जब खेतों को जोता जाता है तब खेतों की जैविक खाद (कार्बन ) गेस बन कर उड़ जाता है. जो ग्लोबल वार्मिंग और मोसम परिवर्तन की समस्या को उत्पन्न करती है. बिना जुताई की खेती करने से खेतों का कार्बन यानि जैविक खाद खेतों में ही रहती है. इस से फसलो का उत्पादन बढ़ता है और पर्यावरण भी ठीक रहता है.
हम पिछले २५ सालों से बिना जुताई की की खेती कर रहे हैं और उस से बहुत लाभ कमा रहे हैं हमारा मानना है की की यदि सही टिकाऊ विकास करना है तो बिना जुताई की खेती उसकी पहली सीढ़ी है. बिना जुताई की सोयाबीन की खेती आज भी किसानो को मालामाल कर सकती है जिस ना केवल किसानो में रोनक लोटेगी वरन हमारा बाजार भी खूब फलेगा और फूलेगा. बिना जुताई की खेती करने में ८०% लागत कम हो जाती है. किसान खरपतवारों को क्रिम्पर रोलर की सहायता से जमीन में सुलादेते तथा बिना जुताई की बोने की मशीन से बोनी कर देते हैं. कर देते है. ये दोनों काम एक साथ एक चक्कर में हो जाते हैं.
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