कुदरती खेती कार्यशाला
१०,११,१२ दिसम्बर कनालसी गाँव यमुनानगर हरियाणा
आयोजक पीस संस्था दिल्ली
द्वारा -राजू टाइटस कुदरती खेती के किसान ,होशंगाबाद,म.प्र.
उपस्थित- नदी मित्र मंडलियाँ (किसान) ६० से अधिक
श्री मनोज जी इस कार्यशाला के मुख्य स्रोत हैं. वे IFS सेवानिवृत हैं. तथा पर्यावरण के जानकार हैं .अनेक वर्ष उन्होंने सरकारी वन विभाग में सेवाएं दी हैं. उनकी संस्था का नाम पीस है. वे हरियाणा में यमुना को बचाने के लिए काम करते हैं. इसी लिए उन्होंने नदी मित्रों की मंडलियाँ बनाई हैं जो अनेक प्रदेशों में काम कर रही हैं. इन्ही मित्रों के साथ मिलकर ये कार्य शाला आयोजित की गयी थी.
इस में सोच ये है की नदियों का जन्म और उनका पोषण आसपास के पर्यावरण से होता है जिस में अधिकतर जुताई आधारित खेत हैं जो इस में बाधक हैं. इस लिए भूमिगत जल,कुओं नालो और नदियों में जल का स्तर तेजी से गिर रहा है. जहाँ दो हाथ पर पानी मिल जाया करता था वहां अब बोर करने की मशीनों से भी पानी नहीं मिल रहा है. मिल भी रहा है तो उसे पाने के लिए बहुत बिजली या तेल की जरुरत है. अधिक लागत के कारण किसान गरीब हो रहे हैं. खेती पानी के बिना संभव नहीं है. खेतों में पानी नहीं तो खाद भी नहीं और फसल भी नहीं. अधिकतर लोग सोचते हैं की छोटे बड़े बांध बना कर, तालाब बनाकर हम पानी को बचा सकते हैं. किन्तु जुताई कर के खेती करने से पानी की मांग बढ़ते क्रम में रहती है. जिसे टिकाऊ तरीके से पूरा करना ना मुमकिन है.
कुदरती खेती जुताई के बिना की जाती है जिस से बरसात का पानी खेतों के द्वारा सोख लिया जाता है. जिस से लगातार भूमिगत जल का स्तर बढ़ता जाता है.पानी की मांग घटते क्रम रहती है जिसे आसानी से छोड़ा जा सकता है. खेतों का ये पानी फसलों के अलावा कुए,नदी के जल की आपूर्ति करता है वही ये बरसात भी करवाता है.
बिना जुताई किये खेती करने से खेतों की ऊपरी सतह पर जमा खाद खेतों में ही जमा होती रहती है तथा हम खेती के अवशेषों को जहाँ से लेते हैं वहीँ छोड़ देते हैं जिस से खेत ताकतवर हो जाते हैं जिस से गुणवत्ता और उत्पादन दोनों बढ़ते क्रम में मिलते हैं. खेती की लागत में ८०% खर्च कम आता है.
पूरे तीन दिन इसी विषय पर चर्चा रही. जिसे अनेक किसानो ने बहुत सराहा तथा अनेक किसानो ने इसे करने का संकल्प लिए. जिस गाँव में ये कार्य शाला आयोजित की गयी थी उस में किसान पेडों के साथ अनाज की भी खेती करते हैं. इस लिए वे समझदार और धनि हैं. जो परिवर्तन कर आसानी से यमुना नदी को बचाने में सहयोग प्रदान करेंगे इस में कोई दो राय नहीं है. आखरी दिन इस बात की चर्चा रही की कौन कहाँ और कैसे इस खेती को करेगा. अनेक किसानो ने खेती को करने का संकल्प लिया. इस कार्य शाला के अंत में छोटे बच्चों के साथ चर्चा की गयी जिस में उन्होंने बड़े किसानो से कहीं अधिक रूचि दिखाई और जब उन से पूछा गया की आप कुदरती खेती कर सकते हो तो उन्होंने कहाँ हम कर सकते हैं. और वे तुरंत बीज गोलिओं को बनाने लगे.
पूरी रिपोर्ट श्री मनोज मिश्रा yamunajiye@gmail.com से प्राप्त की जा सकती है.
१०,११,१२ दिसम्बर कनालसी गाँव यमुनानगर हरियाणा
आयोजक पीस संस्था दिल्ली
द्वारा -राजू टाइटस कुदरती खेती के किसान ,होशंगाबाद,म.प्र.
उपस्थित- नदी मित्र मंडलियाँ (किसान) ६० से अधिक
श्री मनोज जी इस कार्यशाला के मुख्य स्रोत हैं. वे IFS सेवानिवृत हैं. तथा पर्यावरण के जानकार हैं .अनेक वर्ष उन्होंने सरकारी वन विभाग में सेवाएं दी हैं. उनकी संस्था का नाम पीस है. वे हरियाणा में यमुना को बचाने के लिए काम करते हैं. इसी लिए उन्होंने नदी मित्रों की मंडलियाँ बनाई हैं जो अनेक प्रदेशों में काम कर रही हैं. इन्ही मित्रों के साथ मिलकर ये कार्य शाला आयोजित की गयी थी.
इस में सोच ये है की नदियों का जन्म और उनका पोषण आसपास के पर्यावरण से होता है जिस में अधिकतर जुताई आधारित खेत हैं जो इस में बाधक हैं. इस लिए भूमिगत जल,कुओं नालो और नदियों में जल का स्तर तेजी से गिर रहा है. जहाँ दो हाथ पर पानी मिल जाया करता था वहां अब बोर करने की मशीनों से भी पानी नहीं मिल रहा है. मिल भी रहा है तो उसे पाने के लिए बहुत बिजली या तेल की जरुरत है. अधिक लागत के कारण किसान गरीब हो रहे हैं. खेती पानी के बिना संभव नहीं है. खेतों में पानी नहीं तो खाद भी नहीं और फसल भी नहीं. अधिकतर लोग सोचते हैं की छोटे बड़े बांध बना कर, तालाब बनाकर हम पानी को बचा सकते हैं. किन्तु जुताई कर के खेती करने से पानी की मांग बढ़ते क्रम में रहती है. जिसे टिकाऊ तरीके से पूरा करना ना मुमकिन है.
कुदरती खेती जुताई के बिना की जाती है जिस से बरसात का पानी खेतों के द्वारा सोख लिया जाता है. जिस से लगातार भूमिगत जल का स्तर बढ़ता जाता है.पानी की मांग घटते क्रम रहती है जिसे आसानी से छोड़ा जा सकता है. खेतों का ये पानी फसलों के अलावा कुए,नदी के जल की आपूर्ति करता है वही ये बरसात भी करवाता है.
बिना जुताई किये खेती करने से खेतों की ऊपरी सतह पर जमा खाद खेतों में ही जमा होती रहती है तथा हम खेती के अवशेषों को जहाँ से लेते हैं वहीँ छोड़ देते हैं जिस से खेत ताकतवर हो जाते हैं जिस से गुणवत्ता और उत्पादन दोनों बढ़ते क्रम में मिलते हैं. खेती की लागत में ८०% खर्च कम आता है.
पूरे तीन दिन इसी विषय पर चर्चा रही. जिसे अनेक किसानो ने बहुत सराहा तथा अनेक किसानो ने इसे करने का संकल्प लिए. जिस गाँव में ये कार्य शाला आयोजित की गयी थी उस में किसान पेडों के साथ अनाज की भी खेती करते हैं. इस लिए वे समझदार और धनि हैं. जो परिवर्तन कर आसानी से यमुना नदी को बचाने में सहयोग प्रदान करेंगे इस में कोई दो राय नहीं है. आखरी दिन इस बात की चर्चा रही की कौन कहाँ और कैसे इस खेती को करेगा. अनेक किसानो ने खेती को करने का संकल्प लिया. इस कार्य शाला के अंत में छोटे बच्चों के साथ चर्चा की गयी जिस में उन्होंने बड़े किसानो से कहीं अधिक रूचि दिखाई और जब उन से पूछा गया की आप कुदरती खेती कर सकते हो तो उन्होंने कहाँ हम कर सकते हैं. और वे तुरंत बीज गोलिओं को बनाने लगे.
पूरी रिपोर्ट श्री मनोज मिश्रा yamunajiye@gmail.com से प्राप्त की जा सकती है.
No comments:
Post a Comment