Saturday, January 28, 2012

एक तिनके से आयी क्रांति

एक तिनके से आयी क्रांति
  दुनिया भर में इन दिनों बिना जुताई की खेती की चर्चा है. एक जमाना था जब जमीन की जुताई एक पवित्र काम माना जाता था. किन्तु इस के कारण हमारा पर्यावरण नस्ट हो रहा है और किसान आत्म हत्या कर रहे हैं. इस लिए ये काम महापाप में तब्दील हो रहा है. होशंगाबाद .म.प्र. में इस कारण खेत और किसान दोनों मर रहे हैं. ये गंभीर चिंता का विषय है.
   बहुत कम किसान ये जानते हैं की हमारी मिट्टी ही असली खाद है. इस को जोतने खोदने से ये खाद बह जाती है या गेस में तब्दील हो कर उड़ जाती है. बखरी बारीक मिटटी बरसात के पानी के साथ मिल कर कीचड में तब्दील हो जाती है जिस से जमीन में रहने वाली तमाम जैव विविधताएँ जैसे केंचुए, चूहे आदि के घर मिट जाते हैं जिस से पानी जमीन में न जाकर तेजी से बहता है वह अपने साथ खाद को भी बहा कर ले जाता है.
      अधिकतर किसान ये सोचते हैं की जमीन की घट रही ताकत के पीछे रसायनों का उपयोग है,   जैविक खाद बनाकर डालने से समस्या का हल हो जयेगा  किन्तु उन्हें मालूम नहीं है की एक बार की जमीन की जुताई करने से जमीन की आधी ताकत नस्ट हो जाती है. किसानो की गरीबी का मूल कारण जमीन की जुताई है. होशंगाबाद बाबई का सरकारी फार्म हो या रसूलिया का गेर सरकारी फार्म सब इस कारण घाटे में चल रहे हैं. बड़े बड़े किसान भी खेती में हो रहे घाटे के कारण कर्ज से नहीं उबर प़ा रहे हैं. किसानो की आत्म हत्या एक गंभीर समस्या बन गयी है.
    महिलाओं और बच्चों में कुपोषण भी इसी कारण है. जब धरती मां भूखी रहेगी तो उस के बच्चों का पेट कैसे भरेगा.
  भारत में बिना जुताई की खेती का चलन आदिवासी अंचलों में अभी भी देखा जा सकता है.परम्परागत देशी खेती किसानी में जिस में गोसंवर्धन किया जाता था ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं जिस में किसान जमीन को जोते बगेर खेती करते हैं. वे हलकी जुताई कर जमीन की ताकत और नमी को संरक्षित करते थे. जुताई के कारण कमजोर होती जमीन को चारागाह से बदल लेते थे. जिस से एक और जहाँ पशुधन संवर्धित रहता था और कमजोर होती जमीन सुधर जाती थी.
   बिना जुताई की कुदरती खेती का अविष्कार जापान के जग प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक स्व. मस्नोबू फुकुओकाजी ने किया है.जिनके अनुभवों की किताब "एक तिनके से आयी क्रांति "भारत में इन दिनों बहुत धूम मचा रही है.
  भारत में मस्नोबू फुकुओकाजी का परिचय फ्रेंड्स रुरल सेंटर रसूलिया होशंगाबाद म.प्र. में इस केंद्र के भूतपूर्व समन्वयक श्री परताप अग्रवालजी ने ७०-80 के दशक में कराया था.जिस के कारण फुकुओकाजी को भारत सरकार के भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्व.राजीव गांधीजी ने देशिकोत्तम से सम्मानित किया था. इसी समय वे रसूलिया में भी पधारे थे उस समय उन्होंने उन्होंने बिना जुताई की कुदरती खेती को तीन साल से कर रहे टाइटस फार्म को देख कर उसे "विश्व न. वन" से नवाजा था तब से आज तक ये फार्म इस विधा को करने और इसके प्रचार प्रसार को करने में न.वन है. इस के कारण एक तिनके से उठी क्रांति सब से पहले अमेरिका पहुंची जहाँ इन दिनों अनेक किसान इस विधा को बिना जुताई की जैविक खेती के नाम से की जाने लगी है. अमेरिका में रोडाल्स इस का प्रणेता है. जिन्होंने इसे बिना रसायन मशीन से करने का बहुत ही आसान तरीका इजाद किया है. जिस से बिना जुताई ,बिना सिंचाई, बिना रसायन उत्तम खेती ८०% खर्च कम में होने लगी है. इस खेती के कारण खेती से दूर जा रहे बच्चे खेती किसानी में लोटने लगे हैं. सूखे से बर्बाद होती जमीने पानीदार ताकतवर हो गयी हैं. म.प्र.सरकार ने भी रासयनिक खेती से परेशान होकर अब जैविक खेती की नीति बनाई है.किन्तु इस में सफलता बिना जुताई की जैविक खेती से ही संभव है. जब तक हम जुताई से बहने और उड़ने वाले जैविक खाद को नहीं रोकते हम गिरते भू जल को नहीं थाम सकते हैं. और जब तक हम अपनी जमीनों को पानीदार ताकतवर नहीं बनाते हम कुपोषण और किसानो की आत्म हत्या को नहीं रोक सकते हैं.

  


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