Friday, December 30, 2011

बिना-जुताई की मित्र खेती

बिना-जुताई की मित्र खेती
      मित्र  विचारधारा का जन्म हमारे सामूहिक भविष्य के लिए विश्वशांति के लिए हुआ है. विश्व शांति हमारे पर्यावरण के संवर्धन के बिना असंभव है. हमारे पर्यावरण को सब से अधिक नुकसान हमारी खेती करने के लिए की जारही जमीन की जुताई ने पहुँचाया है. जमीन की जुताई करने से एक और जहाँ जमीन की हरियाली नस्ट होती है वहीँ केंचुए आदि के घर नस्ट हो जाने से बरसात का पानी जमीन की प्यास नहीं बुझा पाता है वह तेजी से बहता है और अपने साथ खेती की जैविक खाद  को भी बहा कर ले जाता है. जिस से खेत भूके और प्यासे हो जाते हैं. इस के अलावा जमीन की जुताई करने से जैविक खाद (कार्बन)  ग्रीन हाउस  गेस में तब्दील हो जाती है जो गर्माती धरती और मोसम परिवर्तन के लिए जवाबदार है.
     भारतीय प्राचीन खेती किसानी में अनेक ऐसे उदाहरण मिलते हैं जिनमे किसान जमीन की जुताई से होने वाले नुकसान के प्रति जागरूक रहते थे. वे जमीन को सुधारने के लिए जुताई बंद कर उसे पड़ती कर दिया करते थे. जिस से जमीन ठीक हो जाती थी. किन्तु जबसे  व्यवसायिक खेती का चलन शुरू हुआ तब से इस प्रथा का अंत हो गया है इस लिए निरंतर जमीन रेगिस्थान में तब्दील हो रही है. इस कारण कुदरती मिटटी, पानी फसलों और ईंधन का अकाल आ गया है. हरयाली के कम हो जाने से हमें साँस लेने के लिए हवा नहीं मिल पा रही है.
बीमार जमीन में बीमार फसलों के उत्पादन में अनेक रासयनिक जहर डाले जाते हैं    जिनसे हमारा भोजन भी जहरीला हो जाता है जिस से केंसर जैसे रोग पैदा हो रहे हैं . महिलाओं में  "हीमोग्लोबिन की कमी, नवजात शिशुओं की आकस्मिक मौत, बच्चों में फेफड़ों का संक्रमण , बी.पी.,सुगर की बीमारी सामान्य हो गयी  है. मोटापा और असामन्य दुबलापन इसकी देन है.फसलों में स्वाद गायब हो गया है. इस लिए गेर कुदरती आहार का चलन बढ़ रहा है. जो हमरे शरीर को भी असामान्य बना रहा है.
  जुताई आधारित खेती अब घाटे का सौदा हो गया है. किसान  एक खूंटे से बंधे बेल की तरह गोल गोल चक्कर लगाते हर साल जोर लगाते हैं इस कारण वे गरीब हो रहे हैं. मध्य भारत किसानो की आत्म हत्या का गढ़ बनते जा रहा है.
     ७० के दशक से पूर्व मध्यभारत की मित्र सामाजिक संस्था (Friends Rural Center Rasulia ) ने हरित क्रांति का एक माडल बनाया था.
जो इस कारण जल्द ही धराशाही हो गया था. जिसे इस संस्था के मित्रों ने पुन: अपने पांव पर खड़ा करने के लिए पर्या मित्र खेती का सहारा लिया था जिस से इस ने ना केवल अपना खोया सम्मान प्राप्त किया किया था वरन ये केंद्र पूरे जग में चर्चित  हो गया था. इस की ख्याति में
जापान के मस्नोबू फुकुओका के "बिना जुताई की जैविक खेती" के  अनुभवों की जग प्रसिद्ध किताब "दी वन स्ट्रा रिवोलुसन " ने चार चाँद लगा दिया था. जो भी इस किताब को पढता वह प्रभावित हुए नहीं रहता था. पहले जहाँ खेती के लिए जमीन की जुताई एक पवित्र  काम माना जाता था वह बहुत बड़ा पर्यावरणीय अपराध बन गया.
    चूंकि हमने  मित्र  परिवार  में जन्म  लिया है और हम मित्र  समाज के सदस्य हैं. तथा ये संस्था मित्र  विश्वाश के अनुरूप सेवा के काम करने के लिए मित्रों के द्वारा बनाई गयी है. हम  इस से जुड़े रहे हैं. इस में किये गए कामो को अपने खेतों में अमल लाते रहे हैं इसी सन्दर्भ में हमने  २५ साल पहले इस संस्था में किये गए परिवर्तन और "दी वन स्ट्रा रिवोलुसन" से प्रभावित होकर अपने बर्बाद होते खेतों को बचाया था. आज हमारा फार्म इस विधा में दुनिया भर में  प्रथम स्थान रखता है जिस का पूरा श्रेय हम उन मित्रों को देते हैं जिन्होंने इस विधा से हमारा परिचय कराया  था. ये सच्ची मित्र खेती है. सच्चे मित्र लोग जैसा खुद से प्रेम  करते हैं वैसा ही वे अपनी मिटटी से भी प्रेम करते हैं. बहती मिटटी को रोक देने से बरसात का पानी मिटटी के द्वारा सोख लिया जाता है. जिसे हर साल बढ़ते क्रम में बरसात होती है. मिटटी का हर कण जीवित रहता है. इसके छोटे से कण को सूख्स्म दर्शी यंत्र से देखने से इस में अजेविक कुछ भी नजर नहीं आता है. इस लिए इस को मां कहा जाता है. बिना जुताई की मित्र खेती एक अहिंसक खेती है. जो विश्व शांति की मंजिल की पहली सीडी है.
  अनेक विकसित देशों में अब ये अपने पैर तेजी से पसार रही है. ये रासायनिक और जैविक दोनों तरीकों से की जाती है. रसायनों का उपयोग करने वाले किसान अब धीरे रसायनों को छोड़ रहे हैं वे जितने केंचुओं के घर बचाते है उसके अनुपात में अतिरक्त अनुदान पाते है. गंगा के कछारी छेत्रों में पाकिस्तान से लेकर पंजाब से होते हुए बंगला देश तक सिमित नाम क संस्था सरकार के साथ मिलकर इस विधा को फेलाने का काम पिछले १० सालों से  अधिक समय से कर रही है.
     हमें फक्र है की हम बिना जुताई की मित्र खेती से बच गए हैं. इस लिए चाहते हैं हर कोई जो खेती से जुड़ा है  बच जाये.
हाल ही में हमारे क्वेकर मित्र श्री कोसिक अमेरिका से केवल इस के प्रचार प्रसार को करने के लिए भारत आये थे उन्होंने  रांची (झारखण्ड) में काम कर रही भारत सेवा संस्थान और राम कृष्ण मिशन की संस्थाओं में इस का परिचय कराया है. इस के लिए उन्होंने हमें बहुत सम्मान पूर्वक आमंत्रित कर हमें इस विधा को समझाने के लिए आमंत्रित किया था. इस विधा को उन्होंने झारखण्ड के आदवासी गुरुकुल के बच्चों में अपना भोजन "स्वं ऊगाने और पका कर खाने" के लिए एक योजना के रूप में लिया है. जिसे वहां के सभी लोगों ने स्वीकार लिया है. दूसरा इस विधा को राम कृष्ण मिसन के टी.बी. सेंटर में कुदरती आहार पैदा करने के लिए सीखा है. हमारा मानना  है की कुदरती आहार ,पानी और हवा की कमी से ये रोग बढ़ रहे हैं. इस के लिए हम कोसिक्जी के बहुत आभारी है. हम चाहते है की वे हमारे इस पत्र को अपनी भाषा में लिख कर अमेरिका के मित्रों तक पहुचाने का कस्ट करें. जिस से क्वेकर जन भी इस मित्र खेती के प्रचार और प्रसार में जुड़ सकें. भारत में इस विधा को  ऋषि खेती, कुदरती खेती,और मित्र खेती जैसे अनेक नामो से पुकारते हैं.
    हम इस खेती को "अहिंसा के विकल्प"Alternate to violence project के रूप में भी देखते हैं. जो एक अंतर रास्ट्रीय स्वं सेवा की संस्था है जो गेर धार्मिक योजना है. जो क्वेकर लोगों की ही देन है. जिस का विश्व शांति में बड़ा योगदान है.
राजू टाइटस
Raju Titus. Hoshangabad. 461001.India.
+919179738049.
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fukuoka_farming yahoogroup

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