Wednesday, June 21, 2017

आदिवासी समूह तेजश्वनी के साथ दो दिवसीय कार्यशाला 1 8 -1 9 जून 2017 


यह कार्य शाला डिंडोरी जिले के आदिवासी विभाग के द्वारा जैविक खेती को समझने के लिए हमारे फार्म पर आयोजित की गयी थी। इसमें ९महिलायें और १० पुरुष थे।  इन सभों पर अपने अपने छेत्र में जैविक खेती के प्रचार प्रसार का भार है। इन लोगों को असली जैविक खेती की जानकारी हेतु हमारे फार्म पर लाया गया था। चूंकि हमारा फार्म  पिछले ३० सालो से बिना जुताई की कुदरती खेती(असली जैविक खेती ) का अभ्यास कर रहा है। जिसे हम ऋषि खेती कहते हैं।

ऋषि खेती से तात्पर्य यह है की हमारे ऋषि जन जंगलों में रहते थे अपने पर्यावरण को बिना बिगाड़े अपना जीवन यापन करते थे। किन्तु जब से हमारे देश में "गेंहूं क्रांति " आयी है।  हमारा पर्यावरण नस्ट हो गया है। इसलिए हम अब कुदरती हवा ,पानी और आहार की कमी में जी रहे हैं। इस बात को अब सरकार भी समझने लगी है इसलिए जैविक खेती के नाम से एक सुधार योजना लाई गयी है जिसका हम स्वागत करते हैं।

जैविक का मतलब है" कुदरत " यानि हमारा पर्यावरण जिसे हमे पुन: जीवित करना है। खेती माध्यम है जिस रास्ते  से हमने अपने पर्यावरण को बिगाड़ा है हमे उसी रास्ते से इसे ठीक करना है। हमने यह पाया है फसलोत्पादन के लिए की जा रही जुताई का इसमें बहुत बड़ा हाथ है। किसान पेड़ों को काटकर खेत बना रहे हैं और जुताई कर खेतों को मरुस्थल कर छोड़ते जा रहे हैं।

हरियाली की कमी के कारण बरसात कम हो जाती है जुताई करने से बरसात का  पानी जमीन में सोखा नहीं जाता है। भूमिगत जल की कमी हो जाती है जिसका सीधा प्रभाव खेती और आजीविका पर पड़ता है। डिंडोरी का आदिवासी छेत्र इसके उदाहरण है।  अब जुताई को छोड़कर हरियाली को बढ़ाने पर जोर देने के सिवाय कोई उपाय नहीं है। इस काम  को करने में ऋषि खेती तकनीक सर्वोत्तम है।

ऋषि खेती तकनीक खरपतवारों और पेड़ों को बचाते  हुए उनके समनवय से सम्पन्न होती है। इसके लिए हम सभी प्रकार के बीजों को जिसमे जंगली ,अर्ध जंगली फलदार पेड़ ,आनाज सब्जी चारे आदि के बीजों को मिला कर क्ले मिट्टी से सीड बाल बनाकर बिखराते जाते हैं। साथ में जुताई ,मानव निर्मित खाद और दवाइयों को पूरी तरह बंद कर देते हैं।
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हमने पाया है की एक बरसात में में हमारे खेत हरियाली से भर जाते हैं। दुसरे साल इसमें अपने आप अनेक झाड़ियां और पेड़ पनपने लगते हैं जिस से हमे फसल हमारे पशुओं के लिए चारा मिलने लगता है। मरुस्थली खेत हरियाली में परिवर्तित हो जाते हैं। भूमिगत जल का स्तर उठने लगता है। बरसात भी ठीक से होने लगती है।

इस पूरी कार्य शाला में इस बात को समझाने की कोशिश की गयी है जिसे प्रतिभागियों ने बड़े ध्यान से समझा है उन्होंने सीड बॉल बनाये हैं उन्हें खेत में बिखराया है। इसलिए हमे उम्मीद है की यह "जैविक खेती का मिशन " यदि चलता है तो मात्र कुछ सालो  में डिंडोरी आदिवासी अंचल पूरे देश में चल रही खेत और किसानो की समस्या को हल करने वाला गुरु हो जायेगा।

यह काम आप जैसे आमआदमी ही कर सकते हैं इसमें हम अपना पूरा सहयोग करने का वायदा करते हैं।

धन्यवाद

राजू टाइटस
होशंगाबाद


 

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