Saturday, June 4, 2016

पर्यावरण दिवस 2016

पर्यावरण दिवस 2016 


हमारा पर्यावरण और ऋषि खेती 

हरियाली है जहां खुशहाली है वहां 


स वर्ष सम्पन्न हुए कुम्भ के मेले के  विचार मंथन में  अपने उद्बभोदन में माननीय शिवराज सिंह जी चौहान ने कहा  की हम अपने प्रदेश की पर्यावरणीय स्थिति को सुधारने के लिए अब ऋषि खेती करेंगे।  उन्होंने कहा की सबसे गम्भीर समस्या हमारे प्रदेश में नदियों की सूखने की है जो चिंता का विषय है।

उन्होंने कहा की मौजूदा खेती के कारण  यह स्थिति निर्मित हुई है हम अपने खेतों में हरियाली नहीं रखते हैं। केवल गेंहूं चना चावल उगाते  हैं वह भी गैर पर्यावरणीय तरीके से जिसमे जमीन की जुताई और  जहरीले रसायनों का उपयोग प्रमुख है। इसके कारण बरसात का पानी जमीन के द्वारा सोखा नहीं जाता है जिसके कारण भूमिगत  झरने और तालाब सूख गए हैं।

उन्होंने कहा की एक ओर  हम नर्मदा जी के पानी को छिप्रा में डाल रहे हैं वही हमारी जीवन दायनी नर्मदा नदी भी तेजी से सूखने लगी है। यह सब गैर कुदरती खेती के कारण हो रहा है इसलिए हमे अब यदि अपने पर्यावरण को बचाना  है तो हमे पर्यवर्णीय खेती को अमल में  लाना ही होगा।

इसके लिए माननीय मुख्य्मन्त्रीजी ने पर्यावरणीय  खेती करने के लिए  कम से कम चार साल तक अनुदान देने की भी घोषणा की है। यह बहुत ही सार्थक एवं बहुत ही सराहनीय कदम है। अभी तक किसी भी राजनेता ने ऐसी घोषणा नहीं की है।
पेड़ों के साथ की जाने वाली ऋषि खेती 

विगत दिनों भोपाल के विधान सभा प्रांगण में म.प्र. सरकार ने एक राष्ट्रीय स्तर का सम्मेलन जलवायू परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग पर आमंत्रित किया था जिसमे उन्होंने अनेक पर्यावरण विशेषज्ञ ,साधू संत ,वैज्ञानिक लोगो को आमंत्रित किया था जिसमे उन्होंने होशंगाबाद की ऋषि खेती को भी आमंत्रित किया था।

सभा के अंतिम दिन उन्होंने राजयसभा सदस्य श्रीमान माधव दवे  जी के मार्फ़त ऋषि खेती की सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त की थी। हमे प्रसन्नता है की आज ऋषि खेती करने की योजना सरकार के पास है। हम पिछले तीस साल से
अपने होशंगाबाद स्थित फार्म में ऋषि खेती का अभ्यास कर रहे हैं तथा इसके प्रचार प्रसार में संलग्न है।

ऋषि खेती एक बिना जुताई ,बिना रसायनों से की जानी वाली पर्यावरणीय खेती है।  जबकि जितनी खेती की विधि जुताई पर आधारित है उनसे हमारा पर्यावरण नस्ट हो रहा है। आज तक जितना भी पर्यावरण का नुक्सान हुआ है उसमे सबसे अधिक हाथ गैर पर्यावरणीय खेती की विधियों का है।
ऋषि खेती करने के लिए बीजों को कपे (klay ) की मिटटी बंद कर गोलियां
बना कर बिना जुताई करे खेतों में डाल  दिया जाता है। मरुस्थलों को हरियाली
 में बदलने के लिए भी यही तरीका है। 

ऋषि खेती करने से बरसात का पानी पूरा  जमीन के द्वारा  सोख लिया जाता है जबकि गैर पर्यावरणीय  खेती के करने के कारण बरसात का पानी जमीन में नहीं जाता  है वह बहता है अपने साथ खेत की खाद को भी बहा कर ले जाता है , जिस से खेत मरुस्थल में तब्दील हो रहे हैं और नदियां सूख रही हैं।

ऋषि खेती करना बहुत आसान है इसमें मशीनों ,पशुबल की जरूरत नहीं है कोई भी इसे आसानी से कर अपना भोजन खुद पैदा कर सकता है। यह एक और जहां कुदरती  आहार पैदा करने का तरीका है वहीं बेरोजगारी को भी दूर करने का साधन है।

आजकल गैर पर्यावरणीय आहार के कारण कैंसर की बीमारी आम हो गयी है ऋषि खेती आहार का सेवन कैंसर जैसी बीमारी को भी भगाया जा सकता है। 

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