Tuesday, November 25, 2014

जैव-संरक्षित खेती ( Climate smart Farming)

सुबबूल के पेड़ों के नीचे गेंहूँ की खेती

सुबबूल एक दलहन जाती का पेड़ है जिसकी पत्तियां हाई प्रोटीन वाले चारे के रूप में उपयोग में आती है हर दुधारू पशु इनकी पत्तियों को चाव से खाता है। इसकी लकड़ियाँ  जलाऊ ,इमारती और कागज बनाने के काम में आती हैं। इस पेड़ को खेतों में लगाने से मात्र लकड़ियों से एक लाख रु /प्रति एकड़ की अतिरिक्त आमदनी होती है. पशु चारे और इसके नीचे अनाज ल
गाने का लाभ अतिरिक्त है। यह पेड़ अपने साथ अनेक जैवविविधताओं को संरक्षित करता है ,दलहन जाती का होने के कारण अपनी छाया के छेत्र में लगातार नत्रजन सप्लाई करता है , फसलों पर लगने वाले कीड़ों से फसल को बचाता  है ,खरपतवारों को नियंत्रित करता है ,बरसात के पानी को जमीन में सोख लेता है ,बादलों को आकर्षित कर बरसात करवाने  में सहायता करता है ,ग्रीन हॉउस गैस को सोख कर जैविक खाद में तब्दील करता है , ग्लोबल वार्मिंग को थामने  में सहयोग करता है ,जलवायु परिवर्तन को कम करता है। 
इसके रहने से जुताई खाद ,और दवाइयों की कोई जरुरत नहीं रहती है इसलिए भूमि ,जैव विविधताओं और जल का छरण पूर्णत: रुक जाता है।  जहर मुक्त कुदरती आहार प्राप्त होता है। पर्यावरण प्रदूषण बिलकुल नहीं होता है। इसकी उत्पादकता और गुणवत्ता जुताई और रसायनो से होने वाली खेती से बहुत अधिक है।  इस खेती को करने से खेतों की ताकत साल दर साल बढ़ती जाती है जबकि जुताई आधारित खेती से खेत रेगिस्तानों में तब्दील हो रहे हैं। 

जंगली ,अर्द्ध जंगली और पालतू पशुओं को साल भर हरा चारा उपलब्ध करने के लिए सुबबूल एक सर्वोत्तम उपाय है जबकि घास की चरोखरों से जैवविविधताओं का संरक्षण अवरोधित होता है। 





2 comments:

Majumdar said...

Dear Rajuji,

I believe proponents of sustainability suggest maximum use of indigenous trees and animals. Subabul is a useful tree alright but it is a native of Central America, isnt it? Is there no native tree/plant which can serve the same ecological functions. Some acacia or sesban species?

Regards

Unknown said...

Thank you very much for nice comment.First of all boundaries for nation is built by us not by biodiversities.I am growing Subabul since last more than 30 years and i found it as homely as many other trees.
Yes there is many indigenous trees available in our country which serve better than Subabul.I found deshi babul ,Rimjha and so many.In Hariyana many farmers are doing agriculture Papler trees.But tilled agriculture is organic or inorganic is not keeping any trees in farm due to shade.I want to show that shade effect is not in zero tillage.