जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता संरक्षण
Natural Farming (बिना जुताई की कुदरती खेती )
जलवायु का सीधा सम्बन्ध जैव विविधताओं के संरक्षण से है। सबसे अधिक जैवविवधताओं का नुक्सान फसलोत्पादन के लिए की जा रही जमीन की जुताई से हो रहा है दूसरा नुक्सान जमीन पर पनपने वाली वनस्पतियों को नस्ट करने से हो रहा है जिसे हम खरपतवार कहते हैं।
सामान्यता: किसान जमीन की जुताई दो कारणों से करते हैं पहला वे सोचते हैं की जिस भी फसल को हम बो रहे हैं उसका खाना उसके साथ पैदा होने वाली वनस्पतियां खा लेंगी ये भ्रान्ति है कोई भी वनस्पती जमीन में संग्रहित खाने को नहीं खाती है वरन उसमे खाना इकठा करती हैं।
जब जमीन खाली रहती है अपने आप उस में वनस्पतियां उगने लगती हैं इन वनस्पतियों की जड़ें जमीन के भीतर चली जाती हैं तथा तना और पत्तियां ऊपर छा जाती है। यह जमीन को ढंकने का कुदरती प्रबंध है। यह जलवायु को नियंत्रित करने के जरूरी है। इस ढकवान के कारण बरसात होती है और बरसात का जल भूमि में संगृहित रहता है। इस ढकवान की हरी हरी पत्तियां एक और प्राण वायु प्रदान करती हैं तथा दूषित हवा को सोख लेती हैं।
यह भूमि ढकाव धीरे 2 बढ़ कर घने वनो में तब्दील हो जाता है जिसकी की कोई सीमा नहीं है। बहुत कम लोग जानते हैं की जमीन स्वम असंख्य सूक्ष्म जीवाणु का समूह है उसमे जान होती है वह भी साँस लेती है उसे भी प्यास और भूख लगती है। इस ढकाव के अंदर अनेक जीव जंतु ,कीड़े मकोड़े निवास करते हैं। यह एक छोटा असंख्य जैवविवधताओं का पहला और बहुत जरूरी जंगल है। इसकी सुरक्षा नहीं करने के कारण हम घटी में जी रहे हैं।
सामान्य खेती में खरपतवारों को बहुत बड़ा दुश्मन माना जाता है। यहाँ तक की मानव निर्मित वनो और फल बागों में भी खरपतवारों को मारने की सलाह दी जाती है।किन्तु यह बहुत गलत है फलदार पेड़ों के साथ पैदा होने वाली वनस्पतियों से फलदार पेड़ो का बड़ा अंतरंग सम्बन्ध रहता है। इन वनस्पतियों के साथ असंख्य जीव जंतु ,कीड़े मकोड़े तथा असंख्य आँखों से दिखाई नहीं देने वाले सूख्स्म जीवाणु रहते हैं। जिनके कारण एक कुदरती संतुलन स्थापित हो जाता है जिस से फलदार पेड़ों में हर साल बढ़ते क्रम में फल लगते हैं ,उनका स्वाद बहुत बढ़िया हो जाता है ,किसी भी प्रकार की बीमारी इन पेड़ों पर नहीं आती है।
फसलों को पैदा करने के लिए की जा रही जमीन की जुताई से एक और जहाँ बरसात का पानी जमीन में नहीं समाता वह बह जाता है साथ में बारीक बखरी मिट्टी को भी बहा कर ले जाता है इस कारण जमीन कमजोर हो जाती है ,कमजोर जमीन में कमजोर फसलें पैदा होती हैं उनमे अनेक प्रकार की मानव निर्मित खादो और दवाओं का उपयोग किया जाने लगता है जिस से प्रदूषण फेल रहा है। सबसे अधिक समस्या धरती पर बढ़ रही गर्मी और मौसम परिवर्तन की है। पेड़ों की कमी कारण प्रदूषित गैसों का अवशोषण नहीं हो पाता है। बिना जुताई की कुदरती खेती में अनाज ,सब्जी ,चारे के पेड़ सब एक साथ लगाये जाते हैं जैसा कुदरती वनो में देखने को मिलता है।
Natural Farming (बिना जुताई की कुदरती खेती )
जलवायु का सीधा सम्बन्ध जैव विविधताओं के संरक्षण से है। सबसे अधिक जैवविवधताओं का नुक्सान फसलोत्पादन के लिए की जा रही जमीन की जुताई से हो रहा है दूसरा नुक्सान जमीन पर पनपने वाली वनस्पतियों को नस्ट करने से हो रहा है जिसे हम खरपतवार कहते हैं।
सामान्यता: किसान जमीन की जुताई दो कारणों से करते हैं पहला वे सोचते हैं की जिस भी फसल को हम बो रहे हैं उसका खाना उसके साथ पैदा होने वाली वनस्पतियां खा लेंगी ये भ्रान्ति है कोई भी वनस्पती जमीन में संग्रहित खाने को नहीं खाती है वरन उसमे खाना इकठा करती हैं।
खरपतवारों के संग गेंहूँ की खेती |
यह भूमि ढकाव धीरे 2 बढ़ कर घने वनो में तब्दील हो जाता है जिसकी की कोई सीमा नहीं है। बहुत कम लोग जानते हैं की जमीन स्वम असंख्य सूक्ष्म जीवाणु का समूह है उसमे जान होती है वह भी साँस लेती है उसे भी प्यास और भूख लगती है। इस ढकाव के अंदर अनेक जीव जंतु ,कीड़े मकोड़े निवास करते हैं। यह एक छोटा असंख्य जैवविवधताओं का पहला और बहुत जरूरी जंगल है। इसकी सुरक्षा नहीं करने के कारण हम घटी में जी रहे हैं।
अनेक सब्जियों और खरपतवारों के साथ फल रही मोसम्बी |
सामान्य खेती में खरपतवारों को बहुत बड़ा दुश्मन माना जाता है। यहाँ तक की मानव निर्मित वनो और फल बागों में भी खरपतवारों को मारने की सलाह दी जाती है।किन्तु यह बहुत गलत है फलदार पेड़ों के साथ पैदा होने वाली वनस्पतियों से फलदार पेड़ो का बड़ा अंतरंग सम्बन्ध रहता है। इन वनस्पतियों के साथ असंख्य जीव जंतु ,कीड़े मकोड़े तथा असंख्य आँखों से दिखाई नहीं देने वाले सूख्स्म जीवाणु रहते हैं। जिनके कारण एक कुदरती संतुलन स्थापित हो जाता है जिस से फलदार पेड़ों में हर साल बढ़ते क्रम में फल लगते हैं ,उनका स्वाद बहुत बढ़िया हो जाता है ,किसी भी प्रकार की बीमारी इन पेड़ों पर नहीं आती है।
सुबबूल के साथ गेंहूँ की खेती |
फसलों को पैदा करने के लिए की जा रही जमीन की जुताई से एक और जहाँ बरसात का पानी जमीन में नहीं समाता वह बह जाता है साथ में बारीक बखरी मिट्टी को भी बहा कर ले जाता है इस कारण जमीन कमजोर हो जाती है ,कमजोर जमीन में कमजोर फसलें पैदा होती हैं उनमे अनेक प्रकार की मानव निर्मित खादो और दवाओं का उपयोग किया जाने लगता है जिस से प्रदूषण फेल रहा है। सबसे अधिक समस्या धरती पर बढ़ रही गर्मी और मौसम परिवर्तन की है। पेड़ों की कमी कारण प्रदूषित गैसों का अवशोषण नहीं हो पाता है। बिना जुताई की कुदरती खेती में अनाज ,सब्जी ,चारे के पेड़ सब एक साथ लगाये जाते हैं जैसा कुदरती वनो में देखने को मिलता है।
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