यूरिया खाद का विकल्प है ऋषि खेती
फ़्रांस के वैज्ञानिक कर रहे हैं अध्यन
हर वर्ष की तरह इस साल भी किसानो में यूरिया की मांग को लेकर हाहाकार मचा है। जबकि ऋषि खेती में गेंहूँ की फसल बिना यूरिया के लहलहा रही है। इसका सर्वे करने फ़्रांस के खेती और पर्यावरण के वैज्ञानिक यहाँ पधारे है ये दुनिया भर में हो रही जैविक और अजैविक खेती का अवलोकन करते हुए यहाँ पधारे हैं। वे यहाँ आने से पहले ईरान ,टर्की ग्रीस आदि से होते हुए भारत में धर्मशाला ,देहरादून ,इंदौर से होते हुए यहाँ आएं हैं।
इनका कहना है की ऋषि खेती में जुताई नहीं होने के कारण खेतों की जैविक खाद बरसात के पानी से बहने से बच जाती है। दलहन जाती की वनस्पतियां और पेड़ लगातार खेतों में जैविक खाद बनाते रहते हैं इसलिए किसी भी प्रकार की खाद की जरुरत नहीं रहती है।
फ़्रांस के वैज्ञानिक मनन और चिबु जुताई और बिना जुताई की जमीन में क्या अंतर है का वैज्ञानिक अध्यन करने के लिए यंत्र बना रहे हैं। |
उन्होंने बताया की उन्हें ऋषि खेती की जानकारी फ्रांस में मिल गयी थी। हम इस खेती को देख कर अचंभित हैं। दलहन जाती की वनस्पतियों और पेड़ों के साथ होने वाली खेती का यह अद्भुत नमूना है।
हमने यहाँ पड़ोसी खेतों में होने वाली जुताई और रासायनिक यूरिया की खेती से तुलनात्मक अध्यन कर यह पाया है की इसमें फसल की रंगत और बढ़वार बहुत अच्छी है। लागत नहीं के बराबर है। गुणवत्ता और पर्यावरणीय लाभ अतिरिक्त मिल रहा है।
सुबबूल के पेड़ अपनी छाया के छेत्र में लगातार यूरिया सप्लाई करने का काम करते है , इनसे हाई प्रोटीन चारा और ईंधन भी मिल रहा है पशुपालन और जलाऊ लकड़ी की बिक्री से अतिरिक्त आर्थिक लाभ अर्जित हो जाता है। यह क्लीन और ग्रीन खेती है।
जुताई और जहरीले रसायनो से होने वाली खेती पूरी दुनिया में समस्या का कारण बन गयी है इस से हरे भरे जंगल ,बाग़ बगीचे और स्थाई चरोखर मोटे अनाज के मरुस्थलों में तब्दील हो रहे हैं। इस से मिट्टी ,पानी और फसलों में जहर घुलने लगा है।
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