Tuesday, November 11, 2014

जैव-विविधता संरक्षण एवं ग्रामीण आजीविका

ऋषि खेती 

जैव-विविधता संरक्षण एवं ग्रामीण आजीविका 


हरियाली है जहाँ खुशहाली है वहां

एक ओर हमारा पर्यावरण और वन विभाग हरियाली बढ़ाने के लिए आये दिन नए नए प्रयास कर रहा है वहीं किसान लोग  इसके विपरीत हरियाली को नस्ट कर रोटी के खातिर इसे मिटाने में लगे है। इसलिए वन एवं खेती किसानी  में एक दुश्मनी चल पड़ी है। इस कारण धरती की जैव -विविधतायें तेजी से नस्ट हो  रही हैं जिसका असर हमारी पालनहार ग्रामीण आजीविका पर बहुत पड़ रहा  है।

भारतीय प्राचीन  खेती किसानी में हरयाली ,पशु पालन और खेती के बीच समन्वय रहता था किन्तु जब से आधुनिक वैज्ञानिक खेती का चलन शुरू हुआ तबसे कोई भी किसान अपने खेतों में पेड़ों को रखना नहीं चाहता है उसे छाया और खरपतवारों से डर लगता है इसलिए वह हरयाली और तमाम जैव विविधताओं को मारने में अपनी पूरी ताकत लगा रहा है इस कारण अब खेत और किसान मरने लगे हैं।
क्ले से बनी बीज गोलियां 

ऋषि खेती योजना जिसे हम अपने खेतों में पिछले २८ साल से कर रहे हैं इसका मूल उदेश्य कुदरती जैवविविधताओं को बचाते हुए अपनी आजीविका को संपन्न करना है। जिससे हमे कुदरती रोटी के साथ साथ हवा ,पानी ,चारा ,ईंधन और पैसा वहीं अपने खेतों में मिल जाये और हमे कुछ करने की जरुरत न हो। एक परिवार जिसमे ५-६ सदस्य रहते के लिए एक चौथाई एकड़ जमीन बहुत है। हर सदस्य को प्रतिदिन
औसतन एक घंटे  से अधिक के समय की जरुरत नहीं है।

ऋषि खेती करने के लिए जमीन की जुताई को बंद कर उसमे अपने आप पैदा होने वाली वनस्पतियों को सुरक्षा प्रदान की जाती है जिससे जमीन में रहने वाली जैव-विविधतायें लौटने लगती हैं जो जमीन को पुन : उर्वरक ,पानीदार और पोरस बना देती हैं। इस वानस्पतिक भूमि ढकाव में हम फसल के बीजों को क्ले (कपे वाली मिट्टी ) में मिलाकर  बीज गोलियां बना लेते हैं और उन्हें इस ढकाव में डाल  देते हैं। क्ले सबसे उत्तम  जैविक खाद रहती है इस में असंख्य जमीन को ताकतवर बनाने वाले सूक्ष्म जीवाणु के अंडे आदि रहते है जो जमीन को तेजी से उर्वरक और पानीदार बना देते हैं। बीजों को सीधा भी फेंक कर बोया जाता है।

ऋषि खेती में हर दलहन जाती के पेड़ों  को सुरक्षा प्रदान की जाती है ये पेड़ जितने ऊंचे होते हैं उतनी ही उसकी छाया के  छेत्र में लगातार नत्रजन सप्लाई करने का काम करते हैं तथा वर्षा करवाते हैं ,भूमिगत जल को ऊपर लाने में सहयोग करते हैं ,फसलों को बीमारी के कीड़ों से बचाते है ,खरपतवारों को नियंत्रित करते हैं ,भरपूर जैविक खाद उपलब्ध कराते हैं। इनसे चारा ,ईंधन मिलता है।
सुबबूल के पेड़ों के साथ गेंहूँ की ऋषि खेती 

हमने इसके लिए सुबबूल को बहुत उपयोगी पाया है ये पेड़ कमजोर जमीनो को उर्वरक बनाने में बहुत उपयोगी है उत्तम प्रोटीन चारे और जलाऊ लकड़ी के लिए भी बहुत उत्तम है।  इसके बीजों को जमीन पर फेंक भर देने से ये पैदा हो जाते हैं बहुत तेजी से बढ़ते हैं। इनसे एक एकड़ से एक लाख रु  प्रति वर्ष आमदनी फसलों  के आलावा हो जाती है।

यमुना नगर पॉपलर के साथ गेंहूँ की खेती 
 ऋषि खेत एक और जहाँ वर्षा वनों की तरह काम करते हैं वहीं ये जैव -विविधताओं के संरक्षण ,मौसम परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग को थामने का भी काम करते हैं। ग्रामीण आजीविका को समृद्ध करने के लिए ऋषि खेती से अच्छा कोई उपाय उपलध नहीं है। हमारा ऋषि खेती फार्म इन दिनों दुनिया में न. वन है। जुताई आधारित जैविक और अजैविक खेती की सभी तकनीकों से सबसे अधिक जैव-विविधताओं का छरण हो रहा है इसलिए ग्रामीण आजीविका के लिए बहुत बड़ा खतरा उत्पन्न हो गया है इस पर रोक लगाने की जरुरत है अन्यथा हम पेड़ लगाते जायेंगे और रोटी के खातिर  उनकी बलि चढ़ती जाएगी ना  जंगल बचेंगे ना शेर बचेंगे ना हम बचेंगे।

धन्यवाद
राजू टाइटस
ऋषि खेती किसान होशंगाबाद। म. प्र.
email- rajuktitus@gmail.com. mobile- 9179738049

1 comment:

Nandakumar said...

Dear Rajuji,

Growing wheat under that trees is fascinating. Can you give the contact details of that person? This is the only other place, other than your farm, where there is no-till natural grain cultivation.

Regards,
Nandan