Tuesday, June 23, 2015

जहरीले कीटनाशकों का उपयोग

जहरीले कीटनाशकों का उपयोग

फुकुओका 
मेरे ख्याल में अब भी कुछ लोग ऐसे होंगे जो सोचते हैं कि यदि उन्होंने रसायनों का उपयोग नहीं किया तो उनके फल वृक्ष तथा फसलें,  देखते-देखते मर  जाएगी। जब कि सच्चाई यह है कि इन रसायनों का ‘उपयोग करके ही’ वे ऐसी परिस्थितियां निर्मित कर लेते हैं  कि उनका  भय साकार हो जाता है।
हाल ही में जापान में लाल देवदार वृक्षों की छाल को घुन लगने से भारी क्षति पहुंची रही हैै। वन अधिकारी  इन्हें काबू में लाने के लिए हेलिकाप्टरों के जरिए दवाओं का छिड़काव कर रहे हैं। मैं यह नहीं कहता कि अल्प समय के  लिए इसका सकारात्मक असर नहीं होगा। मगर मैं जानता हूं कि इस समस्या से निपटने के लिए एक और भी तरीका है।
खेतों में रासायनिक जहर डालने से आसपास की
मछलियाँ ,मेंढक ,सांप भी मर जाते है। 
आधुनिक शोध  के मुताबिक घुन का संक्रमण प्रत्यक्ष न होकर मध्यवर्ती गोल-कृमियों के बाद ही होता है। गोलकृमि तने में पैदा होकर, पोषक तत्वों व पानी के बहाव को रोकते हैं, और उसीसे देवदार मुरझा कर सूख जाता है। बेशक, इसका असली कारण अब तक अज्ञात है।
गोल कृमियों का पोषण वृक्ष के तने के भीतर लगी फफूंद से होता है। आखिर पेड़ के भीतर यह फफूंद इतनी ज्यादा कैसे फैल गई? क्या इस फफूंद का बढ़ना, गोल कृमियों के वहां आने के बाद शुरू हुआ? या गोल कृमि वहां इसलिए आए कि वहां फफूंद पहले से थी? यानी असली ससवाल  घूम-पिफरकर यहीं आकर ठहरता है कि पहले क्या आया? गोल कृमि या फफूंद?
एक और भी ऐसा सूक्ष्म जीवाणु है, जिसके बारे में हम बहुत कम जानकारी रखते हैं, और जो हमेशा फफूंद के साथ ही आता है, और वह फफूंद के लिए जहर का काम भी करता है। हर कोण से प्रभावों
और गलत प्रभावों का अध्ययन करने के बाद निश्चयपूर्वक केवल एक यही बात कही जा सकती है कि देवदार के वृक्ष असाधरण संख्या में सूखते जा रहे हैं।
लोग न तो यह जान सकते हैं कि देवदार की इस बीमारी का असली कारण क्या है, और न उन्हें यह पता है कि उनके ‘इलाज’ के अंतिम परिणाम क्या होंगे। यदि आप बिना सोचे-समझे प्रणाली से छेड़-छाड़ करेंगे तो आप भविष्य की किसी अन्य विपदा के बीज बो रहे होंगे।
  मुझे अपने इस ज्ञान से कोई खुशी नहीं होगी कि गोल कृमियों से होनेवाली तात्कालिक हानि को रासायनिक छिड़काव के जरिए कम कर दिया गया है। इस तरह की समस्याओं को, कृषि रसायनों का उपयोग करते हुए हल करने का यह तरीका बहुत ही गलत  हैं इससे भविष्य में समस्याएं और भी विकट रूप ले लेेंगी।
प्राकृतिक कृषि के ये चार सिद्धांत जुताई नहीं ,निंदाई नहीं, कोई रासायनिक उर्वरक या तैयार की हुई खाद नहीं, रसायनो  का कोई उपयोग नहीं , प्रकृति के आदेशों का पालन करते हैं तथा कुदरती सम्पदाओं की रक्षा करते हैं।मेरी कुदरती खेती का यही मूल मन्त्र है । अनाज, सब्जियों और फलों की खेती का  सार यही है।

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