Monday, June 15, 2015

योग से क्या किसानो की आत्महत्या रुकेंगी ?

योग से क्या किसानो की आत्महत्या रुकेंगी ?

हानगरों में जहाँ मोटापा ,शुगर ,ब्लडप्रेशर की बीमारी चरम पर है वहां योग लोगों के लिए  आकर्षण का केंद्र है किन्तु  फैक्ट्रियों का धुआं  ,वाहनो का धुआं बहुत अधिक होने से  सांस लेने लायक हवा नहीं है वहां आलोम  विलोम जैसी गेर-कुदरती  क्रिया ,फेफड़ों के लिए खतरनाक हो सकती हैं।
साँस लेना एक कुदरती प्रक्रिया है गैर कुदरती वातावरण और गैर कुदरती तरीके से साँस लेना खतरनाक हो सकता है। 

उसी प्रकार  खेतिहर कामगारों के लिए जहाँ वातावरण हरियाली से भरा रहता है धुंए का प्रदूषण नहीं के बराबर है और शारीरिक महनत  बहुत रहती है योग का कोई महत्व नहीं है। सरकार का योग के प्रति आकर्षण उचित है किन्तु उसे आमआदमी को पहले कुदरती हवा ,पानी और खाना उपलब्ध करवाने पर ध्यान देने की जरूरत है।
 है एक कहावत है की भूखे पेट भजन नहीं हो सकता है। गैर कुदरती खेती के कारण हवा ,पानी और खाने में जहर घुल रहा है। आधे से अधिक आबादी कुपोषण का शिकार है। दिल्ली जैसी स्मार्ट सिटी में साँस लेने लायक हवा और पीने लायक कुदरती पानी नहीं है, कूड़े कचरे के ढेर लगें हैं ,वाहनो और फैक्ट्रियों के कारण जहरीली ओज़ोन सीमा से बहुत अधिक बढ़ गयी है।

हमारा  कहना है की की योग से क्या ? हरियाली विहीन होते खेत  और किसानो की आत्महत्या रुकेगी ? बहुत अच्छा होता की सरकार सांस लेने लायक हवा ,पीने लायक पानी और जहर मुक्त रोटी के लिए कुछ करती।


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