DROUGHT IN MAHARASHTRA
ऋषि-खेती
बिना-जुताई की कुदरती खेती
बूँद बूँद को तरसता महारास्ट्र
जैसे ही आज हमने टीवी पर ये खबर देखी वैसे ही हम लिखने बैठ गए . एक ओर हमारे फल के बगीचे हैं जिनमे हमने गेंहू बोया है उनमे हम पानी की अधिकता से परेशान हैं। गेंहू की फसल अधिक बढ़ने के कारण गिरने लगी है वहीँ महारास्ट्र में संतरे के बगीचे जो फलते फलते पानी की कमी के कारण सूख रहे हैं।
हमारे ये बाग़ बिना-जुताई की कुदरती खेती को करने के कारण पानी से भरपूर हैं। महारास्ट्र के संतरे के बाग़ जुताई वाली रासायनिक खेती करने के कारण हो रही पानी की कमी के कारण मर रहे हैं। ये समस्या केवल संतरों के बागानों तक सीमित नहीं पूरा महारास्ट्र फसलोत्पादन के लिए की जा रही जमीन की गहरी जुताई के कारण बूँद बूँद के लिए तरसने लगा है।
महारास्ट्र ही क्यों? हर वह प्रदेश या देश फसलोत्पादन के लिए जमीन को गहराई तक खोदेगा /जोतेगा वह भी भविष्य में बूँद बूँद के लिए तरसेगा।
जब भी फसलोत्पादन के लिए जमीन को जोता या बखरा जाता है बखरी बारीक मिट्टी कीचड में तब्दील हो जाती है जो बरसात के पानी को जमीन के भीतर जाने नहीं देती है। इस के आलावा जमीन पर जितनी वनस्पतियाँ ,कीड़े मकोड़े आदि रहते हैं उनके घर बरसात के पानी को जमीन के अंदर ले जाने का काम करते हैं।
जमीन की जुताई के कारण ये घर मिट जाते हैं। खबर में बताया गया है की ये समस्या देश के कृषि मंत्रीजी के छेत्र में भी है कृषि वैज्ञानिको के पास इस का कोई उपाय नहीं है.
बरसात असमान से नहीं जमीन से आती है जमीन में पानी होगा तो पानी बरसेगा। जिस रास्ते से जमीन में पानी अंदर जाता है उसी रास्ते से पानी वास्प बन कर बादल बन बरसता है।
बिना-जुताई की कुदरती खेती का अविष्कार श्री मस्नोबू फुकुओकाजी ने किया है। उनका कहना है की पानी उपर से नहीं वरन जमीन के भीतर से आता है बशर्त पानी को जमीन में जाने से नहीं रोक जाये। हमें बिना-जुताई की खेती को करते 27 साल हो गए हैं। इस से पूर्व हम भी जुताई आधारित खेती करते थे इस से हमारे कुए सूखने लगे थे किन्तु जब से हमने बिना-जुताई की खेती को करना शुरू किया है तब से हमारे देशी उथले कुओं का जल स्तर लगातार बढ़ रहा है।
महारास्ट्र में सूखे से निबटने के लिए पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है। जबकि बिना-जुताई की कुदरती खेती करने से 80% लागत कम हो जाती है। फसलोत्पादन के आलावा पानी की फसल अतिरिक्त प्राप्त होती है।
शालिनी एवं राजू टाइटस
27 सालों से बिना-जुताई की कुदरती खेती के किसान
THERE IS SEVERE DROUGHTS IN MAHARASTRA INDIA THIS YEAR. THOUSANDS OF ORANGE ORCHARDS ARE DYING DUE THIS. MANY VILLAGERS ARE NOT GETTING DRINKING WATER FOR PEOPLE AND DOMESTIC ANIMALS.
AS PER MR FUKUOKA WATER IS NOT COMING FROM SKY IT IS COMING FROM GROUND. IF GROUND IS PROPERLY RECHARGED WATER VAPORS COVERTS IN CLOUDS WHICH BRINGS RAIN. TILLING OF LAND AND KILLING OF SOIL BIODIVERSITY NOT ALLOWED RAIN WATER TO ABSORBED BY SOIL IS MAIN CAUSE OF DROUGHTS.
FARMERS ARE TILLING IN ORCHARDS AND KILLING ALL GREEN COVER OF GROUND DO NOT ALLOW RAIN WATER TO GO IN THE SOIL. IF FARMERS ALLOW GREEN COVER IN THEIR ORCHARD STOP TILLING THEY WILL GET SUFFICIENT RECHARGING.
FUKUOKA WAY OF FARMING IS BEST WATER SHADE METHOD AND BEST WATER MANAGEMENT. COST OF THIS METHOD IS 80% LESS.
ऋषि-खेती
बिना-जुताई की कुदरती खेती
बूँद बूँद को तरसता महारास्ट्र
जैसे ही आज हमने टीवी पर ये खबर देखी वैसे ही हम लिखने बैठ गए . एक ओर हमारे फल के बगीचे हैं जिनमे हमने गेंहू बोया है उनमे हम पानी की अधिकता से परेशान हैं। गेंहू की फसल अधिक बढ़ने के कारण गिरने लगी है वहीँ महारास्ट्र में संतरे के बगीचे जो फलते फलते पानी की कमी के कारण सूख रहे हैं।
सूखती फसल के आगे बेबस किसान HELPLESS FARMER LOOKING HIS CROP DAMAGED BY DROUGHT |
हमारे ये बाग़ बिना-जुताई की कुदरती खेती को करने के कारण पानी से भरपूर हैं। महारास्ट्र के संतरे के बाग़ जुताई वाली रासायनिक खेती करने के कारण हो रही पानी की कमी के कारण मर रहे हैं। ये समस्या केवल संतरों के बागानों तक सीमित नहीं पूरा महारास्ट्र फसलोत्पादन के लिए की जा रही जमीन की गहरी जुताई के कारण बूँद बूँद के लिए तरसने लगा है।
महारास्ट्र ही क्यों? हर वह प्रदेश या देश फसलोत्पादन के लिए जमीन को गहराई तक खोदेगा /जोतेगा वह भी भविष्य में बूँद बूँद के लिए तरसेगा।
हजारों बाग़ सूख गए THOUSANDS OF ORCHARD DIED |
जमीन की जुताई के कारण ये घर मिट जाते हैं। खबर में बताया गया है की ये समस्या देश के कृषि मंत्रीजी के छेत्र में भी है कृषि वैज्ञानिको के पास इस का कोई उपाय नहीं है.
बरसात असमान से नहीं जमीन से आती है जमीन में पानी होगा तो पानी बरसेगा। जिस रास्ते से जमीन में पानी अंदर जाता है उसी रास्ते से पानी वास्प बन कर बादल बन बरसता है।
बिना -जुताई की कुदरती खेती NO-TILL NATURAL FARMING |
बिना-जुताई की कुदरती खेती का अविष्कार श्री मस्नोबू फुकुओकाजी ने किया है। उनका कहना है की पानी उपर से नहीं वरन जमीन के भीतर से आता है बशर्त पानी को जमीन में जाने से नहीं रोक जाये। हमें बिना-जुताई की खेती को करते 27 साल हो गए हैं। इस से पूर्व हम भी जुताई आधारित खेती करते थे इस से हमारे कुए सूखने लगे थे किन्तु जब से हमने बिना-जुताई की खेती को करना शुरू किया है तब से हमारे देशी उथले कुओं का जल स्तर लगातार बढ़ रहा है।
कुदरती खेती जापान GREEN COVER IN THE SHADE AREA OF FRUIT TREES |
महारास्ट्र में सूखे से निबटने के लिए पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है। जबकि बिना-जुताई की कुदरती खेती करने से 80% लागत कम हो जाती है। फसलोत्पादन के आलावा पानी की फसल अतिरिक्त प्राप्त होती है।
शालिनी एवं राजू टाइटस
27 सालों से बिना-जुताई की कुदरती खेती के किसान
THERE IS SEVERE DROUGHTS IN MAHARASTRA INDIA THIS YEAR. THOUSANDS OF ORANGE ORCHARDS ARE DYING DUE THIS. MANY VILLAGERS ARE NOT GETTING DRINKING WATER FOR PEOPLE AND DOMESTIC ANIMALS.
AS PER MR FUKUOKA WATER IS NOT COMING FROM SKY IT IS COMING FROM GROUND. IF GROUND IS PROPERLY RECHARGED WATER VAPORS COVERTS IN CLOUDS WHICH BRINGS RAIN. TILLING OF LAND AND KILLING OF SOIL BIODIVERSITY NOT ALLOWED RAIN WATER TO ABSORBED BY SOIL IS MAIN CAUSE OF DROUGHTS.
FARMERS ARE TILLING IN ORCHARDS AND KILLING ALL GREEN COVER OF GROUND DO NOT ALLOW RAIN WATER TO GO IN THE SOIL. IF FARMERS ALLOW GREEN COVER IN THEIR ORCHARD STOP TILLING THEY WILL GET SUFFICIENT RECHARGING.
FUKUOKA WAY OF FARMING IS BEST WATER SHADE METHOD AND BEST WATER MANAGEMENT. COST OF THIS METHOD IS 80% LESS.
1 comment:
जब भी फसलोत्पादन के लिए जमीन को जोता या बखरा जाता है बखरी बारीक मिट्टी कीचड में तब्दील हो जाती है जो बरसात के पानी को जमीन के भीतर जाने नहीं देती है। इस के आलावा जमीन पर जितनी वनस्पतियाँ ,कीड़े मकोड़े आदि रहते हैं उनके घर बरसात के पानी को जमीन के अंदर ले जाने का काम करते हैं।
जमीन की जुताई के कारण ये घर मिट जाते हैं। खबर में बताया गया है की ये समस्या देश के कृषि मंत्रीजी के छेत्र में भी है कृषि वैज्ञानिको के पास इस का कोई उपाय नहीं है.
there is one suggestion if government sets a plowing limit and set small pipes in ground both side open coming till surface then soil can sustain water
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