वैश्विक परिवर्तन
अहिंसात्मक खेती का आन्दोलन
हम लोग इन दिनों अनेक पर्यावरणीय संकट जैसे ग्लोबल वार्मिंग, मोसम परिवर्तन, सूखा और बाढ़, भूकंप , ज्वार भाटों आदि से जूझ रहे हैं. इन तमाम मुसीबतों के पीछे पर्यावरण विनाश, कुदरती कम वरन मानव निर्मित अधिक हैं. इस का मूल कारण हिंसात्मक विकास है. जिस में हिंसात्मक खेती का सब से बड़ा हाथ है.
खेती करने के लिए की जा रही जमीन की जुताई (Plowing) भले हजारों सालों से एक पवित्र काम समझा जाता रहा है किन्तु इस से होने वाली जैव-विवधताओं की हिंसा विश्व की किसी भी हिंसा से बड़ी है. इस से एक और जहाँ हरे भरे वन, कुदरती बाग़ बगीचे, और चारागाह रेगिस्थान में तब्दील हो रहे हैं वही बारिश का पानी जमीन में ना जाकर तेजी से बहता है वह अपने साथ उपजाऊ मिट्टी को भी बहा कर ले जाता है.और जुताई करने से जैविक खाद, ग्रीन हॉउस गेस में तब्दील हो जाती है जो आकाश में एक आवरण बना लेती है जिस से ग्लोबल वार्मिंग और मोसम परिवर्तन की समस्या निर्मित हो रही है.
इस से खेत कमजोर हो जाते हैं जिनमे फसलों को पैदा करने के लिए रासयनिक उर्वरक,कीट नाशकों,खरपतवार नाशकों, हारमोन आदि डाले जाते हैं. जिस से मिट्टी,पानी और फ़सलें जहरीली हो जाती हैं. हमारी थाली में जहर घुल जाता है. जिसको खाने से केंसर, खून की कमी, नव जात बच्चों की मौत, अपंगता आदि अनेक समस्याएँ आम हो गयी हैं. जुताई और रसायनों के उपयोग के कारण खेती की लागत बहुत बढ़ जाती है. इस खर्च को पूरा करने के लिए किसान कर्जों पर आश्रित हो जाते हैं. इस से एक और जहाँ खेती के उत्पाद महंगे हो जाते हैं वहीँ खेती घाटे का सौदा बन रही है किसान आत्म हत्या कर रहे हैं . भारत में पिछले १५ सालों में करीब ३ लाख किसान आत्म हत्या कर चुके हैं.
हम पिछले २७ सालों से अपने पारिवारिक फार्म पर जुताई ,दवाई और खाद के बिना की जाने वाली कुदरती खेती का अभ्यास कर रहे हैं जिसे दुनिया भर में लोग "नेचरल फार्मिंग " के नाम से जानते हैं. इस का अविष्कार जापान के जाने माने कुदरती किसान मस्नोबू फुकुओका जी ने किया है. इस खेती की उत्पादकता और गुणवत्ता सब से अधिक है. ये खेती पूरी तरह "कुदरती सत्य और अहिंसा" पर आधारित है. इसको करने से एक और जहाँ रेगिस्थान हरयाली में तब्दील हो जाते हैं वहीँ इनके उत्पादों को खाने से केंसर जैसी बड़ी से बड़ी बीमारी अच्छी हो जाती है. खेती में लागत नहीं के बराबर रहने से उत्पाद बहुत सस्ते होते हैं और किसानो को घाटा नहीं होता है. इस में पेट्रोलियम और बिजली की मांग नहीं के बराबर रहती है, बरसात का पानी जमीन में समां कर स्टोर हो जाता है. जिस से सूखा और बाढ़ की समस्या नहीं रहती है.
CO2 का उत्सर्जन रुक जाता है जिस से ग्लोबल वार्मिंग और मोसम परिवर्तन जैसी विकट समस्याओं पर काबू पाया जा सकता है.
कुदरती खेती " जिओ और जीनो" पर आधारित है. इस में जमीन में पैदा होने वाली तमाम वनस्पतियों,कीड़े मकोड़ो,जीव जंतुओं ,सूक्ष्म जीवाणु को सुरक्षा प्रदान की जाती है जिनके के सहारे हम अपना भोजन उगाते हैं.
कुदरती खेती में परम्परागत खेती की तुलना में उत्पादकता और गुणवत्ता अधिक रहती है. हरियाली पनपती है और भूमिगत जल का स्तर बढ़ता है. कुदरती खान,पान और हवा के सेवन से जीवन में सादगी और शांति से रहने की इच्छा जाग्रत हो जाती है. ये केवल खेती नहीं है वरन अच्छे इन्सान बनने का जरिया है.
इन दिनों हमें राजनीतिक और धार्मिक भेदभाव के कारण हो रही लड़ाइयों का संकट सता रहा है. आतंकवाद और नक्सलवाद इस की देन है. इस के पीछे हिंसात्मक खेती के कारण हो रहे विनाश का सीधा सबंध है. कुदरती खेती क़ुदरत की और वापसी का मार्ग है ये हमें बचा सकती है. क़ुदरत और ईश्वर एक ही सिक्के के दो पहलू हैं.
हमने २७ सालों में कुदरती खेती के अभ्यास से सीखा है की क्वेकर जीवन पद्धति और कुदरती खेती "कुछ मत करो" के नेतिक मूल्यों पर आधारित है. हम इस के प्रचार और प्रसार में कार्यरत हैं. अपने फार्म पर" करो और सीखो " के माध्यम से प्रशिक्षण देते हैं. और दूसरों के फार्म पर जाकर उनको" करके सिखाते हैं". ये हमारे "विश्वाश का व्यव्हार" है. अब तक हम भारत के अनेक प्रान्तों में अनेक फार्म बनवा चुके हैं. हम इस योजना का लाभ गाँव में रहने वाले गरीबों में सबसे गरीब भूमिहीन,छोटे और मंझोले किसान परिवारों को उपलब्ध करा रहे हैं. मशीनों से की जाने वाली जुताई और रसायनों के उपयोग के कारण इन परवारो को रोटी.कपडा और मकान नसीब नहीं हो रहा है. बेरोजगारी बढ़ रही है. ये खेती हाथों से की जाती है महिलाएं या बच्चे भी इसे आसानी कर लेते हैं. एक चोथाई एकड़ जमीन ५-६- सदस्यों वाले परिवार के लिए पर्याप्त है इस में परिवार के एक सदस्य को एक घंटे से अधिक काम करने की जरुरत नहीं है. बाकि समय वे समाज की सेवा में लगा सकते हैं.
हम सब जानते हैं की हमारी खेती और हमारे खान पान और हमारे पर्यावरण का सीधा सबंध है. यदि हम अहिंसात्मक कुदरती खेती का अभ्यास करते हैं तो हम शांति से रह सकते हैं हिंसात्मक खेती से हिंसा पनपती है. विश्व शांति की कुंजी और कही नहीं वह धरती के पास है.
हमारा सभी मित्रो से अनुरोध है की इस पुनीत कार्य में सहयोग प्रदान कर क्वेकर की "वैश्विक परिवर्तन " योजना में सहयोग करें , आप अपने छेत्र में इस का अभ्यास और प्रचार प्रसार का काम कर सकते हैं. हम इस में हर प्रकार से सहयोग करने का वादा करते हैं. आप प्रशिक्षण के लिए हमारे यहाँ स्वं सेवक भेज सकते हैं. आप हमारे फार्म की प्रशिक्षण सेवा के लिए दान भी दे सकते हैं.
धन्यवाद
--Shalini and Raju Titus.
Quaker Family Farm.
vil. Khojanpur
Hoshangabad. M.P.
461001.
rajuktitus@gmail.com. +919179738049.
http://picasaweb.google.com/ rajuktitus
fukuoka_farming yahoogroup
http://rishikheti.blogspot. com/
अहिंसात्मक खेती का आन्दोलन
हम लोग इन दिनों अनेक पर्यावरणीय संकट जैसे ग्लोबल वार्मिंग, मोसम परिवर्तन, सूखा और बाढ़, भूकंप , ज्वार भाटों आदि से जूझ रहे हैं. इन तमाम मुसीबतों के पीछे पर्यावरण विनाश, कुदरती कम वरन मानव निर्मित अधिक हैं. इस का मूल कारण हिंसात्मक विकास है. जिस में हिंसात्मक खेती का सब से बड़ा हाथ है.
खेती करने के लिए की जा रही जमीन की जुताई (Plowing) भले हजारों सालों से एक पवित्र काम समझा जाता रहा है किन्तु इस से होने वाली जैव-विवधताओं की हिंसा विश्व की किसी भी हिंसा से बड़ी है. इस से एक और जहाँ हरे भरे वन, कुदरती बाग़ बगीचे, और चारागाह रेगिस्थान में तब्दील हो रहे हैं वही बारिश का पानी जमीन में ना जाकर तेजी से बहता है वह अपने साथ उपजाऊ मिट्टी को भी बहा कर ले जाता है.और जुताई करने से जैविक खाद, ग्रीन हॉउस गेस में तब्दील हो जाती है जो आकाश में एक आवरण बना लेती है जिस से ग्लोबल वार्मिंग और मोसम परिवर्तन की समस्या निर्मित हो रही है.
इस से खेत कमजोर हो जाते हैं जिनमे फसलों को पैदा करने के लिए रासयनिक उर्वरक,कीट नाशकों,खरपतवार नाशकों, हारमोन आदि डाले जाते हैं. जिस से मिट्टी,पानी और फ़सलें जहरीली हो जाती हैं. हमारी थाली में जहर घुल जाता है. जिसको खाने से केंसर, खून की कमी, नव जात बच्चों की मौत, अपंगता आदि अनेक समस्याएँ आम हो गयी हैं. जुताई और रसायनों के उपयोग के कारण खेती की लागत बहुत बढ़ जाती है. इस खर्च को पूरा करने के लिए किसान कर्जों पर आश्रित हो जाते हैं. इस से एक और जहाँ खेती के उत्पाद महंगे हो जाते हैं वहीँ खेती घाटे का सौदा बन रही है किसान आत्म हत्या कर रहे हैं . भारत में पिछले १५ सालों में करीब ३ लाख किसान आत्म हत्या कर चुके हैं.
हम पिछले २७ सालों से अपने पारिवारिक फार्म पर जुताई ,दवाई और खाद के बिना की जाने वाली कुदरती खेती का अभ्यास कर रहे हैं जिसे दुनिया भर में लोग "नेचरल फार्मिंग " के नाम से जानते हैं. इस का अविष्कार जापान के जाने माने कुदरती किसान मस्नोबू फुकुओका जी ने किया है. इस खेती की उत्पादकता और गुणवत्ता सब से अधिक है. ये खेती पूरी तरह "कुदरती सत्य और अहिंसा" पर आधारित है. इसको करने से एक और जहाँ रेगिस्थान हरयाली में तब्दील हो जाते हैं वहीँ इनके उत्पादों को खाने से केंसर जैसी बड़ी से बड़ी बीमारी अच्छी हो जाती है. खेती में लागत नहीं के बराबर रहने से उत्पाद बहुत सस्ते होते हैं और किसानो को घाटा नहीं होता है. इस में पेट्रोलियम और बिजली की मांग नहीं के बराबर रहती है, बरसात का पानी जमीन में समां कर स्टोर हो जाता है. जिस से सूखा और बाढ़ की समस्या नहीं रहती है.
CO2 का उत्सर्जन रुक जाता है जिस से ग्लोबल वार्मिंग और मोसम परिवर्तन जैसी विकट समस्याओं पर काबू पाया जा सकता है.
कुदरती खेती " जिओ और जीनो" पर आधारित है. इस में जमीन में पैदा होने वाली तमाम वनस्पतियों,कीड़े मकोड़ो,जीव जंतुओं ,सूक्ष्म जीवाणु को सुरक्षा प्रदान की जाती है जिनके के सहारे हम अपना भोजन उगाते हैं.
कुदरती खेती में परम्परागत खेती की तुलना में उत्पादकता और गुणवत्ता अधिक रहती है. हरियाली पनपती है और भूमिगत जल का स्तर बढ़ता है. कुदरती खान,पान और हवा के सेवन से जीवन में सादगी और शांति से रहने की इच्छा जाग्रत हो जाती है. ये केवल खेती नहीं है वरन अच्छे इन्सान बनने का जरिया है.
इन दिनों हमें राजनीतिक और धार्मिक भेदभाव के कारण हो रही लड़ाइयों का संकट सता रहा है. आतंकवाद और नक्सलवाद इस की देन है. इस के पीछे हिंसात्मक खेती के कारण हो रहे विनाश का सीधा सबंध है. कुदरती खेती क़ुदरत की और वापसी का मार्ग है ये हमें बचा सकती है. क़ुदरत और ईश्वर एक ही सिक्के के दो पहलू हैं.
हमने २७ सालों में कुदरती खेती के अभ्यास से सीखा है की क्वेकर जीवन पद्धति और कुदरती खेती "कुछ मत करो" के नेतिक मूल्यों पर आधारित है. हम इस के प्रचार और प्रसार में कार्यरत हैं. अपने फार्म पर" करो और सीखो " के माध्यम से प्रशिक्षण देते हैं. और दूसरों के फार्म पर जाकर उनको" करके सिखाते हैं". ये हमारे "विश्वाश का व्यव्हार" है. अब तक हम भारत के अनेक प्रान्तों में अनेक फार्म बनवा चुके हैं. हम इस योजना का लाभ गाँव में रहने वाले गरीबों में सबसे गरीब भूमिहीन,छोटे और मंझोले किसान परिवारों को उपलब्ध करा रहे हैं. मशीनों से की जाने वाली जुताई और रसायनों के उपयोग के कारण इन परवारो को रोटी.कपडा और मकान नसीब नहीं हो रहा है. बेरोजगारी बढ़ रही है. ये खेती हाथों से की जाती है महिलाएं या बच्चे भी इसे आसानी कर लेते हैं. एक चोथाई एकड़ जमीन ५-६- सदस्यों वाले परिवार के लिए पर्याप्त है इस में परिवार के एक सदस्य को एक घंटे से अधिक काम करने की जरुरत नहीं है. बाकि समय वे समाज की सेवा में लगा सकते हैं.
हम सब जानते हैं की हमारी खेती और हमारे खान पान और हमारे पर्यावरण का सीधा सबंध है. यदि हम अहिंसात्मक कुदरती खेती का अभ्यास करते हैं तो हम शांति से रह सकते हैं हिंसात्मक खेती से हिंसा पनपती है. विश्व शांति की कुंजी और कही नहीं वह धरती के पास है.
हमारा सभी मित्रो से अनुरोध है की इस पुनीत कार्य में सहयोग प्रदान कर क्वेकर की "वैश्विक परिवर्तन " योजना में सहयोग करें , आप अपने छेत्र में इस का अभ्यास और प्रचार प्रसार का काम कर सकते हैं. हम इस में हर प्रकार से सहयोग करने का वादा करते हैं. आप प्रशिक्षण के लिए हमारे यहाँ स्वं सेवक भेज सकते हैं. आप हमारे फार्म की प्रशिक्षण सेवा के लिए दान भी दे सकते हैं.
धन्यवाद
--Shalini and Raju Titus.
Quaker Family Farm.
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