Thursday, March 22, 2012

पानी रे पानी

  पानी रे पानी
हरियाली है जहाँ खुशहाली है वहां !
   ज कल दिन प्रति दिन पानी का संकट गहराता जा रहा है इस के पीछे हरियाली की बढती कमी है. हम लोग ये सोचते हैं की पानी कहीं दूर आसमान से आता है किन्तु ये भ्रान्ति है. असल में पानी हमारे नीचे बसने वाली धरती की देन है. धरती में पानी है तो बरसात होगी नहीं तो नहीं होगी. धरती का पानी ही बादल बन बरसता है. हरयाली इस पानी को सहेजने का काम करती है.
    आज कल की खेती हरयाली की दुश्मन है. कोई भी किसान अपने खेतों के आस पास और दूर दूर तक पेड़ों को देखना नही चाहता है. गहरी जुताई, घातक  रसायनों और भारी सिंचाई से  होने वाली आधुनिक वैज्ञानिक खेती जिसे हरित क्रांति का नाम दिया गया है ने हरयाली को बहुत नस्ट किया है. मोटे अनाजो की बाजारू खेती के कारण तेजी से हरयाली के देवता स्वरूप वन.बाग़ बगीचे और चारागह  सब के सब खेतों में फिर रेगिस्थान में तब्दील हो रहे हैं.
      इस कारण हम केवल पानी ही नहीं वरन कुदरती हवा और आहार के भी मोताज हो गए हैं.
असल में किसानो की सब से बड़ी समस्या खरपतवार है. वे ये समझते हैं की हमारी मूल फसल को सब से अधिक नुकसान उस के आस पास उगने वाली वनस्पतियाँ हैं. ये उस खाद और पानी को ले लेंगी जो हमारी फसलों के लिए जरूरी है. किन्तु ये भ्रान्ति है.  असल में जमीन को ढंकने वाली हर वनस्पति जमीन को और अधिक उर्वरक और पानी दार बनाती है. इस हरी वनस्पति को किसान खरपतवार मान कर मारते रहते हैं विडंबना ये है की ये तो नहीं मरती  किन्तु किसान ही मरने लगे हैं.     
  हरयाली के इस भूमि ढकाव   में असंख्य जीव जंतु  और सूक्ष्म जीवाणु रहते हैं. ये जमीन को बनाने का काम करते हैं. इनके घरों और जड़ों के सहारे बरसात का पानी जमीन में समां जाता है किन्तु किसान जब इस हरियाली और नरवाई आदि को जला देते हैं और खेतों को बखर देते हैं तो पानी को धरती के भीतर लेजाने के ये कुदरती मार्ग नस्ट हो जाते हैं इस लिए पानी जमीन में न जाकर तेजी से बहता है. वह अपने साथ कीमती मिटटी को भी बहा कर ले जाता है. इस लिए हर साल भूमिगत जल का स्तर घटता जाता है. जिस से बरसात में कमी तो होती ही है आस पास के नदी नाले भी सूख जाते हैं. हम पानी को कितना भी सहेजने का काम करें कुदरत जो करती है उस का मुकाबला नहीं के सकते हैं. पानी की समस्या के पीछे सबसे बड़ा हाथ जुताई आधारित वैज्ञानिक खेती का है.
  प्राचीन  खेती किसानी की पद्धति में बहुत कम किसान जमीन की जुताई करते थे. बार बार खेतों को पडत कर वे खेतों को सुधार  लेते थे. हमारे इलाके में आज भी ऋषि पंचमी के दोरान कान्स घास की पूजा होती है और बिना हल चलाये अनाज आदि को खाने  की सलाह दी जाती है. खेतों में जब कान्स फूलने लगता था तो कहा जाता था की अब खेत सूखने लगे हैं. कान्स घास की जड़ बहुत गहराई तक जाकर पानी को खोज लेती हैं इस लिए वे तो  बच जाती हैं किन्तु अन्य फसल नहीं बच पति हैं. जुताई बंद कर देने से  बरसात का का पानी जमीन में जाने लगता है इस से कान्स की जड़ें अपने आप ऊपर आ जाती हैं और कान्स ख़तम हो जाता है. खेत अपने आप पानीदार और उर्वरक हो जाते हैं.
    हम पिछले २५ सालों से बिना जुताई की कुदरती खेती का अभ्यास कर रहे हैं. इस से पहले हम आधुनिक वैज्ञानिक खेती करते थे हमारे उथले कुए सूखने लगे थे अब वे लबा लब  रहने लगे हैं हर साल उनका जल स्तर बढ़ रहा है. इस पानी के कारण हमारे खेत हरियाली से भर गए हैं. पूरा का पूरा बरसात का पानी जमीन में समां जाता है वह बह कर बाहर नहीं जाता है.
   आधुनिक खेती को हमने अमेरिका से लाया है वहां भी अब बिना जुताई की जैविक खेती धूम मचा रही है. वे हरयाली को  मारने की वजाय उसे बचा कर खेती करने लगे हैं. इस हरियाली को वे कवर क्राप कहते हैं. इस कवर के सहारे सिंचाई के बिना भी आसानी से उत्तम खेती होने लगी है. सूखे इलाके पानीदार और उर्वरक होने लगे हैं.

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