क्यों सड़ रहा है अनाज गोदामों में ?
क्योंकि ये खाने लायक नहीं है इस की गुणवत्ता सामान्य से बहुत नीचे है. ये कमजोर जमीन में रसायनों के बल पर पैदा किया गया गेंहू है. यदि ये अच्छा गुणवत्ता वाला होता तो हाथों हाथ उठ गया होता. अच्छी गुणवत्ता वाला गेंहू बाजार में हाथों हाथ ऊंची कीमत में बिक रहा है. गुणवत्ता की कमी के कारण ही इसे समर्थन भाव से सरकार ने किसानो से खरीदा है. इसे किसी को भी देने से पहले इस की गुणवत्ता की समुचित जाँच होना चाहिए. हम पिछले २५ सालों से अपने खेतों में बिना जुताई की कुदरती खेती का अभ्यास कर रहे हैं तथा इसके प्रचार प्रसार में लगे हैं. इस खेती की खोज जापान के जाने माने कृषि वैज्ञानिक मस्नोबू फुकुओका ने की है. इस से ये पता चला है की खेती में जुताई करने से खेत कमजोर हो जाते हैं इस लिए उर्वरक और जहर जरुरी हो जाते हैं. जुताई खेती के लिए जरुरी नहीं है. जुताई करने से बरसात का पानी खेतों में नहीं समाता है वो तेजी से बहता है अपने साथ खाद को भी बहा कर ले जाता है. गहरी जुताई और नरवाई को जलाना , रासायनिकों का उपयोग वैज्ञानिक खेती की बहुत बड़ी भूल है. इस से शुरू में उत्पादन बढ़ जाता है बाद में ये घटने लगता है इस से रसायनों का डोस बढ़ता जाता है और अनाज जहरीला हो जाता है. हमारी थाली में जहर का ही है।
क्योंकि ये खाने लायक नहीं है इस की गुणवत्ता सामान्य से बहुत नीचे है. ये कमजोर जमीन में रसायनों के बल पर पैदा किया गया गेंहू है. यदि ये अच्छा गुणवत्ता वाला होता तो हाथों हाथ उठ गया होता. अच्छी गुणवत्ता वाला गेंहू बाजार में हाथों हाथ ऊंची कीमत में बिक रहा है. गुणवत्ता की कमी के कारण ही इसे समर्थन भाव से सरकार ने किसानो से खरीदा है. इसे किसी को भी देने से पहले इस की गुणवत्ता की समुचित जाँच होना चाहिए. हम पिछले २५ सालों से अपने खेतों में बिना जुताई की कुदरती खेती का अभ्यास कर रहे हैं तथा इसके प्रचार प्रसार में लगे हैं. इस खेती की खोज जापान के जाने माने कृषि वैज्ञानिक मस्नोबू फुकुओका ने की है. इस से ये पता चला है की खेती में जुताई करने से खेत कमजोर हो जाते हैं इस लिए उर्वरक और जहर जरुरी हो जाते हैं. जुताई खेती के लिए जरुरी नहीं है. जुताई करने से बरसात का पानी खेतों में नहीं समाता है वो तेजी से बहता है अपने साथ खाद को भी बहा कर ले जाता है. गहरी जुताई और नरवाई को जलाना , रासायनिकों का उपयोग वैज्ञानिक खेती की बहुत बड़ी भूल है. इस से शुरू में उत्पादन बढ़ जाता है बाद में ये घटने लगता है इस से रसायनों का डोस बढ़ता जाता है और अनाज जहरीला हो जाता है. हमारी थाली में जहर का ही है।
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