गंगा मां और ऋषि खेती
वैसे तो हर नदी हमारी पवित्र और पूज्यनीय है किन्तु अब भारत की सभी नदियों के अस्तित्व का संकट मंडराने लगा है. नदियों में लगातार पानी कम हो रहा है वे सूखने लगी हैं, कम पानी होने कारण प्रदुषण चरम सीमा पर पहुँचने लगा है. यदि यही हाल रहा तो उन तमाम नदियों की तरह जो सूख चुकीं हैं गंगा जैसी जैसी अनेक बड़ी बड़ी नदियाँ भी सूख जाएँगी. इस लिए हमें पता लगाना पड़ेगा की इस समस्या के पीछे राज क्या है. क्यों नदियों में पानी कम होते जा रहा है? इस सम्बन्ध में अनेक लोगों के अनेक मत हैं.कोई कहता है की नदियों पर बन रहे बांधों के कारण नदियाँ सूख रही हैं. कोई कहता की नदियों के केचमेंट में जंगलो के कट जाने से पानी की कमी की समस्या निर्मित हुई है. कोई कहता अत्यधिक पानी के शोषण के कारण ये हाल हैं.कोई गाद के भर जाने से पानी कम हो रहा है कहता है.
हमें इस बात पर ध्यान देने की जरुरत है की आखिर नदियों में पानी कहाँ से आता है. इस में बड़े मत भेद है लोग कहते हैं जहाँ से नदियाँ निकलती हैं पानी वहां से आता है.
कितु हम जो पिछले दो दशको से अधिक समय से नर्मदा नदी के किनारे होशंगाबाद में अपने खेतों में निजी स्तर पर ऋषि खेती का अभ्यास कर रहे हमने कुछ और ही पाया है.
हमारा मानना है की नदियों का पानी धरती की देन है नदियों के केचमेंट में यदि धरती में जल है तो ही नदियों में जल रहेगा और बरसात होगी. धरती में उपलब्ध जल के सोते एक और जहाँ नदियों को साल भर पानी उपलब्ध कराते हैं वही ये जल वास्प के माध्यम से बादल बन बरसता हैं.
अब कोई भी कहेगा की इस का खेती से क्या सम्बन्ध असल में खेती में चल रही जमीन की जुताई का इस से बहुत गहरा सम्बन्ध है. जब भी जमीन में फसलों के उत्पादन के लिए जमीन को जोता जाता है. तब बारीक बखरी मिट्टी बरसात के पानी के साथ मिलकर कीचड में तब्दील हो जाती है जिस से बरसात का पानी जमीन में नहीं जाता है. वह तेजी से बहता है. जिस के कारण धरती प्यासी रह जाती है. इस कारण जहाँ पहले उथले कुए ओवर होते थे वहां एक हजार फीट नीचे तक पानी का नामो निशान नहीं है.
यदि हम आसमान से नीचे देखे तो हमें हर नदियों के केचमेंट में जुताई वाले खेत या रेगिस्थान ही नजर आएंगे. जहाँ पहले हरे भरे कुदरती वन हुआ करते थे, जहाँ पहले अनेक बाग बगीचे हुआ करते ,जहाँ अनेक स्थाई चारागाह हुआ करते थे वहां अब दूर दूर तक मोटे अनाज के खेत या पनपते रेगिस्थान ही नजर आएंगे. असल में जब से हरित क्रांति का आगाज हुआ है तब से हमारी नदियों के केचमेंट में भारी जुताई मशीनो से के जाने लगी जिस से तेजी से हरियाली खेतों में और खेत रेगिस्थान में तब्दील होने लगे.
हमारे यहाँ ऋषि पंचमी के पर्व में आज भी कांस घास की पूजा होती है और बिना जुताई करे पैदा हुए अनाजों को खाने की सलाह दी जाती है. कांस घास एक ऐसा पौधा है जो पानी की कमी के कारण पैदा होता है. इस की जड़े जमीन के भीतर बहुत गहराई जहाँ पानी रहता है तक चली जाती हैं. जिसे जितना खोदो वह उतनाबढ़ता है किसान जब देख लेते थे की उनके खेतों में कांस फूलने लगी है वेसमझ जाते थे की अब पानी नीचे चला गया है. यानि खेत सूखने लगे हैं. वे खेतों में जुताई बंद कर देते थे. कुछ सालों में खेत पुन: पानीदार हो जाते थे और कांस राम राम करती चली जाती थी.
असल में जो काम कुदरत कर सकती है वह इंसान नहीं कर सकता चाहे आप अरबो रु खर्च कर दीजिये. ऋषि खेती एक ऐसी ही बिना खर्च की खेती है जिस में जुताई नहीं की जाती है , जुताई नहीं करने से बरसात का पानी बहना पूरी तरह रुक जाता है वह जमीन में रहने वाले जीव जंतुओं, कीड़े मकोड़ों ,और सूक्ष्म जीवाणुओं के द्वारा बनाये छेदों के मध्यम से जमीन में चला जाता है. जुताई करने से ये छेद बंद हो जाते हैं इस लिए पानी जमीन न जाकर तेजी तेजी से बहता है साथ में उपजाऊ मिटटी को भी ले जाता है. खेत रेगिस्थान में तब्दील हो जाते हैं.
हमारे खेत भी जुताई करने के कारण कांस से भर गए थे और कुए सूख गए थे. किन्तु जैसे ही हमने खेतों में जुताई बंद कर खेती करना शुरु किया देखते ही देखते कांस गायब हो गयी, और कुए पानी से लबा लब हो गए. पूरे खेतों में साल भर नमी रहने लगी. वे हरियाली से भर गए.
इस लिए हमारा मानना है की यदि हमें आज अपनी पवित्र नदियों को बचाना है तो उस के केचमेंट में जुताई पर अंकुश लगाना बेहद जरुरी है. ऋषि खेती की उत्पादकता और गुणवत्ता हर हाल में वैज्ञानिक खेती से बहुत अधिक है जबकि लगत ९० % कम बैठती है. आज कल सुना है गंगा को बचने के लिए सरकार अरबों रु खर्च कर रही उसके लिए वह विश्व बेंक से भी कर्ज ले रही है इस की कोई जरुरत नहीं है .
केवल हमें बहते पानी को रोकने के वजाय बहती मिटटी को रोकने की जरुरत है. पानी अपने आप रुक जायेगा.
शालिनी एवं राजू टाइटस
ऋषि खेती
होशंगाबाद. म.प्र.
461001
वैसे तो हर नदी हमारी पवित्र और पूज्यनीय है किन्तु अब भारत की सभी नदियों के अस्तित्व का संकट मंडराने लगा है. नदियों में लगातार पानी कम हो रहा है वे सूखने लगी हैं, कम पानी होने कारण प्रदुषण चरम सीमा पर पहुँचने लगा है. यदि यही हाल रहा तो उन तमाम नदियों की तरह जो सूख चुकीं हैं गंगा जैसी जैसी अनेक बड़ी बड़ी नदियाँ भी सूख जाएँगी. इस लिए हमें पता लगाना पड़ेगा की इस समस्या के पीछे राज क्या है. क्यों नदियों में पानी कम होते जा रहा है? इस सम्बन्ध में अनेक लोगों के अनेक मत हैं.कोई कहता है की नदियों पर बन रहे बांधों के कारण नदियाँ सूख रही हैं. कोई कहता की नदियों के केचमेंट में जंगलो के कट जाने से पानी की कमी की समस्या निर्मित हुई है. कोई कहता अत्यधिक पानी के शोषण के कारण ये हाल हैं.कोई गाद के भर जाने से पानी कम हो रहा है कहता है.
हमें इस बात पर ध्यान देने की जरुरत है की आखिर नदियों में पानी कहाँ से आता है. इस में बड़े मत भेद है लोग कहते हैं जहाँ से नदियाँ निकलती हैं पानी वहां से आता है.
कितु हम जो पिछले दो दशको से अधिक समय से नर्मदा नदी के किनारे होशंगाबाद में अपने खेतों में निजी स्तर पर ऋषि खेती का अभ्यास कर रहे हमने कुछ और ही पाया है.
हमारा मानना है की नदियों का पानी धरती की देन है नदियों के केचमेंट में यदि धरती में जल है तो ही नदियों में जल रहेगा और बरसात होगी. धरती में उपलब्ध जल के सोते एक और जहाँ नदियों को साल भर पानी उपलब्ध कराते हैं वही ये जल वास्प के माध्यम से बादल बन बरसता हैं.
अब कोई भी कहेगा की इस का खेती से क्या सम्बन्ध असल में खेती में चल रही जमीन की जुताई का इस से बहुत गहरा सम्बन्ध है. जब भी जमीन में फसलों के उत्पादन के लिए जमीन को जोता जाता है. तब बारीक बखरी मिट्टी बरसात के पानी के साथ मिलकर कीचड में तब्दील हो जाती है जिस से बरसात का पानी जमीन में नहीं जाता है. वह तेजी से बहता है. जिस के कारण धरती प्यासी रह जाती है. इस कारण जहाँ पहले उथले कुए ओवर होते थे वहां एक हजार फीट नीचे तक पानी का नामो निशान नहीं है.
यदि हम आसमान से नीचे देखे तो हमें हर नदियों के केचमेंट में जुताई वाले खेत या रेगिस्थान ही नजर आएंगे. जहाँ पहले हरे भरे कुदरती वन हुआ करते थे, जहाँ पहले अनेक बाग बगीचे हुआ करते ,जहाँ अनेक स्थाई चारागाह हुआ करते थे वहां अब दूर दूर तक मोटे अनाज के खेत या पनपते रेगिस्थान ही नजर आएंगे. असल में जब से हरित क्रांति का आगाज हुआ है तब से हमारी नदियों के केचमेंट में भारी जुताई मशीनो से के जाने लगी जिस से तेजी से हरियाली खेतों में और खेत रेगिस्थान में तब्दील होने लगे.
हमारे यहाँ ऋषि पंचमी के पर्व में आज भी कांस घास की पूजा होती है और बिना जुताई करे पैदा हुए अनाजों को खाने की सलाह दी जाती है. कांस घास एक ऐसा पौधा है जो पानी की कमी के कारण पैदा होता है. इस की जड़े जमीन के भीतर बहुत गहराई जहाँ पानी रहता है तक चली जाती हैं. जिसे जितना खोदो वह उतनाबढ़ता है किसान जब देख लेते थे की उनके खेतों में कांस फूलने लगी है वेसमझ जाते थे की अब पानी नीचे चला गया है. यानि खेत सूखने लगे हैं. वे खेतों में जुताई बंद कर देते थे. कुछ सालों में खेत पुन: पानीदार हो जाते थे और कांस राम राम करती चली जाती थी.
असल में जो काम कुदरत कर सकती है वह इंसान नहीं कर सकता चाहे आप अरबो रु खर्च कर दीजिये. ऋषि खेती एक ऐसी ही बिना खर्च की खेती है जिस में जुताई नहीं की जाती है , जुताई नहीं करने से बरसात का पानी बहना पूरी तरह रुक जाता है वह जमीन में रहने वाले जीव जंतुओं, कीड़े मकोड़ों ,और सूक्ष्म जीवाणुओं के द्वारा बनाये छेदों के मध्यम से जमीन में चला जाता है. जुताई करने से ये छेद बंद हो जाते हैं इस लिए पानी जमीन न जाकर तेजी तेजी से बहता है साथ में उपजाऊ मिटटी को भी ले जाता है. खेत रेगिस्थान में तब्दील हो जाते हैं.
हमारे खेत भी जुताई करने के कारण कांस से भर गए थे और कुए सूख गए थे. किन्तु जैसे ही हमने खेतों में जुताई बंद कर खेती करना शुरु किया देखते ही देखते कांस गायब हो गयी, और कुए पानी से लबा लब हो गए. पूरे खेतों में साल भर नमी रहने लगी. वे हरियाली से भर गए.
इस लिए हमारा मानना है की यदि हमें आज अपनी पवित्र नदियों को बचाना है तो उस के केचमेंट में जुताई पर अंकुश लगाना बेहद जरुरी है. ऋषि खेती की उत्पादकता और गुणवत्ता हर हाल में वैज्ञानिक खेती से बहुत अधिक है जबकि लगत ९० % कम बैठती है. आज कल सुना है गंगा को बचने के लिए सरकार अरबों रु खर्च कर रही उसके लिए वह विश्व बेंक से भी कर्ज ले रही है इस की कोई जरुरत नहीं है .
केवल हमें बहते पानी को रोकने के वजाय बहती मिटटी को रोकने की जरुरत है. पानी अपने आप रुक जायेगा.
शालिनी एवं राजू टाइटस
ऋषि खेती
होशंगाबाद. म.प्र.
461001