Thursday, February 14, 2008

अनुदान ,कर्ज और मुआवजा

ऋषि खेती 

कर्ज ,अनुदान और मुआवजा किसानो को आत्महत्या की और प्रेरित कर रहा है। 


खेती के लिए जुताई ,खाद और दवाओं की  जरूरत नहीं है। 

जुताई , कृषि रसायनों  , जैविक  खादों और दवाओं पर दिये जाना वाला अनुदान और कर्ज न केवल किसानो को गरीब बना रहा है वरन् सरकार को भी कर्जदार बना रहा है और खेतों को बंजर बना रहा है। इससे एक और जहां क्लाईमेट चेंज और गर्माति धरती की समस्या का सीधा संम्बन्ध है वहीं इससे हमारे भोजन ,हवा,और पानी मे विष घुल रहा है।
कहने को तो सरकारी अनुदान किसानो को सहायता के रुप मे दिया जाता है किन्तु यह सब का सब खाद और दवा बनाने वाली कम्पनियो की जेब मे चला जाता है।
हम पिछले तीस  सालों से बिना खाद और दवाओं के, बिना जुताई की खेती कर रहे हैं। हमारी उत्पादकता और गुणवत्ता वैज्ञानिक खेती से अधिक है। इस आधार पर हम कह सकते हैं कि खाद और दवाओं का एक गैर जरुरी गोरख धन्दा सरकार की मदद से चल  रहा है जो किसानों को न केवल गरीब बना रहा है वरन उन्हे कर्ज में डूब कर आत्महत्या करने पर पर मजबूर कर रहा है।
खेतो मे जुताई, और रासायनो का उपयोग करने से खेत की उपजाउ और जल धारण शक्ति नष्ट हो जाती है इसलिये खेत कमजोर हो जाते है। कमजोर खेतों में कमजोर फसल उत्पन्न होती है। इससे हमारी फसलें, मिटटी, और पानी प्रदूषित होते और किसान घाटे मे चले जाते हैं। वे कर्ज मे फंस जाते हैं न पटाने के कारण वे आत्म हत्या करने पर मजबूर हो जाते हैं। अब तो हरित क्रान्ति के पितामय के रुप मे जाने वाले विष्व विख्यात कृषि वैज्ञानिक एवं सासंद माननीय डा. एम एस स्वामीनाथन भी जुताई ,कृषि  रसायनो का विरोध करने लगे हैं।  यदि हमे हमारी खेती किसानी को बचाना है तो हमे भूजल,मिटटी और जैव-विविधताओं  को बचाने वाली खेती को अमल मे लाना ही पडेगा। इसके लिये जुताई ,रासायनिक खादों और दवाओं पर अंकुष लगाने की पहल करना जरुरी है।
अमेरिका सहित अनेक सम्पन्न देषों मे बिना जुताई की जैविक  खेती अब तेजी से इसलिये पनप रही है कि वहां इस खेती के लिये अनुदान दिया जाता है। हमारी सरकार को हवा, पानी, मिटटी और भोजन के प्रदूषण को रोकने और किसानो को बचाने के लिये अविलम्ब घातक खाद और दवाओं पर रोक लगा देना चाहिये तथा उन किसानों को जो पर्यावर्णीय खेती कर रहे हैं उन्हे प्रोत्साहित करने के लिये अनुदान देना चाहिये।













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