Sunday, February 24, 2008

डॉ स्वामीनाथन का लेख

पाठकों के पत्र

संदर्भ- द्वष्टिीकोण 13 फ. 08 ”कृषि को मंदी से उबारने की पहल” के संदर्भ में

विषय- बिना जुताई की कुदरति खेती

महोदय,

उपरोक्त लेख एक सच्चे वैज्ञानिक की पहल है। माननीय सांसद सदस्य एवं हरित क्रान्ति के ख्याति प्राप्त वैज्ञानिक श्री डा. एम.एस. स्वामिनाथन जी का यह कहना कि एक ओर जहां हरित क्रान्ति से अनाज के उत्पादन मे हम आत्म निर्भर हूए हैं वहीं इसके लिये हमने अपने खेतों और किसानो की बहुत बड़ी कुर्बाानी दी है।

खेतों का पर्यावरण नष्ट हो रहा है तथा किसान आत्महत्या करने लगे हैं।

यदि हमे खेतों और किसानों को बचाते हुए कृषि की आत्म निर्भरता को स्थाइत्व प्रदान करना है तो हमे डीज़्ाल और सिंचाई की खपत को कम करते हुए रासायनिक उर्वरकों और घातक क्रषि रासायनों पर अंकुष लगाना होगा। उत्पादकता एवं पर्यावरण के सुधार पर विषेष ध्यान देने की आवष्यकता है।

हम पिछले बीस बरसो से अधिक समय से बिनाजुताई की कुदरति खेती कर रहे हैं। इससे हमारे खेतों को आर्थिक, सामाजिक, एवं पर्यावर्णीय लाभ एक साथ मिल रहे हैं। अनेक किसान एवं पर्यावर्णीय एन.जी.ओ इन्हे देखने आते हैं। बिनाजुताई की पर्यावर्णीय खेती अब अमेरिका एवं अन्य देषों मे बडे पैमाने पर की जाने लगी है।़

यदि हमे वाकई क्रषि क्षेत्र मे हो रही आत्महत्याओं और बढ. रहे दुखों को कम करना है बिना जुताई की खेती के अलावा कोई विकल्प नहीं है। जुताई करने से खेत बंजर होते हैं तथा भूजल गिरता है। बिनाजुताई से हरियाली बढती है,वाटरशेड का प्रबन्धन हो जाता है, आग्रेनिक एवं बायो तकनीक भी इससे सफल हो जाती हैं। उत्पादकता मे स्थाइत्व मिलने के साथ साथ गुणवत्ता मे बहुत सुधार आता है।

सरकार जो भी अनुदान दे रही है वह प्रदूषणकारी क्रषि रसायन बनाने वाली फेक्टरियों को मिलता है इसे अविलम्ब बन्द कर बिनाजुताई खेती करने वाले किसानो को देना चाहिये जिससे आत्म हत्यायंे और अन्य कष्ट दूर हों।

शलिनी एवं राजू टाईटस

बिनजुताई की कुदरति खेती के किसान

खोजनपुर होशंगाबाद