Sunday, February 24, 2008

बदहाल खेती की पुकार

बदहाल खेती की पुकार

महोदय,

23 फ.08 दैनिक भास्कर के द्वष्टि कोण मे प्रकाषित लेख से हम पूरी तरह असहमत हैं। इस लेख मे लेखक श्री देविन्दर शर्मा जी ने किसानों को एक अन्नदाता के रुप मे नहीं वरन् एक भिकारी के रुप मे पेष किया है। इसका हमे अत्यन्त खेद है।

उन्होने किसानो की हालत मे सुधार करने हेतु माननीय मुख्य मन्त्री जी से मोज़ूदा जुताई ,खाद और दवाइयों के लिये दिये जाने वाले कर्ज की ब्याज दर कम करने तथा अनुदान को सीधे देने के बारे मे मुख्य मन्त्री से आग्रह किया है। जबकि टृेक्टर ,खाद,और दवाओं के नाम से जो भी कर्ज और अनुदान दिया जाता है एक तो वह गैर जरुरी है तथा वह सब फेक्टरियों के मालिकों की जेब मे चला जाता है। इससे जहां किसान गरीब हो रहे हैं वहीं ये हमारी मिटटी ,फसलों ,और पानी को प्रदूषित कर रहे हैं। इनसे ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याओं का सीधा संम्बन्ध है।

भोपल गैस त्रासदी मे क्या हुआ चने की इल्ली को मारने के लिये ज़हर बनाकर न जाने कितने मासूमो की जान ले ली गई।

असल मे खेती की बदहाली के लिये टृेक्टरों ,खाद दवाओं पर दिया जाने वाला अनुदान और कर्ज जिम्मेवार है। आजकल बिना जुताई की खेती का जमाना आ चुका हैे अमेरिका मे 30 प्रतिषत से अधिक किसान बिनाजुताई की कुदरति खेती करने लगे हैं। उन्होने सिघ्द कर दिया है कि खेती के लिये जुताई ,खाद और दवायें पूरी तरह गैर जरुरी हैं। वहां प्रदूषणकारी खाद और दवाओं पर कोई सहायता नहीं दी जाती है। वरन् प्रदूषण निवारण हेतु बिनाजूताई की खेती को स्वयं किसान यूनियन बना कर पुरस्कार देते हैं।

प्रदूषकारी कार्यो के लिये कम ब्याज का कर्ज, और अनुदान किसानो को भिकारी समझ दिये जाने का हम विरोध करते हैं। इससे केंसर जैसी बीमारियंा बढ़ रही ंहैं। किसान आत्म हत्या कर रहे हैं।

शालिनी एवं राजू टाईटस

बिनाजुताई की कुदरति खेती के किसान

खोजनपुर, होषंगाबाद म.प्र.





No comments: