Wednesday, January 20, 2016

सूखे की समस्या : समाधान ऋषि खेती

सूखे की समस्या : समाधान ऋषि खेती 

मारा ऋषि खेती फार्म होशंगाबाद की जीवन दायनी माँ नर्मदा नदी के तट पर बसा है। जिसमे पानी की कोई कमी नहीं है। हमारे फार्म में उथले देशी कुए हैं जो 40 फ़ीट तक ही गहरे हैं जो साल भर पानी से लंबा लब रहते हैं। एक और जहाँ हमारे आस पास के खेतों के कुए भरी बरसात में दम  तोड़ देते हैं वहीं  हमारे कुए भरी गर्मी में भी भरे रहते हैं। 
बिना जुताई ,बिना खाद ,बिना दवाई  धान का पौधा 

किन्तु ऐसी स्थिती तब नहीं थी जब हम आधुनिक वैज्ञानिक खेती को अमल में लाते थे जिसमे गहरी जुताई और खरपतवार नियंत्रण जरूरी रहता है।  हरयाली को दुश्मन मान कर मार दिया जाता है। यह परिस्थिति  तब बनी जब हमने बिना जुताई की कुदरती खेती को अमल में लाना शुरू किया। 

इस बात से यह सिद्ध हो जाता है की
 " जमीन में जल के  संचयन के लिए हरियाली आधार है और जमीन की जुताई  हरियाली का दुश्मन है। "
 असल में जब भी हम जमीन की जुताई करते हैं जुती हुई बारीक मिटटी बरसात के पानी के साथ मिल कर  कीचड़ में तब्दील हो जाती है जो  बरसाती के पानी को जमीन में नहीं जाने देती है इसलिए पानी तेजी से बह जाता है साथ में अपने साथ जुती  हुई बारीक उपजाऊ जैविक खाद को भी बहा  कर ले जाता है जिस से भूमिगत जल का स्तर लगातार घटता जाता है और खेत कमजोर  होते जाते हैं  

ऋषि खेती करने के लिए जमीन की जुताई को नहीं किया जाता है जिस से जमीन अपने आप हरियाली से ढक जाती है। ये हरियाली पानी की जननी है जिसे हम खरपतवार कहते हैं।  असल में खरपतवार कुदरती भूमि ढकाव का प्रबंध है जिसे बचाने से जमीन की जैव-विविधता बच जाती है जैसे केंचुए , चीटी, चूहे आदि जो जमीन को बहुत अंदर तक पोला बना देते हैं जिस से बरसात का पानी जमीन में समा  जाता है। 
जब से हमने जुताई को बंद किया तबसे कभी हमने बरसात के पानी को खेतों से बह  कर बाहर निकलते नहीं देखा है  वह पूरा का पूरा जमीन में समा जाता है। 

जुताई नहीं करने से खेत वर्षा वनो के माफिक काम करने लगते हैं जो एक ओर  बरसात को आकर्षित करते हैं वहीं बरसात के जल को जमीन में संचयित करते हैं। जिस से सूखे का समाधान हो जाता है। 
जमीन की जुताई खेती में हजारों सालों से बहुत पवित्र  काम माना जाता रहा है इसलिए किसान इसे करते हैं और कृषि वैज्ञानिक भी जानते हुए  इसका विरोध नहीं कर पाते है। किन्तु आजकल बिना जुताई की खेती की अनेक विधियां अमल में लाई जाने लगी है। इसका मूल उदेश्य खेतों की जैविक खाद और बरसात के जल का संचयन है। 
असल में किसान खरपतवारों और छाया के डर के बार बार जुताई करते रहते हैं जबकि ये खरपरवारे जमीन में जैविक खाद और जल के स्रोत हैं।
 एक बार की जमीन की जुताई से जमीन की आधी  जैविक खाद पानी के साथ बह जाती है इस प्रकार हर बार करीब १०-१५ टन /एकड़ जैविक खाद का नुक्सान हो जाता है। जिसकी कीमत लाखों /करोड़ों में है।
सूखे का मूल का कारण खेतों में की जा रही जुताई है जो अनावश्यक है। इसके कारण ही जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग समस्या बन रही है।  बार बार बाढ़  आने का भी यही कारण है।

अब जब यह दिखाई देने लगा है की खेत मरुस्थल में तब्दील हो रहे हैं और खेती किसानी घटे का सौदा बनती जा रही है तो जैविक खेती की बात हो रही है किन्तु जुताई के चलते जिसमे टनो जैविक खाद बह  जाती है का कोई औचित्य नहीं है।