सही जैविक खेती से सुधरेगी किसानो की हालत
प्रधान मंत्रीजी ने सिक्किम प्रदेश को जैविक प्रदेश का नाम देकर और सभी राज्यों का इसका अनुसरण करने की अपील कर सही में खेती किसानी में चल रही समस्या के समाधान के लिए बहुत बड़ा काम किया है।
बिना जुताई की जैविक खेती करने का रोलर इस यंत्र से खरपतवारो को जमीन पर सुला दिया जाता है और बिनजुताई करे बोनी कर दी जाती है। इसमें सिंचाई भी जरूरी नहीं है. |
वैसे तो जैविक खेती जो ऑर्गेनिक खेती का अनुवाद है कोई बहुत नया नाम नहीं है। ऑर्गेनिक खेती का आविष्कार १९२४ में इंदौर मद्यप्रदेश में दुनिया भर में आर्गेनिक खेती के पितामय जग प्रसिद्ध डॉ हावर्ड ने किया है। उन दिनों जब रासायनिक खेती का भारत में चलन नहीं था इसकी विदेशों में बहुत चर्चा हो रही थी। इसी विकल्प में उन्होंने भारत की देशी परंपरागत खेती किसानी का अनुसरण करते हुए इस नयी विचार धारा को जन्म दिया था।
उन्होंने यह पाया था कि भारत में परंपरागत खेती किसानी जिसमे पशु पालन के साथ खेती की जाती है क्यों ?हजारों सालो से "टिकाऊ " है। उन्होंने इसके लिए भारतीय परंपरागत खेती किसानी में अपनाई जा रही तकनीकों के आधार पर इंदौर में रिसर्च कर यह पाया की की आज भी यदि भारतीय खेती किसानी का सही मायने में अनुसरण किया जाये तो हम आयातित रासायनिक खेती के प्रदूषण कारी प्रभाव से बच सकते हैं।
इसी आधार पर उन्होंने सभी कृषि अवशेषों जैसे नरवाई ,पुआल ,पत्तियां ,तिनके आदि से जैविक खाद बनाने की विधि बनाई जो भारत से कहीं ज्यादह विदेशों में जहाँ गोबर ,मुर्गि की बीट सूअर आदि के अवशेषों का डिस्पोजल समस्या थी को अपनाया जाने लगा। इसके कारण पूरे विश्व में रासायनिक खेती पर सवाल खड़े होने लगे। तब से रासयनिक खेती विवादों में घिरी है जो आज तक है।
अब जब भारत में बड़े पैमाने पर रासायनिक खेती के पर्यावरणीय ,सामाजिक और आर्थिक नुक्सान नजर आने लगे हैं तो हम जो हमेशा तकनीकों के वास्ते विदेशों का मुंह तकते रहते हैं हमे जैविक खेती एक रामबाण तकनीक के रूप में नजर आ रही है।
किन्तु हमे यह नहीं भूलना चाहिए कि भारतीय परंपरागत देशी खेती किसानी सबसे बेहतर थी और है इसी लिए आज भी टिकाऊ है। इस खेती में पशुपालन के समन्वय से देशी खेती किसानी में असिंचित बिना जुताई की खेती ,हलकी जुताई की खेती किसानी में ऐसी अनेक विधियां हैं जिनके अनुसरण की जरूरत है।
जुताई आधारित विदेशी ऑर्गेनिक फार्मिंग हमारे देश के लिए के उपयुक्त नहीं है। जुताई करने से बरसात का पानी जमीन में नहीं समाता है वह तेजी से बहता है अपने साथ कई टन जैविक खाद को बहा कर ले जाता है। ऋषि पंचमी का पर्व हमे यही बताता है। इस पर्व में कांस घास की पूजा की जाती है और बिना जुताई के अनाजों का सेवन किया जाता है। कांस घास जब खेतों में फूलने लगती है इसका मतलब यह है खेत सूखने लगे है इन्हे सही करने के किसान खेतों को पड़ती कर दिया कर देते थे उसमे पशु चराये जाते थे जिस से खेत पुन : पानीदार और उर्वरक हो जाते हैं।
जुताई आधारित विदेशी ऑर्गेनिक फार्मिंग हमारे देश के लिए के उपयुक्त नहीं है। जुताई करने से बरसात का पानी जमीन में नहीं समाता है वह तेजी से बहता है अपने साथ कई टन जैविक खाद को बहा कर ले जाता है। ऋषि पंचमी का पर्व हमे यही बताता है। इस पर्व में कांस घास की पूजा की जाती है और बिना जुताई के अनाजों का सेवन किया जाता है। कांस घास जब खेतों में फूलने लगती है इसका मतलब यह है खेत सूखने लगे है इन्हे सही करने के किसान खेतों को पड़ती कर दिया कर देते थे उसमे पशु चराये जाते थे जिस से खेत पुन : पानीदार और उर्वरक हो जाते हैं।
आयातित ऑर्गेनिक फार्मिंग में ट्रेक्टरों से की जाने वाले जुताई को हानिकर नहीं माना जाता है जिस से खेतों की उर्वरकता और नमी का बहुत नुक्सान होता है। इसमें और रासायनिक खेती में अंतर नहीं है। किन्तु इसका मतलब नहीं है की किसान मशीनो का उपयोग बिकुल बंद कर दें यह अब सम्भव भी नहीं।
इसलिए किसानो को बिना जुताई की जैविक खेती को अमल में लाना चाहिए जिसमे खेती और कम पावर के ट्रैक्टरों से क्रिम्पर रोलर की मदद से खेती की जाती है। इसे बैलों से या सीधे बीजों को छिड़क कर भी आसानी से किया जा सकता है।
अब जब सरकार ने मान लिए है कि रासायनिक खेती हर हाल में नुकसान दायक है हमे सही जैविक खेती अपनाने की जरूरत है अन्यथा वही हाल होगा जो रासायनिक खेती में हो रहा है।
अब जब सरकार ने मान लिए है कि रासायनिक खेती हर हाल में नुकसान दायक है हमे सही जैविक खेती अपनाने की जरूरत है अन्यथा वही हाल होगा जो रासायनिक खेती में हो रहा है।