Sunday, October 25, 2015

जुताई का क्या नुक्सान है ?

जुताई का क्या नुक्सान है ?


मिट्टी जिसे हम  निर्जीव समझते हैं उसे सूक्ष्म दर्शी यंत्री यंत्र से देखने पर पता चलता है की यह असंख्य सूख्स्म जीवाणुओं का समूह है है जिसमे निर्जीव कुछ भी नहीं है। यह इस बात घोतक है की मिट्टी में भी हमारे शरीर के माफिक जान होती है ,वह भी साँस लेती है ,पानी पीती  है  तथा खाना खाती है। मिट्टी की जैविकता जितनी समृद्ध रहती है मिट्टी उतनी ताकतवर रहती है उसमे ताकतवर फसलें पैदा होती हैं।


एक बार जंगल की बिना जुताई वाली जमीन को जब हम साफ करते हैं उसमे हल चला देते हैं तो उसकी आधी  जैविकता नस्ट हो जाती है और यही क्रम हर बार की जुताई के कारण रहता है। जुताई से जमीन लगातार कमजोर होते जाती है। जुताई के कारण जुती  हुई बारीक मिट्टी कीचड में तब्दील हो जाती है जो बरसात के पानी को जमीन के भीतर नहीं जाने देती है जिस से पानी तेजी से बहता है अपने साथ मिट्टी को भी बहा कर ले जाता है। इस से एक और जहाँ बाढ़ आ जाती है वहीं सूखा पड़  जाता है। करीब १५ टन जैविक खाद हर साल एक एकड़ से बह कर खेत से बाहर चली जाती है।


कुछ वैज्ञानिकों का कहना है की जमीन की जुताई करने से जमीन का कार्बन (जैविक खाद ) ,गैस बन कर उड़ जाता है यह अतिरिक्त नुक्सान इसे ग्रीन गैसों का उत्सर्जन कहा जाता है जिसका सम्बन्ध ग्लोबल वार्मिंग ,क्लाईमेट चेंज से है जिसके कारण अनेक प्रकार की समस्याएं निर्मित हो रही हैं।

जब तेज हवा चलती है तब खेतों की जुती बारीक मिट्टी हवा के साथ उड़ जाती है। इस प्रकार कमजोर होती जमीन में कृषि कार्य बहुत कहीं हो जाता है उसमे अनेक प्रकार खादों क डालना  पड़ता है। जमीन की कमजोरी के कारण कमजोर फसलें पैदा होती हैं जिनमे अनेक प्रकार की बीमारियां लगती है।
हवा से उड़ती मिट्टी 

कुदरत अपनी जमीन को हरियाली से ढंकने का काम करती है किन्तु जुताई कर हरियाली को लगातार मारते रहते हैं इस कारण कठिन वनस्पतियां उत्पन्न हो जाती है जिन्हे हम खरपतवार कहते है। किन्तु जुताई नहीं करने से खादों की कोई कमी नहीं रहती है फसलों में भी कोई बीमारी नहीं आती है। 

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