Friday, October 23, 2015

पढ़ना लिखना छोड़ो ,कुदरती खेती करना सीखो ओ पढ़ने लिखने वालो

पढ़ना लिखना छोड़ो ,कुदरती खेती करना सीखो ओ पढ़ने लिखने वालो 

ब में छोटा था मुझे स्कूल जाना बिलकुल अच्छा नहीं लगता था। मुझे मार मार कर स्कूल भेजा जाता था। इसलिए में अपना बस्ता लेकर मेरे दादाजी के कुदरती बगीचे में चला जाता था , जहाँ दादाजी एक छोटी सी झोपडी में रहते थे।  मुझे देख कर वो बहुत खुश हो जाते थे वो कभी नहीं पूछते  की तुम स्कूल क्यों नहीं गए।  

उनके बगीचे में रंग बिरंगी तितलियाँ अनेको चिड़ियाँ रहती थीं वे चिड़ियों को दाना ओर पानी देकर आकर्षित किया करते थे। उनके बगीचे में तरह तरह के फल सब्जियां और उनकी खुशबू  मुझे आज तक याद है। मै दिन भर दादाजी के बगीचे में खूब खेलता दादाजी मुझे कुछ न कुछ नया नया खाने को देते रहते थे। 

किन्तु जब शाम हो जाती और स्कूल की छुट्टी होने लगती मुझे घर जाकर पिताजी की मार का डर  सताने लगता था। दादाजी मेरी मन: स्थिति भांप जाते और अपने संरक्षण में घर तक छोड़ने आते थे जैसे ही पिताजी को देखते वो डांट  कर उन्हें चुप करा देते थे और में डांट मार से बच जाता था। 

अब क्या था मुझे स्कूल से बचने का रास्ता मिल गया में रोज यही ही करने लगा किन्तु एक दिन भी दादाजी ने मुझे इस काम के लिए नहीं डांटा ,वे स्वं  भी कभी स्कूल नहीं गए थे।  उनकी जीवन कहानी भी अजीब है। वो जब छोटे थे जंगलों में अकेला भटकते अंग्रेज शिकारियों को मिले थे उन दिनों प्लेग  फैला था  पूरा गाँव पलायन कर गया था उनके माता पिता और एक बहन का देहांत हो गया था। अंग्रेजो ने उन्हें होशंगाबाद स्थित  क्वेकर अनाथ आश्रम में डाल  दिया था। जहाँ उन्हें पढ़ाने की बहुत कोशिश हुई किन्तु वे नहीं पढ़ सके और एक अच्छे कुक बन गए। उसके बाद उन्होंने कुदरती  शुरू कर दिया था। 

वे जंगलों और नदी के करीब जमीनो को किराये से लेकर उसमे कुदरती खेती करते थे जिसे  देख और सीख कर में बड़ा हुआ किन्तु विडंबना यह है की स्कूल आज कल हमारा पीछा नहीं छोड़ता  है हम भी डांट  मार खाते स्कूल कालेज से आखिर फेल अधिक पास कम होते हुए निकल गए ,किन्तु पढ़ लिख जाना  भी एक अभिशाप है आप को कुछ न कुछ करना पड़ता है। नौकरी दूसरी गुलामी है जिसने ३० साल और घसीटा रिटायर होने के बाद ऐसा लगा कि  हम बहुत बड़ी गुलाम नींद से जगे है। 

उसके बाद हम फुल  टाइम कुदरती किसान बन गए और आज हम दिन में आराम से अपने कुदरती खेतों में तमाम हरियाली ,पेड़ पौधों ,रंग बिरंगी तितलियों ,चिड़ियों के बीच दिन में सोते हुए कुदरती खेतों का मजा ले रहे हैं।  

कुदरती खेती एक "कुछ मत करो " सिद्धांत पर आधारित है। इसमें जुताई ,खाद ,दवाइयों और मशीनो की कोई जरूरत नहीं है। कुदरती खेत एक प्रकार का जंगल है। जिसमे हम आसानी से जिंदगी बसर कर सकते है। 
इसलिए हम कहते हैं "ओ पढ़ने लिखने वालो पढ़ना लिखना छोड़ो और कुदरती खेती करना सीखो "


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