बिना जुताई की खेती :ऋषि-खेती
कुर्सी खापा ,पिपरिया होशंगाबाद, म. प्र.
इसमें कोई संदेह नहीं है की पिछले हजारों सालों से खेती करने के लिए जमीन की जुताई को एक पवित्र काम माना जाता रहा है किन्तु यह सत्य नहीं है। असल में जुताई का आधार हिंसा है दुनिया भर में हो रही अनेक प्रकार की हिंसा में यह सबसे बड़ी हिंसा है। जिसे हमारे अधिकतर किसानो ,समाज ,नेताओं , वैज्ञानिकों ,धर्म गुरुओं का संरक्षण प्राप्त है।
ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं की प्राचीन काल में किसान जुताई करे बिना खेती करते थे। जुताई कर खेती करने वाले अनेक किसान जुताई के कारण कमजोर होने वाली जमीन को जुताई बंद ठीक कर लिया करते थे। ऋषि पंचमी का पर्व जिसमे कांस घास की पूजा होती है और बिना जुताई के अनाजों को फलहार के रूप में सेवन किया जाता है इस बात का उदहारण है की जुताई करना गलत है।
जुताई करने से बरसात का पानी जमीन के भीतर नहीं जाता है वह तेजी से बहता है और जमीन की जैविक खाद (कर , कार्बन ) को भी बहा कर ले जाता है। इस कारण जमीन के ऊपर रहने वाली हरियाली भी मर जाती है जो बरसात के होने और बरसात के जल को संरक्षित करने में मुख्य भूमिका निभाती है। हरियाली नहीं तो पानी नहीं।
खेती करने से पहले खेतों के पेड़ों को काट दिया जाता है ,पेड़ों के ढूँटों और जड़ों को साफ़ कर दिया जाता है। फिर खेतों में हल चला कर जमीन को खूब जोता और बखरा जाता है। ऐसा करने से खेतों में रहनी वाली तमाम जैव विवधताओं की हिंसा हो जाती है।
हर हिंसा अपना असर दिखाती है किसानो की गरीबी ,आत्म हत्याएं ,बेरोजगारी , महानगरों में बढ़ रही अनेक प्रकार की बीमारियां ,सूखा और बाढ़ आदि सब के पीछे जमीन की जुताई का सबसे बड़ा हाथ है। जुताई करने से खेत मरुस्थल में तब्दील हो जाते हैं। बरसात अनियमित हो जाती है बरसात होती नहीं है या बहुत कम हो जाती है या बहुत तेज हो जाती है। उत्तराखंड ,जम्मू कश्मीर ,असम आदि सब इसके उदाहरण हैं।
हमे अपने पारिवारिक खेतों में बिना जुताई की कुदरती खेती को करते हुए करीब २८ साल हो गए हैं इस से पहले हम खेतों में मशीनी जुताई आधारित और खाद दवाई वाली खेती करते थे। जिसके कारण हमारे खेत बंजर हो गए थे और हम कंगाली की कगार पर आकर खड़े हो गए थे। हमे खेती में हर साल घाटा हो रहा था। खेती के डॉ. हमे जो बताते वही करते थे किन्तु लाभ का कोई पता नहीं था हम एक कोल्हू के बैल की तरह खूंटे के गोल गोल घूम चक्कर लगाते हुए सोचते थे की अब बस मंजिल आने वाली है किन्तु यह भ्रम तब टूटा जब हम कंगाल जैसी हालत में पहुँच गए थे।
वह तो भला हो हमारे गुरु जापान के मस्नोबू फुकूओकाजी का जिन्होंने अपने अनुभवों को" एक तिनके से आयी क्रान्ति " नामक पुस्तिका में लिख कर दुनिया को यह बता दिया की खेती किसानी से जुडी सब मुसीबत की जड़ में "जुताई " है। इसलिए हमने तुरंत जमीन की जुताई को बंद कर दिया और खेतों में अपने आप पैदा होने वाली तमाम वनस्पतियों को बचाना शुरू दिया। जिन्हे आम किसान कचरा कहते हैं।
इस कचरे ने हमारी किस्मत ही पलट दी हर साल घाटे वाली खेती अब लाभ की खेती में तब्दील हो गयी थी। हर साल हम खेत की जुताई ,बीज ,खाद दवाइयों के खर्च से परेशान रहते थे वो सब बंद हो गया और हमारे खेत उपजाऊ और पानीदार हो गए।
जुताई बंद करने के पहले साल ही हमारे खेत अनेक प्रकार की घासों से ढँक गए थे जिसमे सबसे अधिक कांस घास थी। ये वही घास है जिसकी ऋषि खेती में पूजा होती है जैसे गाय की पूजा होती है धरती माँ की पूजा होती है। पूजा का मतलब है इन्हे नहीं मारना ,इनकी रक्षा करना। जब हम इनकी रक्षा करेंगे तो ये हमारी रक्षा करने लगते हैं। ऐसा हमारे साथ हुआ यदि हम जुताई बंद नहीं करते तो हम भी नहीं बचते।
बिना -जुताई की खेती अमेरिका ,जापान जैसे अनेक देश करने लगे हैं वे मशीनो और रसायनो का उपयोग करते हैं।जिसमे" नो टिल कंज़रवेटिव फार्मिंग " सबसे अधिक अपनाई जा रही है। इसमें किसान मशीनो से जमीन में एक पतली लाइन बना कर बीज बो देते हैं किन्तु वे खरपतवारों को मारने के लिए बहुत ही जहरीला नींदा मारक जहर छिड़कते हैं। जिस से जमीन और फसलें जहरीली हो जाती हैं। मशीनो का खर्च अलग है।
दूसरी विधि है जिसे अमेरिका में किया जाता है है वह है " आर्गेनिक नो टिल फार्मिंग " जिसमे जमीन की जुताई और रसायनो का उपयोग बिलकुल नहीं होता है नींदों को जमीन पर जहाँ का तहाँ हरा ही सुला दिया जाता है। तथा बीजों की बुआई बिना जुताई की बोने की मशीन से कर दिया जाता है। यह विधि कारगर है। इसे किसान आसानी से अपना सकते हैं।
तीसरी सबसे आसान और कारगर विधि है ऋषि खेती की है। जिसमे हम बीजों को सीधा या कपे (कीचड) वाली मिट्टी से बीजों की बीज गोलियां बनाकर कचरों( नींदों ) में फेंक देते हैं। इस में हिंसा बहुत कम हो जाती है। कपे वाली मिट्टी बहुत ही अधिक ताकतवर खाद होती है इसमें असंख्य जमीन को उर्वरक बनाने वाले सूख्स्म जीवाणु रहते है। बीज अंकुरित होकर तमाम वनस्पतियों जिन्हे हम कचरा समझते हैं के साथ बखूबी पनपते हैं। बीज गोली में सुरक्षित हो जाते हैं अनुकूल वातावरण में वे उग आते हैं जैसे जंगलों में बीज उगते हैं। वनस्पतियों से जमीन ढंकी रहती है जिनमे असंख्य जंतु कीड़े मकोड़े ,सूख्स्म जीवाणु रहते हैं जो जमीन को उर्वरक और पानीदार बना देते है। इसमें ऊपरी सिंचाई की नहीं के बराबर जरुरत रहती है ढकाव जमीन को ठंडा रखता है जिस से भूमिगत वास्प सिंचाई का काम करने लगती है।
जब १९८८ में हमारे गुरु हमारे फार्म पर पधारे थे उन्होंने हमारे द्वारा अपनाई जा रही ऋषि खेती को विश्व में न. वन दिया था किन्तु हम इसे उस समय समझ नहीं पाये थे किन्तु आज हम बहुत खुश हैं की हमारी ऋषि खेती तकनीक विश्व की तमाम हाई-फाई तकनीकों अच्छी सिद्ध हो रही है। अनेक देश इसे अपना रहे हैं।
हाल ही में ऋषि खेती के अनुभवों से प्रेरित हो कर चांदनी बहन (+919711466466 ) ने अपने परिवार और मित्रों के साथ मिलकर होशंगाबाद में टाइगर प्रोजेक्ट के करीब ग्राम कुर्सी खापा में करीब छह एकड़ जमीन में एक ऋषि खेती फार्म स्थापित किया है। इस फार्म में चांदनी बहन गांव के स्त्री पुरुष और बच्चों से कपे वाली मिट्टी की बीज गोलियां तैयार करवाती हैं। जब इन लोगों के पास समय होता है सब मिलकर गोलियां बनाते है। यह गतिविधि गांव वालों को बहुत पसंद आ गयी है वे आराम से घर में बैठ कर बहुत कम समय में कई एकड़ खेत के लिए गोलियां बना लेते हैं इस से इन लोगों को आमदनी हो जाती है। इस योजना से अनेक लाभ है पहला गांव वालों को अतिरिक्त समय में आर्थिक लाभ दूसरा ऋषि खेती प्रशिक्षण तीसरा मशीनो पर होने वाले खर्च में कमी चौथा गांव का पर्यावरण संरक्षण। इस योजना का मूल उदेश्य सब के साथ मिलकर सबको कुदरती आहार और आर्थिक लाभ अर्जित करवाना है। चांदनी बहन चाहती है कि मनरेगा ,आंगनबाड़ी और मध्यान भोजन जैसी सरकार की महत्वपूर्ण योजनाओ को कारगर बनाने में लिए ऋषि खेती एक मील का पत्थर साबित हो।
ऋषि खेती फार्म असली कुदरती अस्पताल हैं यहाँ रहकर हम हवा , पानी और आहार का सेवन कर कैंसर जैसी महामारियों को भी भगा सकते हैं। आजकल खेतों में इतने भयंकर जहर डाले जा रहे हैं जिनके कारण हमारे खून में जहर घुल रहा है जिससे अनेक बीमारियां उत्पन्न हो रही है। कुदरती आहार से इस समस्या को कम करने का प्रयास है। हम इस फार्म को कुदरती अस्पताल के रूप में देखते हैं जहाँ दूर दूर से लोग आकर छोटी छोटी कुटियां बना कर रहेंगे, ऋषि खेती करेंगे और स्वास्थ का लाभ लेकर चले जायेंगे। यह स्थान मशहूर हिल स्टेशन पंचमढ़ी के बिलकुल पास है।
हम सब जानते हैं की कोई भी अच्छा काम अकेले के बस में नहीं रहता है इसलिए इस लेख को पढ़ने वालों से अपील करते हैं की ऋषि खेती योजना एक यज्ञ हैं इसमें आहुति देकर सहयोग प्रदान करें।
धन्यवाद
राजू टाइटस
(+919179738049 )
कुर्सी खापा ,पिपरिया होशंगाबाद, म. प्र.
इसमें कोई संदेह नहीं है की पिछले हजारों सालों से खेती करने के लिए जमीन की जुताई को एक पवित्र काम माना जाता रहा है किन्तु यह सत्य नहीं है। असल में जुताई का आधार हिंसा है दुनिया भर में हो रही अनेक प्रकार की हिंसा में यह सबसे बड़ी हिंसा है। जिसे हमारे अधिकतर किसानो ,समाज ,नेताओं , वैज्ञानिकों ,धर्म गुरुओं का संरक्षण प्राप्त है।
ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं की प्राचीन काल में किसान जुताई करे बिना खेती करते थे। जुताई कर खेती करने वाले अनेक किसान जुताई के कारण कमजोर होने वाली जमीन को जुताई बंद ठीक कर लिया करते थे। ऋषि पंचमी का पर्व जिसमे कांस घास की पूजा होती है और बिना जुताई के अनाजों को फलहार के रूप में सेवन किया जाता है इस बात का उदहारण है की जुताई करना गलत है।
जुताई करने से बरसात का पानी जमीन के भीतर नहीं जाता है वह तेजी से बहता है और जमीन की जैविक खाद (कर , कार्बन ) को भी बहा कर ले जाता है। इस कारण जमीन के ऊपर रहने वाली हरियाली भी मर जाती है जो बरसात के होने और बरसात के जल को संरक्षित करने में मुख्य भूमिका निभाती है। हरियाली नहीं तो पानी नहीं।
खेती करने से पहले खेतों के पेड़ों को काट दिया जाता है ,पेड़ों के ढूँटों और जड़ों को साफ़ कर दिया जाता है। फिर खेतों में हल चला कर जमीन को खूब जोता और बखरा जाता है। ऐसा करने से खेतों में रहनी वाली तमाम जैव विवधताओं की हिंसा हो जाती है।
हर हिंसा अपना असर दिखाती है किसानो की गरीबी ,आत्म हत्याएं ,बेरोजगारी , महानगरों में बढ़ रही अनेक प्रकार की बीमारियां ,सूखा और बाढ़ आदि सब के पीछे जमीन की जुताई का सबसे बड़ा हाथ है। जुताई करने से खेत मरुस्थल में तब्दील हो जाते हैं। बरसात अनियमित हो जाती है बरसात होती नहीं है या बहुत कम हो जाती है या बहुत तेज हो जाती है। उत्तराखंड ,जम्मू कश्मीर ,असम आदि सब इसके उदाहरण हैं।
हमे अपने पारिवारिक खेतों में बिना जुताई की कुदरती खेती को करते हुए करीब २८ साल हो गए हैं इस से पहले हम खेतों में मशीनी जुताई आधारित और खाद दवाई वाली खेती करते थे। जिसके कारण हमारे खेत बंजर हो गए थे और हम कंगाली की कगार पर आकर खड़े हो गए थे। हमे खेती में हर साल घाटा हो रहा था। खेती के डॉ. हमे जो बताते वही करते थे किन्तु लाभ का कोई पता नहीं था हम एक कोल्हू के बैल की तरह खूंटे के गोल गोल घूम चक्कर लगाते हुए सोचते थे की अब बस मंजिल आने वाली है किन्तु यह भ्रम तब टूटा जब हम कंगाल जैसी हालत में पहुँच गए थे।
वह तो भला हो हमारे गुरु जापान के मस्नोबू फुकूओकाजी का जिन्होंने अपने अनुभवों को" एक तिनके से आयी क्रान्ति " नामक पुस्तिका में लिख कर दुनिया को यह बता दिया की खेती किसानी से जुडी सब मुसीबत की जड़ में "जुताई " है। इसलिए हमने तुरंत जमीन की जुताई को बंद कर दिया और खेतों में अपने आप पैदा होने वाली तमाम वनस्पतियों को बचाना शुरू दिया। जिन्हे आम किसान कचरा कहते हैं।
इस कचरे ने हमारी किस्मत ही पलट दी हर साल घाटे वाली खेती अब लाभ की खेती में तब्दील हो गयी थी। हर साल हम खेत की जुताई ,बीज ,खाद दवाइयों के खर्च से परेशान रहते थे वो सब बंद हो गया और हमारे खेत उपजाऊ और पानीदार हो गए।
जुताई बंद करने के पहले साल ही हमारे खेत अनेक प्रकार की घासों से ढँक गए थे जिसमे सबसे अधिक कांस घास थी। ये वही घास है जिसकी ऋषि खेती में पूजा होती है जैसे गाय की पूजा होती है धरती माँ की पूजा होती है। पूजा का मतलब है इन्हे नहीं मारना ,इनकी रक्षा करना। जब हम इनकी रक्षा करेंगे तो ये हमारी रक्षा करने लगते हैं। ऐसा हमारे साथ हुआ यदि हम जुताई बंद नहीं करते तो हम भी नहीं बचते।
बिना -जुताई की खेती अमेरिका ,जापान जैसे अनेक देश करने लगे हैं वे मशीनो और रसायनो का उपयोग करते हैं।जिसमे" नो टिल कंज़रवेटिव फार्मिंग " सबसे अधिक अपनाई जा रही है। इसमें किसान मशीनो से जमीन में एक पतली लाइन बना कर बीज बो देते हैं किन्तु वे खरपतवारों को मारने के लिए बहुत ही जहरीला नींदा मारक जहर छिड़कते हैं। जिस से जमीन और फसलें जहरीली हो जाती हैं। मशीनो का खर्च अलग है।
दूसरी विधि है जिसे अमेरिका में किया जाता है है वह है " आर्गेनिक नो टिल फार्मिंग " जिसमे जमीन की जुताई और रसायनो का उपयोग बिलकुल नहीं होता है नींदों को जमीन पर जहाँ का तहाँ हरा ही सुला दिया जाता है। तथा बीजों की बुआई बिना जुताई की बोने की मशीन से कर दिया जाता है। यह विधि कारगर है। इसे किसान आसानी से अपना सकते हैं।
तीसरी सबसे आसान और कारगर विधि है ऋषि खेती की है। जिसमे हम बीजों को सीधा या कपे (कीचड) वाली मिट्टी से बीजों की बीज गोलियां बनाकर कचरों( नींदों ) में फेंक देते हैं। इस में हिंसा बहुत कम हो जाती है। कपे वाली मिट्टी बहुत ही अधिक ताकतवर खाद होती है इसमें असंख्य जमीन को उर्वरक बनाने वाले सूख्स्म जीवाणु रहते है। बीज अंकुरित होकर तमाम वनस्पतियों जिन्हे हम कचरा समझते हैं के साथ बखूबी पनपते हैं। बीज गोली में सुरक्षित हो जाते हैं अनुकूल वातावरण में वे उग आते हैं जैसे जंगलों में बीज उगते हैं। वनस्पतियों से जमीन ढंकी रहती है जिनमे असंख्य जंतु कीड़े मकोड़े ,सूख्स्म जीवाणु रहते हैं जो जमीन को उर्वरक और पानीदार बना देते है। इसमें ऊपरी सिंचाई की नहीं के बराबर जरुरत रहती है ढकाव जमीन को ठंडा रखता है जिस से भूमिगत वास्प सिंचाई का काम करने लगती है।
जब १९८८ में हमारे गुरु हमारे फार्म पर पधारे थे उन्होंने हमारे द्वारा अपनाई जा रही ऋषि खेती को विश्व में न. वन दिया था किन्तु हम इसे उस समय समझ नहीं पाये थे किन्तु आज हम बहुत खुश हैं की हमारी ऋषि खेती तकनीक विश्व की तमाम हाई-फाई तकनीकों अच्छी सिद्ध हो रही है। अनेक देश इसे अपना रहे हैं।
हाल ही में ऋषि खेती के अनुभवों से प्रेरित हो कर चांदनी बहन (+919711466466 ) ने अपने परिवार और मित्रों के साथ मिलकर होशंगाबाद में टाइगर प्रोजेक्ट के करीब ग्राम कुर्सी खापा में करीब छह एकड़ जमीन में एक ऋषि खेती फार्म स्थापित किया है। इस फार्म में चांदनी बहन गांव के स्त्री पुरुष और बच्चों से कपे वाली मिट्टी की बीज गोलियां तैयार करवाती हैं। जब इन लोगों के पास समय होता है सब मिलकर गोलियां बनाते है। यह गतिविधि गांव वालों को बहुत पसंद आ गयी है वे आराम से घर में बैठ कर बहुत कम समय में कई एकड़ खेत के लिए गोलियां बना लेते हैं इस से इन लोगों को आमदनी हो जाती है। इस योजना से अनेक लाभ है पहला गांव वालों को अतिरिक्त समय में आर्थिक लाभ दूसरा ऋषि खेती प्रशिक्षण तीसरा मशीनो पर होने वाले खर्च में कमी चौथा गांव का पर्यावरण संरक्षण। इस योजना का मूल उदेश्य सब के साथ मिलकर सबको कुदरती आहार और आर्थिक लाभ अर्जित करवाना है। चांदनी बहन चाहती है कि मनरेगा ,आंगनबाड़ी और मध्यान भोजन जैसी सरकार की महत्वपूर्ण योजनाओ को कारगर बनाने में लिए ऋषि खेती एक मील का पत्थर साबित हो।
ऋषि खेती फार्म असली कुदरती अस्पताल हैं यहाँ रहकर हम हवा , पानी और आहार का सेवन कर कैंसर जैसी महामारियों को भी भगा सकते हैं। आजकल खेतों में इतने भयंकर जहर डाले जा रहे हैं जिनके कारण हमारे खून में जहर घुल रहा है जिससे अनेक बीमारियां उत्पन्न हो रही है। कुदरती आहार से इस समस्या को कम करने का प्रयास है। हम इस फार्म को कुदरती अस्पताल के रूप में देखते हैं जहाँ दूर दूर से लोग आकर छोटी छोटी कुटियां बना कर रहेंगे, ऋषि खेती करेंगे और स्वास्थ का लाभ लेकर चले जायेंगे। यह स्थान मशहूर हिल स्टेशन पंचमढ़ी के बिलकुल पास है।
हम सब जानते हैं की कोई भी अच्छा काम अकेले के बस में नहीं रहता है इसलिए इस लेख को पढ़ने वालों से अपील करते हैं की ऋषि खेती योजना एक यज्ञ हैं इसमें आहुति देकर सहयोग प्रदान करें।
धन्यवाद
राजू टाइटस
(+919179738049 )
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