Tuesday, September 30, 2014

Remove bad cholestrol from body.

शरीर से खराब चर्बी को हटायें 
बकरी के कच्चे दूध से बने दही और मही का सेवन करें। 
ज कल हमारे देश में बी. पी.,शुगर , हार्ट और ब्रेन अटैक की बीमारियां हर घर में दस्तक दे रही हैं  जिसके लिए खराब  चर्बी ( Bad cholestrol) का दोष माना जा रहा है।  शरीर में गैर कुदरती वसा  वाले भोजन से उत्पन्न होता है। यह भोजन कम्पनियो द्वारा निर्मित तेल, घी ,दूध आदि से तैयार किया जाता है।

मै इन दिनों ७० की उम्र में चल रहा हूँ मुझे बहुत कम उम्र में शुगर और हार्ट की बीमारी हो गयी थी मेने दो हार्ट अटैक झेले हैं। हम कुदरती  किसान हैं पहले हमने शंकर नस्ल की गायें पालते  थे फिर उनके बदले हमने देशी गाय और भेंसों पाली हम उन्हें कुदरती चारा खिलाते रहे। आज कल हमने बड़े पशुओं के बदले दूध के लिए  बकरी पालन शुरू किया है।  कुदरती चारे के लिए हमने सुबबूल के पेड़ लगाएं हैं।  ये दलहन जाती के पेड़ उनकी छाया के इर्द गिर्द नत्रजन देने का काम करते हैं। इनकी पत्तियों से हाई प्रोटीन चारा मिलता है। ये पेड़ बरसात के पानी जमीन में इकट्ठा करने और बरसात करवाने में बहुत सहायक रहते हैं
Sep 30 2014 : The Times of India (Delhi)
Heart disease is hitting Indians early: US study
Mumbai:


In the Indian pool of heart patients, almost every second patient has high blood pressure, every fourth has diabetes and every fifth has plaque deposits in his her arteries. And Indians are getting heart problems almost a decade ahead of patients in western countries.This scientific picture of Indian heart diseases comes from the American College of Cardiology's newly setup study centres across India.
ACC is a not-for-profit medical association that works out guidelines for cardiac treatment which are in variably followed globally.
The ongoing study provided data of 85,295 patients who clocked 2.11 lakh visits to out-patient departments of 15 hospitals from Mumbai to Patna over the last 26 months. Of these patients, 60,836 were found to have heart disease. In capturing all-India data, this is one of the most scientific studies,“ said Dr Prafulla Kerkar, the head of Parel's KEM Hospital's cardiology department. He is also the chairperson of ACC's Pinnacle registry's India Quality Improvement Programme.
In the backdrop of World Heart Day on Monday , the ACC data underlines that the average age of a heart patient in India is 52 years. “If one looks at ACC's American registry, the average age is much higher in the sixties,“ said Dr Ganesh Kumar, cardiologist at Hiranandani Hospital in Powai and vice-chairperson of the study.
The ACC study for the first time shows how badly diabetes affects the Indian heart. It provides the breakup of the 13,077 patients with diabetes who visited the 15 centres a total of 35,441 times.
“Here, we found a doubling of the diseases. For instance, 32% of the diabetic patients had narrowed arteries or coronary artery disease. Almost 10% of them had heart failure and 70% had hypertension. The corresponding numbers for non-diabetic patients are half,“ said Dr Kumar. He said the actual number of diabetic patients with heart complications would run into millions.




हमने यह पाया है जब हम कुदरती चारे के आधार पशु पालन करते हैं तो दूध कुदरती हो जाता है जिसका दूध दही ,पनीर  और मक्खन सब कुदरती रहता है इनके सेवन से शरीर  में अच्छे कोलॅस्ट्रोल का निर्माण होता है।
ये सब जानते हैं की दही और मही का नियमित सेवन करने से शरीर खराब कोलेस्ट्रोल को हटा देता है। जिस से खराब कोलेस्ट्रोल से होने वाली तमाम बीमारियों का नियंत्रण  हो जाता है।

हमने यह पाया है की कच्चे दूध के दही और मही पकाये गए दूध के दही और मही  में काफी अंतर होता है इसे उसे स्वाद से पहचाना जा सकता। जब से खेती मशीनो की जुताई  और रसायन से की जाने लगी है तब से गयी और भेंसों के पालन पर बहुत विपरीत असर पड़ा है अधिकतर लोग इन को चारे के रूप में गैर कुदरती अनाज और दवाएं देने लगे हैं।  इस से उनका दूध कुदरती नहीं रहता है इसलिए इनकी तासीर बदल गयी है इनसे खराब कोलेस्ट्रोल बनने लगा है।

अधिकतर घरों में जो दूध आता है वह गैर कुदरती है। बकरी का पालन बहुत आसान है ये अधिकतर हरी पत्तियां खाती  हैं।  जिनसे कुदरती दूध बनता है जो सेहत के लिए बहुत फायदे मंद होता है। बकरी के ताजे कच्चे दूध से बना दही और मही बहुत ही अच्छा कुदरती आहार है यह शरीर से बहुत जल्दी खराब कोलेस्ट्रोल को हटा देता है
जिसे उस से होने वाली अनेक बीमारियां नियंत्रित हो जाती है।  बकरी एक छोटा जानवर रहता है जिसे  आसानी से घरों में पाला जा सकता है।

मेने ये प्रयोग मेरे और मेरी पत्नी  पर कर के देखा है हम कंपनियों के बने तेल आदि का बिलकुल नहीं  उपयोग नहीं करते हैं अधिकतर कुदरती आहार जिसे  हम अपने यहाँ पैदा करते हैं  का सेवन करते हैं।  नियमित रूप से कोलेस्ट्रोल की जांच करवाते हैं किसी भी प्रकार की अतिरिक्त दवाई की इसमें जरूरी नहीं है।
राजू टाइटस (+919179738049 )

Saturday, September 27, 2014

बिना जुताई की खेती :ऋषि-खेती

बिना जुताई की खेती :ऋषि-खेती 
कुर्सी खापा ,पिपरिया होशंगाबाद, म. प्र.
समें कोई संदेह नहीं है की पिछले हजारों सालों से खेती करने के लिए जमीन की जुताई को एक पवित्र काम माना जाता रहा है किन्तु यह सत्य नहीं है।  असल में जुताई का आधार  हिंसा है दुनिया भर में हो रही अनेक प्रकार की हिंसा में यह सबसे बड़ी हिंसा है। जिसे हमारे अधिकतर किसानो ,समाज ,नेताओं , वैज्ञानिकों ,धर्म गुरुओं का संरक्षण प्राप्त है।

ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं की प्राचीन काल में किसान जुताई करे बिना खेती करते थे। जुताई कर खेती करने वाले अनेक किसान जुताई के कारण कमजोर होने वाली जमीन को जुताई बंद ठीक कर  लिया करते थे। ऋषि पंचमी का पर्व जिसमे कांस घास की पूजा होती है और बिना जुताई के अनाजों को फलहार के रूप में सेवन किया जाता है इस बात का उदहारण है की जुताई करना गलत है।

जुताई करने से बरसात का पानी जमीन के   भीतर नहीं जाता  है वह तेजी से बहता है और जमीन की जैविक खाद (कर , कार्बन ) को भी बहा कर ले जाता है।  इस कारण जमीन के ऊपर रहने वाली हरियाली भी मर जाती है जो बरसात के होने और बरसात के जल को संरक्षित करने में मुख्य भूमिका निभाती है।  हरियाली नहीं तो पानी नहीं।

खेती करने से पहले खेतों के पेड़ों को काट दिया जाता है ,पेड़ों के ढूँटों और जड़ों को साफ़ कर दिया जाता है। फिर खेतों में हल चला कर जमीन को खूब जोता  और बखरा जाता है।  ऐसा करने से खेतों में रहनी वाली तमाम जैव विवधताओं की हिंसा हो जाती है।

हर हिंसा अपना असर दिखाती है किसानो की गरीबी ,आत्म हत्याएं ,बेरोजगारी , महानगरों में बढ़ रही अनेक प्रकार की बीमारियां ,सूखा और बाढ़ आदि सब के पीछे जमीन की जुताई का सबसे बड़ा हाथ है। जुताई करने से खेत मरुस्थल में तब्दील हो जाते हैं।  बरसात अनियमित हो जाती है बरसात  होती नहीं है या बहुत कम हो जाती है या बहुत तेज हो जाती है। उत्तराखंड ,जम्मू कश्मीर ,असम आदि सब इसके उदाहरण हैं।

 हमे अपने पारिवारिक खेतों में बिना जुताई की कुदरती खेती को करते हुए करीब २८ साल हो गए हैं इस से पहले हम खेतों में मशीनी जुताई आधारित और खाद दवाई वाली खेती करते थे।  जिसके कारण हमारे खेत  बंजर हो गए थे और हम कंगाली की कगार पर आकर खड़े हो गए थे।  हमे खेती में हर साल घाटा हो रहा था।  खेती के डॉ. हमे जो बताते वही  करते थे किन्तु लाभ का कोई  पता नहीं था हम एक कोल्हू के बैल  की तरह खूंटे  के गोल गोल घूम चक्कर लगाते हुए  सोचते थे की अब बस मंजिल आने वाली है किन्तु यह  भ्रम तब  टूटा जब हम कंगाल जैसी हालत में पहुँच गए थे।

वह तो भला हो हमारे गुरु जापान के मस्नोबू फुकूओकाजी का जिन्होंने अपने अनुभवों को" एक  तिनके से आयी   क्रान्ति " नामक पुस्तिका  में लिख कर दुनिया को यह बता दिया की खेती किसानी से जुडी सब मुसीबत  की जड़ में "जुताई " है। इसलिए हमने तुरंत जमीन की जुताई को बंद कर दिया और  खेतों में अपने आप पैदा होने वाली  तमाम वनस्पतियों को बचाना शुरू दिया। जिन्हे आम किसान कचरा कहते हैं।

इस कचरे ने हमारी किस्मत ही पलट दी हर साल घाटे वाली खेती अब लाभ की खेती में तब्दील हो गयी थी। हर साल हम खेत की जुताई ,बीज ,खाद दवाइयों के खर्च से परेशान रहते थे वो सब बंद हो गया और हमारे खेत उपजाऊ और पानीदार हो गए।

जुताई बंद करने के पहले साल ही हमारे खेत अनेक प्रकार की घासों से ढँक गए थे जिसमे सबसे अधिक कांस घास थी। ये वही घास है जिसकी ऋषि खेती में पूजा होती है जैसे गाय की पूजा होती है धरती माँ  की पूजा होती है।  पूजा का मतलब है इन्हे नहीं मारना ,इनकी रक्षा करना। जब हम इनकी रक्षा करेंगे तो ये हमारी रक्षा करने लगते हैं। ऐसा हमारे साथ हुआ यदि हम जुताई  बंद नहीं करते तो हम भी नहीं बचते।

 बिना -जुताई की खेती अमेरिका ,जापान जैसे अनेक देश करने लगे हैं वे मशीनो और रसायनो   का उपयोग करते हैं।जिसमे" नो टिल कंज़रवेटिव फार्मिंग "  सबसे अधिक अपनाई जा रही है। इसमें किसान मशीनो से जमीन में एक पतली लाइन बना कर बीज बो देते हैं किन्तु वे खरपतवारों को मारने के लिए बहुत ही जहरीला नींदा मारक जहर छिड़कते हैं।  जिस से जमीन और फसलें  जहरीली हो जाती हैं।  मशीनो का खर्च अलग है।

दूसरी विधि है जिसे अमेरिका में किया जाता है है वह है " आर्गेनिक नो टिल फार्मिंग " जिसमे जमीन की जुताई और रसायनो का उपयोग बिलकुल नहीं होता है नींदों को जमीन पर जहाँ का तहाँ हरा ही सुला दिया जाता है। तथा बीजों की बुआई बिना जुताई की  बोने  की मशीन से कर दिया जाता  है।  यह विधि कारगर है। इसे किसान आसानी से अपना सकते हैं।

तीसरी सबसे आसान और  कारगर विधि है ऋषि खेती की है।   जिसमे हम बीजों को सीधा या कपे (कीचड) वाली मिट्टी  से बीजों की बीज गोलियां बनाकर कचरों( नींदों ) में फेंक देते हैं। इस में हिंसा बहुत कम हो जाती है। कपे वाली मिट्टी बहुत ही अधिक ताकतवर खाद होती है इसमें असंख्य जमीन को उर्वरक बनाने वाले सूख्स्म जीवाणु रहते है।  बीज अंकुरित होकर  तमाम वनस्पतियों जिन्हे हम कचरा समझते हैं के साथ बखूबी पनपते    हैं।  बीज गोली में सुरक्षित हो जाते हैं अनुकूल वातावरण में वे उग आते हैं जैसे जंगलों में बीज उगते हैं।   वनस्पतियों से जमीन ढंकी रहती है जिनमे असंख्य जंतु कीड़े मकोड़े ,सूख्स्म जीवाणु रहते हैं जो जमीन को  उर्वरक और पानीदार बना देते है। इसमें ऊपरी सिंचाई  की नहीं के बराबर जरुरत रहती है  ढकाव जमीन को ठंडा रखता है जिस से भूमिगत  वास्प सिंचाई का काम करने लगती है।

जब १९८८ में हमारे  गुरु हमारे  फार्म पर  पधारे थे   उन्होंने हमारे द्वारा अपनाई जा रही ऋषि  खेती को विश्व में न. वन  दिया था किन्तु हम इसे उस समय समझ नहीं पाये थे किन्तु आज हम बहुत खुश हैं की हमारी ऋषि खेती तकनीक  विश्व की तमाम हाई-फाई  तकनीकों  अच्छी सिद्ध हो रही है। अनेक देश इसे अपना रहे हैं।

हाल ही में ऋषि खेती के अनुभवों से प्रेरित हो कर  चांदनी बहन  (+919711466466 ) ने अपने परिवार और मित्रों के साथ मिलकर होशंगाबाद में टाइगर प्रोजेक्ट के करीब  ग्राम कुर्सी  खापा में करीब छह एकड़ जमीन में एक ऋषि खेती फार्म स्थापित किया है। इस फार्म में चांदनी बहन गांव के  स्त्री पुरुष और बच्चों से कपे  वाली मिट्टी की बीज गोलियां तैयार करवाती हैं। जब इन लोगों के पास समय होता है सब मिलकर गोलियां बनाते है। यह गतिविधि गांव वालों को बहुत पसंद आ गयी है वे आराम से घर में बैठ कर   बहुत कम समय में कई एकड़ खेत के लिए गोलियां  बना लेते हैं इस से इन लोगों को आमदनी हो जाती है। इस योजना से अनेक लाभ है पहला गांव वालों को अतिरिक्त समय में आर्थिक लाभ दूसरा ऋषि खेती प्रशिक्षण तीसरा मशीनो पर होने वाले खर्च में कमी चौथा गांव का पर्यावरण संरक्षण। इस योजना का मूल उदेश्य सब के साथ मिलकर सबको कुदरती आहार और आर्थिक लाभ अर्जित करवाना है। चांदनी बहन चाहती है कि मनरेगा ,आंगनबाड़ी और मध्यान भोजन जैसी सरकार की  महत्वपूर्ण योजनाओ को कारगर बनाने में लिए ऋषि खेती एक मील का पत्थर साबित हो।
ऋषि खेती फार्म असली कुदरती अस्पताल हैं यहाँ रहकर हम हवा ,  पानी और आहार  का सेवन कर  कैंसर जैसी महामारियों को भी भगा सकते हैं।  आजकल खेतों में इतने भयंकर जहर डाले जा रहे हैं जिनके कारण हमारे खून में जहर घुल रहा है जिससे अनेक बीमारियां उत्पन्न हो रही है। कुदरती आहार से   इस समस्या को कम करने का प्रयास है। हम इस फार्म को  कुदरती अस्पताल  के रूप में देखते हैं जहाँ दूर दूर से लोग आकर छोटी छोटी कुटियां बना कर  रहेंगे, ऋषि खेती करेंगे और स्वास्थ का लाभ लेकर चले जायेंगे। यह स्थान मशहूर  हिल स्टेशन पंचमढ़ी  के बिलकुल पास है।

 हम सब जानते हैं की कोई भी अच्छा काम अकेले के बस में नहीं रहता है इसलिए   इस लेख को पढ़ने वालों से अपील करते हैं की ऋषि खेती योजना एक यज्ञ हैं इसमें आहुति देकर सहयोग प्रदान करें।
धन्यवाद

 राजू टाइटस
(+919179738049 )


Thursday, September 18, 2014

power tiller seed drill zero tillage tine model

ऋषि-खेती

ऋषि-खेती 
होशंगाबाद 
जापान मे जन्मे ,पढ़े और बढ़े तथा एक माइक्रोबायलाॅजिस्ट कृषि वैज्ञानिक के रुप मे ख्याति अर्जित करने के बाद एक कुदरति किसान के रुप मे खूब नाम कमा कर अब 95 वर्ष की उर्म मे मसनेबु फुकुओका ने अपना जीवन त्याग दिया(८अगस्त २००८)।
 फुकुओकाजी एक ऐसे कृषि वैज्ञानिक थे जिन्होने न सिर्फ आधुनिक वैज्ञानिक खेती को वरन् तमाम जुताई पर आधारित खेती करने के तरीकों को हमारे पर्यावरण ,स्वास्थ ,और खाद्य सुरक्षा के प्रतिकूल निरुपित कर दिया।
उन्होने बिना जुताई ,बिना खाद ,बिना निन्दाई ,बिना दवाइयों से दुनिया भर मे सबसे अधिक उत्पादकता एवं गुणवत्ता वाली खेती की न सिर्फ खेाज की वरन् उसे लगातार पचास सालों तक स्वयं कर मौज़ूदा वैज्ञानिक खेती को कटघरे मे खड़ा कर दिया।उन्होने जापान मे उंची पहाडि़यों पर संतरों का कुदरति बगीचा बनाया जिसमे अनेक फलों के साथ साथ अनेक प्रकार की सब्जियां बिना कुछ किये मौसमी खरपतवारों की तरह पैदा होती हैं। पहाडि़यों के नीचे वे धान के खेतो मे बिना जुताई ,बिना खाद ,बिना रोपा लगाये ,बिना पानी भरे एक चैथाई एकड़ से एक टन चांवल आसानी से 50 सालों तक लेते रहे, इतना नहीं धान की खड़ी फसलों मे गेहूं के बीजों को छिटककर वे इतना गेहूं भी लेते रहे। उनके कुदरति अनाजों मे इतनी ताकत है कि इनके सेवन मात्र से केंसर भी ठीक हो जाता है।
गेंहूँ  फसल १किलो / १ वर्ग मीटर 

वे सच्चे अहिंसावादी थे। जिस समय वे एक सूक्ष्मजीव वैज्ञानिक के रुप मे सूक्ष्मदर्शी यंत्रो का उपयोग कर धान के पौधों मे लगने वाली बीमारियों का अध्ययन कर रहे थे तो उन्ंहे यह पता चला कि आज का विज्ञान बीमारियों की रोकथाम के लिये सूक्ष्मजीवाणुओं को दोषी मानकर उनकी अनावश्यक हत्या करता है। जबकि ये सूक्ष्मजीवाणु ही असली निर्माता हैं।उनकी बिना जुताई की कुंदरति खेती का यही आधार है।उन्होने मिटटी के एक कण को बहुत बड़ा कर देखकर यह पाया कि मिटटी अनेक सूक्ष्मजीवाणुओं का समूह है। इसे जोतने ,हांकने बखरने या ेंइसमे रासायनिक खादों को डालने ,खरपतवार नाशकों को डालने ,कीटनाशकों को छिड़कने या कीचड़ आदी मचाने से आंखों से दिखाई न देने वाले अंसख्य सूक्ष्मजीवों की हत्या होती है।यह सबसे बड़ी हिंसा है।
सन 1988 जनवरी जब वे हमारे खेतों मे पधारे थे तब उन्होने बताया था कि जमीन को बखरने से बखरी हुई बारीक उपरी सतह की मिटटी थोड़ी बरसात होने पर कीचड़ मे तब्दील हेा जाती है जो बरसात के पानी के पानी को भीतर नहीं जाने देती बरसात का पानी तेजी से बहने लगता है साथ मे बहुमूल्य उपरी सतह की मिटटी(खाद) को भी बहा ले जाता है।कृषि वैज्ञानिकों का यह कहना कि फसलें खाद खाती हैं अैार पानी पी जाती हैं यह भ्रान्ति है। जुताई के कारण होने वाले भू एवं जल क्षरण के कारण ही खेत खाद और पानी मांगते हैं।
फुकुओकी जी के 25 सालों के अनुभव की किताब ’ दि वन स्ट्रा रिवोलूशन ’ दुनिया भर मे बहुत पसदं की गई इस किताब को अनेक भाषाओं मे छापा जा रहा है। ’स्ट्रा’ से उनका तात्पर्य मूलतः नरवाई या धान के पुआल से है। दुनिया भर मे अधिकतर किसान इसे जला देते हैं या खेतों से हटा देते हैं। उनका कहना है कि यदि इसे जलाने कि अपेक्षा किसान इसे खेतों मे जहां कि तहां फैला दें तो इसके अनेक लाभ हैं। पहला नरवाई के ढकाव के नीचे असंख्य केचुए आदी जमा हो जाते हैं जो बहुत गहराई तक भूमी को पोला कर देते हैं आज तक कोई भी ऐसी मशीन नहीं बनी है जो इस काम को कर सकती है।इसके दो फायदे हैं एक तो बरसात का पानी बह कर खेतों से बाहर नहीे निकलता है दूसरे फसलों की जड़ों को पसरने मे आसानी हाती है।दूसरा यह ढकाव सड़ कर खेतों को उत्तम जरुरी जैविक अशं दे देता है। तीसरा इसमे फसलों की बीमारियों के कीड़ों के दुश्मन रहते हैं जिससे फसलें बीमार नहीं पड़ती। चैथा ढकाव की छाया के कारण खरपतवारों के बीज अंकुरित नहीं होते जिससे खरपतवारों की कोई समस्या नहीे रहती है।निन्दाई गैर जरुरी हो जाती है।
जब वे हमारे खेतों पर पधारे थे उस समय हम नेचरल फार्मिंग के मात्र तीसरे बर्ष मे थे. और अब तक ’’दि.व.स्ट्रा.रि’’. के अलावा हमारा कोई गाइड नहीं था। वह तो बरसात के दिनों मे एक अनायास प्रयोग हमसे हो गया ।हमने सोयाबीन के कुछ दानों को जमीन पर छिटकर उस पर प्याल की मल्चिगं कर दी ,मात्र 4 दिनो बाद हमने देखा कि सोयाबीन बिलकुल बखरे खेतों के माफिक उग कर प्याल के उपर निकल आई है। बस हम खुशी से फूले नहीे समाये हमे बिना जुताई कुदरति खेती करने का तरीका मिल गया था। बिना जुताई की कुदरति खेती करने से पूर्व हम अपने खेतों मे गहरी जुताई ,भारी सिंचाई ,कृषि रसायनों पर आधारित खेती का अभ्यास करते थे, जिससे हमारे खेत मरुस्थल मे और हम कंगाली की कगार तक पहुंच गये थे। हमारे खेत कांस घांस से भर गये थे,कांस घांस एक ऐसी घास है जिसकी जड़ें 25 फीट से 30 फीट तक की गहराई तक फैल जाती हैं जिस के कारण कोई भी खेती करना मुश्किल रहता है।


हमने पहले बरसात मे कांस घास को बढ़ने दिया फिर ठण्ड के मौसम मे खडी घांस मे दलहन जाती के बीजों जैसे चना ,मसूर ,मटर ,तिवड़ा ,बरसीम आदी के बीजों को छिटकर ,घास को काटकर जहां का तहां आड़ा तिरछा फैला दिया और स्प्रिंकलर से सिंचाई कर दी। ठीक हमारे प्रयोग की तरह पूरा खेत फसलों से लहलहा उठा। हालाकि हम फुकुओका विधी से अभी काफी दूर थे इसलिये उनके आगमन से काफी डरे हुए थे। किन्तु जब उन्होंने हमारे खेत मे इस विधी से खेती करते देखा तो उन्होने कहा कि मै अभी अमेरिका से आ रहा हूं ,वहां की करीब तीन चैथाई भूमी मे यह घास छा गई है ,जिसमे अब खेती नहीं की जाती है क्योंकि उन्हें नहीं मालूम है कि क्या करें? यह घास जुताई के कारण पनपते रेगीस्तानों की निशानी है। चूंकि आप यहां इस घास मे कुदरति खेती कर रहे हैं इसलिये हम आपको हमारे द्वारा दुनिया भर मे चल रहे प्रयोगों मे न. वन देते हैं, किन्तु अभी आपको केवल 60 प्रतिशत ही नम्बर मिलेंगे क्योंकि अभी आपको बहुत कुछ सीखने की जरुरत है। पर यदि आप ठीक ऐसा ही करते रहे तो आप आराम से बिना कुछ किये जीवन बिता सकते हैं।
और आज हमे अपने गुरु के वे शब्द याद आते हैं हमारे खेत पूरे हरे भरे घने पेड़ों से भर गये हैं। ये खेत नहीं रहे वरन वर्षा वन बन गये हैं।इससे हमे वह सब मिल रहा है जो जरुरी है।जैसे कुदरति हवा ,जल ,ईंधन ,आहार और आराम।
गेंहूँ की  खड़ी फसल में धान को बीज गोलिया डाल रहे हैं। 
आज की दुनिया मे हम भारी कुदरति कमि मे जीवन यापन कर रहे हैं। सूखा और बाढ़ आम हो गया है। केंसर जैसी अनेक लाइलाज बीमारियां बढ़ती जा रहीे हैं। धरती पर बढ़ती गर्मी और मौसम की बेरुखी से पूरी दुनिया परेशान है। गरीबी ,बेरोजगारी मुसीबत बन गये हैं। भारत मे हजारेंा किसान आत्म हत्या करने लगे हैं लोग खेती किसानी को छोड़ भाग रहे हैं। इन सब समस्याओं के पीछे खेती मे हो रही जमीन की जुताई का प्राथमिक दोष है। जुताई के कारण हरे भरे वन ,चारागाह ,बाग बगीचे सब अनाज के खेतों मे तब्दील हो रहे हैं ,तथा खेत मरुस्थल मे तब्दील हो रहे हैं। हरियाली गायब होती जा रही है। गरीबों को जलाने का ईधन और पीने का पानी नसीब नहीं हो रहा है।
ऐसे मे बिना जुताई की कुदरति खेती के अलावा हमारे पास और कोई उपाय नहीे है। अमेरिका मे अब बिना जुताई की कनज़र्वेटिव खेती और बिना जुताई की ’आरगेनिक’ खेती जड़ जमाने लगी है। 37 प्रतिशत से अधिक किसान इस खेती को करके खेती किसानी के व्यवसाय को बचाने मे अच्छा योगदान कर रहे हैं। यह सब फुकुओका की देन है। हमारे देश मे पशुपालन आधारित खेती हजारों साल स्थाई रही किन्तु जुताई के अनावश्यक कार्य के कारण बेलों की जगह ट्रेक्टरों ने ले ली इस कारण पालतू पशु और चारा लुप्त हो रहे हैं। किसान गेहूं की नरवाई और कीमती धान के पुआल को जला देते हैं। आधुनिक बिना जुताई की खेती पिछली फसल से बची खड़ी नरवाई मे सीधे बिना जुताई की सीड ड्रिल का उपयोग कर की जाती है। बिना जुताई की ’आरगेनिक खेती’ करने के लिये किसान खड़ी नरवाई या हरे मल्च को रोलर ड्रम की सहायता से मोड़ देते हैं।फिर उसमे बिना जुताई की सीड ड्रिल से बुआई कर देते हैं। ऐसा करने से जहां 80 प्रतिशत खर्च मे कमि आती है वहीं उत्पादन और गुणवत्ता मे भी लाभ होता है। आजकल बिना जुताई की खेती करने वाले किसानों को कार्बन के्रडिट के माध्यम से अनुदान भी मुहैया कराया जाने लगा है।
फुकुओका जी से हमारी आखिरी मुलाकात सन 1999 में  सेवाग्राम मे हुई थी वे वहां वे अपने सहयोगियों की सहायता से ’सीड बाल’ बनाकर बताते हुए अपनी बात कहते जा रहे थे उन्होने बताया कि तनज़ानिया के रेगिस्तानों को हरा भरा बनाने मे ये मिटटी की गोलियां बहुत उपयोगी सिघ्द हुईं हैं। आज यदि गांधी जी होते तो वे जरुर चरखे के साथ मिटटी की बीज गोलियों से खेती करते। एक ई-ेमंेल से पता चला है कि उनके अतिंम संस्कार के समय उनके पोते ने कहा कि उनके दादा ने लोगो के मनो मे ’सीड बाल’ बोने का काम कर दिया है बस उनके अंकुरित होने का इन्तजार है।
दुनिया भर मे आज हो रही हिसां के पीछे हमारी सभ्यताओं  का बहुत बड़ा हाथ है फुुकुओका जी का कहना है कि शांति का मार्ग ’’हरियाली ’’ के पास है। वे कुदरत को ही भगवान मानते थे। वे ’अकर्म’ (डू नथिंग) के अनुयाई थे।

शालिनी एवं राजू टाईटस
बिना जुताई की कुदरति खेती के किसान
ग्राम-खेाजनपुर ,होशंगाबाद ,म.प्र. 461001
(श्री अरुण डिके जी  के अनुरोध पर पुन : प्रकाशित किया गया है
नए चित्र डाले गए हैं  )

Friday, September 12, 2014

Floods : Reason and solution.

बाढ़ : कारण एवं निवारण 
ज कल पिछले अनेक सालों  से बदल फटने जैसी अनेक वारदातें देखने को मिल रही हैं। बरसात अनियमित हो गयी है कहीं बहुत तेज बारिश होती है तो कहीं बारिश होती ही नहीं हैं। इस समस्या  के पीछे एक मूल कारण है  वह बरसात के  पानी का जमीन के द्वारा सोखा नहीं जाना है।

बरसात के  पानी को जमीन में सोखने के लिए जमीन को बिना जुताई की होना आवशयक है इसके साथ उसमे हरियाली का होना भी आवशयक है।  इसलिए हम कह सकते हैं आज कल फसलों के उत्पादन के लिए  की जा रही जमीन की जुताई का इस में सबसे बड़ा दोष है।

अधिकतर लोग सोचते हैं की बरसात बादलों के माध्यम से आसमान से आती है किन्तु बादलों के निर्माण में भूमिगत जल की अहम भूमिका रहती है  बदल बन कर बरसता है।  बादलों के  बरसने  के लिए हरयाली का होना अति आवशयक है। हरियाली की कमी के कारण एक और जहाँ बरसात का समान वितरण नहीं होता है वहीँ बरसात का पानी जमीन में सोखा भी नहीं जाता है। इसलिए यह जरूरी है की पूरी धरती पर हरियाली सामान रूप से वितरित रहे।


हम लोगों ने शहरों ,जंगलों और खेती के लिए जमीनो को अलग अलग कर दिया है इसलिए बरसात का वितरण  नहीं रहता है बहुत तेज बारिश पहाड़ों के ऊपर हो जाती है जिस से एक और हरे भरे पहाड़  अब टूट टूट कर गिर रहे हैं। पिछले साल उत्तराखंड में और इस साल जम्मू -कश्मीर में आयी भीषण बाढ़ का यही मूल कारण है जिस बरसात को पूरे देश में समान रूप से वितरित होना था वह तेजी से एक स्थान पर हो गयी थी।
https://www.youtube.com/watch?v=q1aR5OLgcc0&feature=player_detailpage
यह समस्या केवल हमारे देश में नहीं वरन यह पूरे विश्व की समस्या है। हम Setelite की मदद से देखें तो तो हमे समुद्र और रेगिस्तान के आलावा सबसे बड़ा भू भाग हरियाली विहीन जोते गए खेतों का नजर आएगा। इन भूभागों से बरसात का पानी जमीन के अंदर नहीं जाता है।

जुताई करने से खेतों की मिट्टी बारीक हो जाती है वह बरसात के पानी को जमीन में भीतर नहीं जाने देती है। पानी बह  जाता है जो अपने साथ  हरियाली के लिए जरूरी खाद को भी बहा कर ले जाता है। इसलिए खेत हरियाली विहीन भूखे और प्यासे रह जाते हैं। दुनिया भर में तेजी से पनप रहे मरुस्थलों के  कारण है।

इसलिए यदि हम चाहते हैं हमे समान रूप से नियमित बरसात मिले जिस से सूखे और बाढ़ की हालत में सुधार आये तो हमे फसलों उत्पादन के लिए की जा रही जमीन की जुताई बंद करना होगा और बिना जुताई की खेती को करना होगा।

बिना जुताई की खेती अनेक प्रकारों से संभव है १- ऋषि खेती २- बिना जुताई की कंजरवेटिव खेती ३- बिना जुताई की जैविक खेती आदि।

ऋषि खेती करना सबसे आसान है इसमें बीजों को  जमीन पर मिट्टी की बीज गोलियों बनाकर फेंकने भर से खेती संपन्न हो जाती है। इस विधि से हम एक और जहाँ अपनी खाद्य समस्या पर काबू कर सकते हैं वहीँ  हम बाढ़ और सूखे से भी बच सकते हैं। इसमें सिंचाई ,रसायनो और मशीनो की कोई जरुरत नहीं रहती है। यह पेड़ों के साथ भी की जाती है।
https://www.youtube.com/watch?v=5_5eoUojVpI&feature=player_detailpage

बिना जुताई की कंजरवेटिव  खेती भारी मशीनो ,रसायनो  के बल पर की जाती है।
www.youtube.com/watch?v=OqU0k_m6qAo



बिना जुताई की जैविक खेती भी भारी मशीनो के बल पर संपन्न हो रही है किन्तु यह असिंचित बंपर उत्पादन के लिए उत्तम है।
www.youtube.com/watch?v=Aiocr_icrfw

हरियाली का सबसे अधिक नुक्सान जुताई आधारित खेती करने के कारण हो रहा है इसलिए हम सूखे और बाढ़ जैसी आपदाओं में फंस गए हैं। बिना जुताई की खेती (No Till Farming ) इस समस्या को जड़ से खत्म करने का वायदा करती है।