Saturday, July 5, 2014

PROTECT ORGANIC FLORA

सीड बॉल योजना 

पर्यावरणीय खेती 

राजू टाइटस 

जकल हमारे पर्यावरण और खेती के  बीच लड़ाई छिड़ी है।  पर्यावरण विभाग जंगल बचाने में लगा है वही किसान  हरे भरें वनो क़ो  अनाज की खेतोँ मे बदल  रहा है। इसलिए हम कुदरती खान पान को तरस रहे हैं।  इस से नो तो जंगल विकसित हों रहे हैं नाही खेत और  किसानो क़ा कुछ भला हो रहा हैं। इसके साथ मौसम परिवर्तन ,ग्लोबल वार्मिंग ,सूखा और बाढ़ की समस्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।
मिट्टी की बीज गोलियां 

बिना जुताई की कुदरती खेती जंगलों के नियम   पऱ  आधारित  है जिस प्रकार जंगलों  में असंख्य प्रजातियो क़े पेङ ,जीव जंतु ,कीड़े मकोड़े ,सूख्स्म जीवाणु आदि पर्यावरण को समृध  बनाते हैं वैसे ही कुदरती खेत भी काम करते हैं।
 एक और जहाँ सामान्य  खेती में हरियाली  क़ो खरपतवार  मान कर किसान मारता रहता है जमीन को बार बार जोतता रहता है जिस से बरसात का पानी जमीन  में नही जाता है वह तेजी से बहता है अपने साथ खेत कि जैविक खाद क़ो भी बहा कर लें जातां हैं।
  वहीँ बिना जुताई की कुदरती खेती में हरियाली ,जीव जंतु ,कीड़े मकोड़ों से बरसात का  पानी जमींन मे समां जाता वह बहता नही है। खेत उर्वरक हो जाते हैं। इसलिए खेती की गुणवत्ता और उत्पादकता बढ़ती जाती है।  जिस से किसान आत्म निर्भर हो जाता है और खेत मरुस्थल बननें सें बंच जातें हैँ।
पेड़ों के साथ गेंहू की खेती 

सरकारी वनो के आस पास रह्ने वाले किसानोँ के लिए यह कुदरती खेती बहुत लाभ प्रद है क्योंकि इस आबादी से वनो क़ो  बहुंत छती होतीं होती हैं। यह खेती बहुत आसान है इसको करने के लिए ना तो जुताई करने कि जरुरत है ना ही इसमे मानव निर्मित खाद और दवाई की भी जरुरत नहीं है।सिंचाई भी इसमें जरूरी नहीं है एक चौथाई एकड़ जमीन से एक परिवार जिसमे  ५ -६ सदस्य रहते हैं का भरण पोषण हो जाता है।  जबकि हर सदस्य को प्रतिदिन एक घंटे से अधिक समय की जरुरत नहीं है।

इस खेती को करने लिए  बीजो क़ो क्ले मिट्टी की गोलियों मे बन्द कर  खेतो में डाल दिया जाता हैं।  नमी पाकर बीज अंकुरित हो जाते है क्ले मे जमीन क़ो पोरस करने वाले और नत्रजन देने वाले सूक्ष्म जीवाणु रहते हैं जो तेजी से पनप कर ज़मीन को  पोरस और उर्वरक   बना देते हैं। इस खेती से उत्पादन प्रति फसल  एक टन /चौथाई एकड़ मिल जाता है यानि एक किलो /वर्ग मीटर यह उन्नत आधुनिक खेती के उत्पादन के समतुल्य  है गुणवत्ता के कारण फसलों  का दाम ८ से १० गुना तक रहता है।  कुदरती गुणों के कारण कुदरती अहार कैंसर जैसी बीमारी को भी ठीक कर देता है।
सीड बाल से निकलते नन्हे पौधे  

क्ले मिट्टी आसानी से खेतोँ के पास तालाबों ,पोखरों ,नालो आदि में मिल जाती है यह खेतों कि उपजाऊ मिटटी हैं जो जुताई के कारण बह कर नालो आदि मे इकठ्ठा हो जाती है। मिट्टी में असंख्य नत्रजन देनें वाले सूख्स्म जिवाणुओं सहित केंचुओं आदि के अंडे रहते हैं जो जमीन को तेजी से उपजाऊ बनाते है यह यूरिया का विकल्प हैं। इसमें बीज सुरक्षित हो जाते हैं जिन्हे चूहे, चिड़िया कीड़े कोई नुकसान नहीं पहुँचते है।

सामान्यत : किसान खेतों को खरपतवारों के ड़र से जोतते और बखरते हैँ इस काऱण उल्टा  खरपतवारें कम ना होकर आधिक  से पनपती हैं। जबकि जुताई नहीं करने से इनका प्रकोप नहीं के बराबर हो जाता है। इस खेती में खरपतवारों का होना ज़रुरी है जिस से खेतों में हरियाली का  ढकाव बन जात्ता हैं। इस ढकाव में अनेक जमीन को ताक़तवर और पानी दार बनाने वाले कीड़े मकोड़े ,जीवजन्तु ,सूख्स्म जीवाणु रहने लगते हैं।

आजकल हम मौसम परिवर्तन ,सूखा बाढ़ ,ग्लोबल वार्मिंग ,ग्रीन हॉउस गैस उत्सर्जन की पर्यावरणीय समस्या मे फंसते जा रहे हैं ये समस्या जुताई आधारित रासायनिक खेती के कारण सबसे अधिक बढ़  रही है। यदि यही हाल रहा तो हम इस से तबाह हो जायेंगे।  खेती हम बंद नहीं कर सकते हैं किन्तु जुताई और रसायनों जो अनावश्यक हैं को बन्द कियां जां सकता है। इस से खेती और वनो की लड़ायी रूख जातीं हैं।हरियाली के कारण ग्रीन हॉउस गैस  अवशोषित होकर जैविक खाद में बदल जाती हैँ। यह तकनीक जलप्रबंधन का काम करती है। बरसात ना तो आसमान से आती है ना यह धरती से  आती है यह तो हरियाली की देन है।


रामभरोस क्ले को तैयार करते हुए 

किसानो की  गरीबी और आत्म हत्या बहुत बड़ी समस्या है  इसका कारण गैर कुदरती खेती है जिसका समाधान कुदरती खेती से संभव है।

इस खेती का आविष्कार जापान क़ृषि वैज्ञानिक मस्नोबू फुकुकाजी नें कियां हैं। उनके अनुभवों के आधार पर
लिखी पुस्तक 'दी वन स्ट्रॉ रिवोलुशन 'को पढ़ने से हमने इसे अपने टाइटस फार्म में अपना लिया है। जिसे हम पिछले २७ सालों से कर रहे है इसी प्रकार फुकुकाजी का भी इस खेती में दीर्घ कालीन अनुभव रहा है।

हम कुदरती खेती करने से पहले  जुताई और रसायनों पर आधारित खेती करते थे हमारे खेत मरुस्थल मे तब्दील हो गए थे और हम कंगाली में फंस गए थे कुदरती खेती करने से अब हम आत्म निर्भर हैं सरकारी अनुदान ,कर्ज और मुआवजे से हम मुक्त्त हैँ। हमारे खेतों में कुदरती अनाज ,फल ,सब्जियां ,दूध ,अंडे आसानी से उपलब्ध हैं  इस से ह्मारे देशी कुए लबालब रह्ने लगें हैँ। ईंधन जरुरत से ज्यादह हैं जो आमदनी का स्रोत्त  हैं। खेती में मशीनो और बिजली का ऊपयोग नही के बराबर है।
गांव में किसान सीड बाल बनातें हुऐ 

यह खेती एक और जहाँ किसानो की  आजीविका  के  लिये उत्तम हैं वहीं यह  मरुस्थलों को हरियाली मे बदलने के लिए भी उपयोगी है। गांव में किसान बीज इकठा करते हैं बीज़  गोलियॉं बनातें हैँ जिन्हे हेलिकोप्टर से मरुस्थलों में छिड़क दिया जाता है जिस से मात्र ५ वर्षों में हरियाली पनप जातीं ही। बरसात होने लगती है चारा और फ़सलें मिलने  लगती हैं। यह केवल खेती ही नहीं है यह समाज में सच्चाई और ईमानदारी से भी जीने का जरिया है।

जब से हमने इस खेती को करना शुरू किया है तब से इसे देख़ने के लिए देश के हर प्रांत के अलावा विदेशों से भी अनेक लोग यहाँ आते है वे क्ले की गोलियॉं बनाना सीखते  हैं।  भारत में यह पहला नेचरल फॉर्म है जिस से इस विचार धारा का विस्तार हो रहा है अनेक जगह पर नेचरल फॉर्म स्थापित हुए हैं।

भूमि हीन एवं गऱीब खेतीहरों  के लिये सीड बाल बनाकर बेचना  एक़ उत्तम  लाभकारी धंदा है वहीं अन्य किसानोँ के  लिए कुदरती आहार का विक्रय एक लाभ कारी  धन्दा है।



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