Saturday, July 12, 2014

DROUGHT REASON AND SOLUTION

सूखे की समस्या का कारण और निवारण 

 
इन दिनों हमारा देश अब तक के सबसे बड़े सूखे की समस्या से ग्रस्त है। अधिकतर छोटे बड़े बाँध , छोटे बड़े तालाब तालाब ,कुए ,नलकूप आदि सूख गए हैं।  हर रोज किसानो की आत्म हत्या के  समाचार आ रहे हैं।
पिछले साल मध्य भारत में बहुत पानी गिरा था किन्तु इस साल अभी तक पानी  नहीं के बराबर गिरा है। अनेक खेतों की फसल सूख गयी है।  पीने तक के पानी का गम्भीर संकट उत्पन्न हो गया है।

इस समस्या का मूल कारण खेती करने के लिए की जा रही जमीन की जुताई (Tilling and plowing ) है। 

अधिकतर लोग सोचते हैं की पानी की समस्या से निपटने  के लिए  लिए छोटे बड़े बांध ,तालाब आदि एक पक्का उपाय है यह सच नहीं है। हरे भरे वनो से आच्छादित पहाड़ों को देखिये वहां बिना बरसात के झरने चलते रहते हैं।  जबकि मेदानी इलाके  बूँद बूँद पानी को तरस रहे हैं। यह समस्या हमने गैर कुदरती खेती करके उत्पन्न की है। हम लगातार हरे भरे वन ,बाग़ बगीचों ,और चरोखरों को अनाज के खेतों में तब्दील करते जा रहे हैं। जो मरुस्थल में तब्दील होते जा रहे हैं।

जुताई करने से बरसात का पानी जमीन में नहीं समाता है वह तेजी से बहता है अपने साथ खाद को भी बहा कर ले जाता है।  जब जमीन को नहीं जोता  या खोदा जाता है तो इसके विपरीत बरसात का पानी जमीन में रिस  जाता है वह बहता नहीं है इसलिए खेत की मिट्टी (जैविक खाद ) का बहना भी रुक जाता है।  बरसात  के जल को संग्रहित करने का यह सबसे उत्तम तरीका है।
 हमने  पिछले 27 सालों  से अधिक समय से  खेतों की जुताई बंद कर दी है इस कारण हमारे उथले कुए साल भर भरे रहते हैं। इसलिए हमारा मानना है की-

बहते पानी को रोकने की वजाय बहती जैविक खाद (मिट्टी ) को रोकना जरूरी है।


                                               
https://www.youtube.com/watch?v=q1aR5OLgcc0&feature=player_detailpage



बिना जुताई की कुदरती खेती जिसका आविष्कार जापान के स्व. मनोबू फुकोकाजी ने  किया है एक मात्र
 
ऐसा  तरीका है जिसमे " जैविक खाद " और जल का पूरा पूरा संरक्षण हो जाता है। यह खेती करने की सबसे सरल और उत्तम तकनीक है जो" कुछ मत करो " के  दर्शन और कुदरती सत्य से परिपूर्ण विज्ञान पर आधारित है।


https://www.youtube.com/watch?v=5_5eoUojVpI&feature=player_detailpage

पिछली बार जब मेरी मुलाकात फुकूओकाजी से  गांधीआश्रम में हुई थी उस समय वह कह रहे थे की अभी तक आपने खेती के बारे में जो कुछ भी पढ़ा है उसे भूल जाओ और मेरी किताबों को भी भूल जाओ बस जमीन पर बीज बोने का एक मात्र ऐसा काम जिसे हमें करते जाना है उसके लिए जमीन को खोदना ,खरपतवारों को मारना ,कीड़े आदि को मारना कुछ नहीं करने की जरुरत है केवल हम  रोज बीज इकठा कर उन्हें क्ले ( कपे  वाली मिट्टी जो नदी नालों या पुराने तालाबों में इकट्ठा रहती है जिस से मिट्टी के बर्तन बनते हैं ) की गोलियां बनाकर बिखरते जाएँ। ऐसा करने से हम आसानी से अपने खाने का इंतज़ाम कर सकते हैं और अपने बिगड़ते पर्यावरण को सुधार सकते हैं। जिस से सूखे की समस्या का भी समाधान हो जायेगा। यह  हर हाथ को काम और किसान को समाज सम्मान दिलाने की योजना है।

कहीं कहीं जहाँ क्ले नहीं मिलती है वहां दीमक की मिटटी का भी उपयोग किया जा सकता है. बीज गोली को मजबूत होना चाहिए यह क्ले की क्वालिटी पर निर्भर  करता है हम बीज गोलियों को बना कर उन्हें पानी में डूबा कर उनकी मजबूती का टेस्ट करते हैं यदि वह बिखरने लगती है तो हम मिट्टी में १० % बुझा हुआ चूना मिला लेते हैं यह सलाह हमे Sowing seeds in deserts by Fukuoka से मिली है।

क्ले सब से ताकतवर जैविक खाद है यह गोबर की खाद से १०० गुना अधिक ताकतवर है। इसमें केंचुओं के आलावा असंख्य सूक्ष्म जीवाणु के बीज रहते हैं जो जमीन को उर्वरकता प्रदान करते हैं और जमीन को पोरस बना देते हैं। यह एक प्रकार का "जामन " है जैसा दूध को दही बनाते समय डाला जाता है यह एक प्रकार का" यीस्ट" है जो ब्रेड बनाते समय उसे स्पोंजी बनाने के लिए डाला जाता है। क्ले से खेत जल्द ही उर्वरक  और छिद्रित हो जाते हैं यह काम किसी भी मशीन या रसायन के बस की बात नहीं है।

तैयार गोलियों को यहाँ वहाँ अपनी आवशयकता अनुसार बिखराने  से कुदरती खेती हो जाती है। खरपतवारों और फसलों में लगने वाले रोगों का अपने आप नियंत्रण हो जाता है। यह खेती पेड़ों के साथ हो जाती है। इस तरीके से पनपते मरुस्थलों को भी काबू में किया जा सकता है। अनेक संस्था रेगिस्तानों में बीज गोलियों को हवाई जहाजों से फेंकने का काम कर रहने लगी हैं।







Wednesday, July 9, 2014

STOP DESERTIFICATION


हरियाली है जहाँ खुशहाली वहां हैं.

सूखे से निपटने की योजना 

No Till Organic Farming (बिना -जुताई की कुदरती खेती )

नागेन्द्र  नर्मदा नेचरल फॉर्म कुर्सी थापा गॉंव पिपरिया होशंगाबाद म. प्र.

ग्लोबल वार्मिंग ,मौसम परिवर्तन ,ग्रीन हॉउस गैस उतसर्जन्  को  थामना
जलप्रबंधन और जैव -विविधताओं का संरक्षण, किसान को आत्म निर्भर बनाना ,कुदरती बीज और आहार उपलब्ध करना आदि। 

ये कैसा विकास है जिसमे वन विभाग पेड़ लगा रहा  है और किसान पेड़ों को उखाड कर चाँवल के खेत बनाकर उन्हें रेगिस्तान बनाकर  छोड़ता जा रहा है। 

महोदय ,
गहरी जुताई और रसायनों के बल पर चल रही खेती एक ओर जहाँ खाद्य सुरक्षा के लिए जरूरी है वहीं इसके चलते भूमि ,जल और जैव -विविधता का बहुत छरण हो रहा है। इस से हमारा पर्यावरण बहुत दूषित हो रहा है।  एक ओर जहाँ किसानो की आजीविका प्रभावित हो रही है वही हरियाली का सँकट पैदा हो गया है। कुदरती आहार ,पानी और जलाऊ लकड़ी नहीं मिल रहा है। 
जुताई करने से पेड़ सूख जाते हैं। 

इसी समस्या के निवारण हेतु टाइटस नेचरल फॉर्म ( मो -9179738049 )  पिछले  २७ सालों से बिना -जुताई की कुदरती खेती जो एक पर्यावरणीय खेती है के रिसोर्स सेंटर के रूप में कार्यरत है जिस से प्रेरणा लेकर श्रीमती चांदनी सिन्हा जी ने ग्रांम कुर्सी थापा पिपरिया मे निजी जमींन पर इस आशय का फार्म तैयार किया है। जिसका उदेश्य  आस पास के गांव के लोगों को बिना जुताई की कुदरती खेती करके दिखाना है। 
जुताई से खेत मरुस्थल बन जाते हैं। 

इस से निम्न लाभ अपेक्षित हैं। 
१- हरियाली को बढ़ाना। 
२- ग्रामीण महिलाओं और बच्चों को खेती से जोड़ना। 
३-सीड बॉल बनाकर आर्थिक लाभ  दिलवाना। 
४- कुदरती बीजों और आहार क़े  विकृय से लाभ दिलवाना। 
५- जहरीले कृषि रसायनो का त्याग  करना। 
६ -बिजली और डीजल की बचत करना। 
७-बकरी और देशी मुर्गी पालन को बढ़ावा देना। 
८-अनाज ,सब्जी ,ईंधन में आत्म निर्भरता हासिल करना। 

बिना जुताई की खेती को करने का तरीका 
क्ले की गोलियां बनाना और खेत में डालना बहुत आसान काम है। 

यह खेती बिना जुताई ,खाद ,निंदाई ,दवाइयों, मशीनो और सिंचाई के की जाती है इस क़ो  करने के लिए गांव के आस पास से क्ले (कपे  वाली मिट्टी ) को इकठ्ठा किया जाता है इस मिट्टी और  बीजो को मिलाकर सीड बाल बनायी जातीं हैं जिन्हे सीधे बरसात  के मौसम में खेतोँ में छिड़क दिया जाता है। सभी प्रकार के बीजों के लिए केवल यही तकनीक काम में लाई जातीं  हैं। क्ले जिसमे असंख्यं सूख्स्म जीवाणु और लाभप्रद कीड़ो के  अंडे आदि रहते  हैँ यह ज़मीन को नत्रजन  के अलावा  अनेक पोषक  तत्व प्रदान करते है। खरपतवार आदि को मारा नहीं जाता किँतु उन्हें सुरक्षा  प्रदान की जाती है। खरपतवार और अनेक जीवजन्तु ,सूक्ष्म जीवाणु मिलकर खेत को गहराई तक ताकतवर और नम बनाते हैं।
बिना जुताई की खेती का आविष्कार जापान की जग प्रसिद्ध सुक्ष्म जीवाणु विशेषज्ञ स्व.  मस्नोबू फ़ूओकाजी ने किया हैं। उनकी किताब "दी वन स्ट्रॉ रिवोलुशन " पूरी दुनिया में  अनेक भाषाओं में पढ़ी जाती है। भारत में यह किताब अनेक प्रादेशिक भाषाओं मे उपलब्ध हैं। अमेरिका ,अफ्रीका ,भारत ,ग्रीस ,फ़िलिपीन आदि देशों में इसके अनेक फार्म बन गए है और बनते जा रहे हैं। भारत में पंजाब ,महाराष्ट्र ,उड़ीसा ,कर्णाटक ,गुजरात , तमिलनाडु आदि प्रदेशों में इसके फ़ार्म बन गये हैँ तथा बनते जा रहे हैं।
कुर्सी थापा गांव में किसान बीज गोलियां बना रहे हैं। 


निवेदन 
क्ले की बीज गोलियां सूखे को बर्दाश्त कर लेती हैं कम पानी में भी खेती हो जाती है 

महोदय बिना जुताई की खेती एक कार्बन सेविंग योजना है जिसे क़ृषि एवं पर्यावरण संरक्षण योजनाओ का कोई लाभ उपलबध नही हैं इसलिए इसे भरपूर कार्बन सेविंग अनुदान दिलवाया जाये जिस से इस महत्व पूर्ण योजना का विकास हो सके और अन्य किसान भी इसे अपनाकर अपने को और अपने पर्यावरण को समृद्ध कर सकें।

धन्यवाद

श्रीमती चांदनी  सिन्हा
नागेन्द्र  नर्मदा नेचरल फॉर्म
कुर्सी  थापा
पिपरिया
मो -9711466466                                                                                      

Tuesday, July 8, 2014

Diffrennce in Till and No-Till (Video)

जुताई और बिना जुताई की खेती में अँतर देखिये 


जुताई करने से खेत की बहु मूल्य जैविक खाद( मिट्टी )  बह जाती है और बरसात का पानी जमीन में नही जातां हैं।  हर साल खेत की जुताई करने से खेत  की मिट्टी बहुत सख़्त हो जाती हैं किन्तु बरसात के पानी के साथ मिल कर वह बह जाती है दूसरा  वह बरसात के पानी को जमीन में नहीं जाने देती है। हर साल करीब 10 -15 टन जैविक खाद एक एकड़ से बह जातीँ हैं।  करीब आधी ताकत नस्ट हो ज़ाती हैं। मौसम परिवर्तन का यह असली कारण है।

हर साल इस कारण से सूखा और बाढ़ आ रहा हैं।
https://www.youtube.com/watch?v=q1aR5OLgcc0



किसान आत्म हत्या कर रहे हैं।

इस विडिओ को भेजने के लिए हम उदित जी को घन्यवाद देते हैं। Udit Kumar
Udit Kumar's profile photo
kumar.udit@gmail.com
उदित जी नेचरल फार्मर हैँ ग़ाज़ियाबाद  में रह्ते हैं बायो तकनिकी विशेषज्ञ हैँ। 

Monday, July 7, 2014

Letter to Devender sharmiji (Expert food security)

श्री देवेन्द्र शर्मा जी
लोकसभा टीवी कार्यक्रम आमने  सामने 7 जुलाई 2014
विषय :- खेती किसानी
मान्यवर
नमस्कार
मै आज इस वार्ता को सुन रहा था जिसमे आपने बखूबी किसानो कि दुर्दशा का ज़ो विवरण  प्रस्तुत्त किया है वह सच में बहुत भयावय हैं। इस से ऐसा प्रतीत होता है की अभी तक सरकारों ने खेती किसानी की लिये कुछ भी नहीं किया है। किन्तु हम ये देख रहे हैं कि कांग्रेस हो या भाजपा दोनों ने खेती किसानी के लिए बहुत कुछ किया हैं और करते जा  रहे हैँ अफ़सोस इस बात का है कि सरकार किसानों के" फटे झोले" में पैसा ङाल  रही है जो गिरता जा रहा है।

समतलीकरण ,खाद ,बीज ,जुताई, सिंचाई से लेकर अनाजों की खरीदी तक  में अंधाधुन्द अनुदान दिया जा रहा है। फिर भी किसानो की माली हालत में कोई सुधार नहीं हो रहा है। ये" फटा झोला" है जमीन कि जुताई (Tilling ) जिसे कृषि वैज्ञानिकों से लेकर सरकार और  विषेशज्ञ भी नजर अंदाज  कर रहे हैं। हम पिछले २७ सालो से भी अधिक समय से बिना जुताई की कुदरती खेती  कर रहे हैं। जो  पूरी तरह आत्म निर्भर है। हम डीज़ल ,,रासायनिक उर्वरकों ,कीट और खरपतवार नाशकों के उपयोग नही करते हैँ।
 जुताई आधारित कोई भी खेती चाहे वह रसायनो का उपयोग करती है या नहीं टिकाऊ नही हैं।

जुताई करने से हर साल प्रति एकड़ १० से १५ टन जैविक खाद खेतों से बह जाती हैं। ये कहाँ की बुद्धिमानी है क़ी  पहले आप अपने  खेत की खाद को बहा  दें  फिऱ "और दो और दो चिल्लाएं " इसलिए जितने भी करोड़ आप इस " फटे झोले" मे डालेंगें वह नीचे से निकलता जायगा।

इसलिए हमारा निवेदन है कि सरकार को अब" बिना जुताई " की  खेती को बढ़ावा देने के लिए ठोस कदम उठाने की जरुरत है। बिना जुताई की खेती एक मात्र टिकाऊ खेती हैं जो जैविक खाद और जल का संरक्षण करतीं हैं। जब तक किसान अपने खेत की जैविक खाद को बहने से नही रोकता उसके खेत  बंजर  बनते रहेँगे और वे कंगाल होते रहेंगे।
धन्यवाद
राजू टाइटस
ऋषि खेती किसान
rajuktitus@gmail.com

Saturday, July 5, 2014

PROTECT ORGANIC FLORA

सीड बॉल योजना 

पर्यावरणीय खेती 

राजू टाइटस 

जकल हमारे पर्यावरण और खेती के  बीच लड़ाई छिड़ी है।  पर्यावरण विभाग जंगल बचाने में लगा है वही किसान  हरे भरें वनो क़ो  अनाज की खेतोँ मे बदल  रहा है। इसलिए हम कुदरती खान पान को तरस रहे हैं।  इस से नो तो जंगल विकसित हों रहे हैं नाही खेत और  किसानो क़ा कुछ भला हो रहा हैं। इसके साथ मौसम परिवर्तन ,ग्लोबल वार्मिंग ,सूखा और बाढ़ की समस्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।
मिट्टी की बीज गोलियां 

बिना जुताई की कुदरती खेती जंगलों के नियम   पऱ  आधारित  है जिस प्रकार जंगलों  में असंख्य प्रजातियो क़े पेङ ,जीव जंतु ,कीड़े मकोड़े ,सूख्स्म जीवाणु आदि पर्यावरण को समृध  बनाते हैं वैसे ही कुदरती खेत भी काम करते हैं।
 एक और जहाँ सामान्य  खेती में हरियाली  क़ो खरपतवार  मान कर किसान मारता रहता है जमीन को बार बार जोतता रहता है जिस से बरसात का पानी जमीन  में नही जाता है वह तेजी से बहता है अपने साथ खेत कि जैविक खाद क़ो भी बहा कर लें जातां हैं।
  वहीँ बिना जुताई की कुदरती खेती में हरियाली ,जीव जंतु ,कीड़े मकोड़ों से बरसात का  पानी जमींन मे समां जाता वह बहता नही है। खेत उर्वरक हो जाते हैं। इसलिए खेती की गुणवत्ता और उत्पादकता बढ़ती जाती है।  जिस से किसान आत्म निर्भर हो जाता है और खेत मरुस्थल बननें सें बंच जातें हैँ।
पेड़ों के साथ गेंहू की खेती 

सरकारी वनो के आस पास रह्ने वाले किसानोँ के लिए यह कुदरती खेती बहुत लाभ प्रद है क्योंकि इस आबादी से वनो क़ो  बहुंत छती होतीं होती हैं। यह खेती बहुत आसान है इसको करने के लिए ना तो जुताई करने कि जरुरत है ना ही इसमे मानव निर्मित खाद और दवाई की भी जरुरत नहीं है।सिंचाई भी इसमें जरूरी नहीं है एक चौथाई एकड़ जमीन से एक परिवार जिसमे  ५ -६ सदस्य रहते हैं का भरण पोषण हो जाता है।  जबकि हर सदस्य को प्रतिदिन एक घंटे से अधिक समय की जरुरत नहीं है।

इस खेती को करने लिए  बीजो क़ो क्ले मिट्टी की गोलियों मे बन्द कर  खेतो में डाल दिया जाता हैं।  नमी पाकर बीज अंकुरित हो जाते है क्ले मे जमीन क़ो पोरस करने वाले और नत्रजन देने वाले सूक्ष्म जीवाणु रहते हैं जो तेजी से पनप कर ज़मीन को  पोरस और उर्वरक   बना देते हैं। इस खेती से उत्पादन प्रति फसल  एक टन /चौथाई एकड़ मिल जाता है यानि एक किलो /वर्ग मीटर यह उन्नत आधुनिक खेती के उत्पादन के समतुल्य  है गुणवत्ता के कारण फसलों  का दाम ८ से १० गुना तक रहता है।  कुदरती गुणों के कारण कुदरती अहार कैंसर जैसी बीमारी को भी ठीक कर देता है।
सीड बाल से निकलते नन्हे पौधे  

क्ले मिट्टी आसानी से खेतोँ के पास तालाबों ,पोखरों ,नालो आदि में मिल जाती है यह खेतों कि उपजाऊ मिटटी हैं जो जुताई के कारण बह कर नालो आदि मे इकठ्ठा हो जाती है। मिट्टी में असंख्य नत्रजन देनें वाले सूख्स्म जिवाणुओं सहित केंचुओं आदि के अंडे रहते हैं जो जमीन को तेजी से उपजाऊ बनाते है यह यूरिया का विकल्प हैं। इसमें बीज सुरक्षित हो जाते हैं जिन्हे चूहे, चिड़िया कीड़े कोई नुकसान नहीं पहुँचते है।

सामान्यत : किसान खेतों को खरपतवारों के ड़र से जोतते और बखरते हैँ इस काऱण उल्टा  खरपतवारें कम ना होकर आधिक  से पनपती हैं। जबकि जुताई नहीं करने से इनका प्रकोप नहीं के बराबर हो जाता है। इस खेती में खरपतवारों का होना ज़रुरी है जिस से खेतों में हरियाली का  ढकाव बन जात्ता हैं। इस ढकाव में अनेक जमीन को ताक़तवर और पानी दार बनाने वाले कीड़े मकोड़े ,जीवजन्तु ,सूख्स्म जीवाणु रहने लगते हैं।

आजकल हम मौसम परिवर्तन ,सूखा बाढ़ ,ग्लोबल वार्मिंग ,ग्रीन हॉउस गैस उत्सर्जन की पर्यावरणीय समस्या मे फंसते जा रहे हैं ये समस्या जुताई आधारित रासायनिक खेती के कारण सबसे अधिक बढ़  रही है। यदि यही हाल रहा तो हम इस से तबाह हो जायेंगे।  खेती हम बंद नहीं कर सकते हैं किन्तु जुताई और रसायनों जो अनावश्यक हैं को बन्द कियां जां सकता है। इस से खेती और वनो की लड़ायी रूख जातीं हैं।हरियाली के कारण ग्रीन हॉउस गैस  अवशोषित होकर जैविक खाद में बदल जाती हैँ। यह तकनीक जलप्रबंधन का काम करती है। बरसात ना तो आसमान से आती है ना यह धरती से  आती है यह तो हरियाली की देन है।


रामभरोस क्ले को तैयार करते हुए 

किसानो की  गरीबी और आत्म हत्या बहुत बड़ी समस्या है  इसका कारण गैर कुदरती खेती है जिसका समाधान कुदरती खेती से संभव है।

इस खेती का आविष्कार जापान क़ृषि वैज्ञानिक मस्नोबू फुकुकाजी नें कियां हैं। उनके अनुभवों के आधार पर
लिखी पुस्तक 'दी वन स्ट्रॉ रिवोलुशन 'को पढ़ने से हमने इसे अपने टाइटस फार्म में अपना लिया है। जिसे हम पिछले २७ सालों से कर रहे है इसी प्रकार फुकुकाजी का भी इस खेती में दीर्घ कालीन अनुभव रहा है।

हम कुदरती खेती करने से पहले  जुताई और रसायनों पर आधारित खेती करते थे हमारे खेत मरुस्थल मे तब्दील हो गए थे और हम कंगाली में फंस गए थे कुदरती खेती करने से अब हम आत्म निर्भर हैं सरकारी अनुदान ,कर्ज और मुआवजे से हम मुक्त्त हैँ। हमारे खेतों में कुदरती अनाज ,फल ,सब्जियां ,दूध ,अंडे आसानी से उपलब्ध हैं  इस से ह्मारे देशी कुए लबालब रह्ने लगें हैँ। ईंधन जरुरत से ज्यादह हैं जो आमदनी का स्रोत्त  हैं। खेती में मशीनो और बिजली का ऊपयोग नही के बराबर है।
गांव में किसान सीड बाल बनातें हुऐ 

यह खेती एक और जहाँ किसानो की  आजीविका  के  लिये उत्तम हैं वहीं यह  मरुस्थलों को हरियाली मे बदलने के लिए भी उपयोगी है। गांव में किसान बीज इकठा करते हैं बीज़  गोलियॉं बनातें हैँ जिन्हे हेलिकोप्टर से मरुस्थलों में छिड़क दिया जाता है जिस से मात्र ५ वर्षों में हरियाली पनप जातीं ही। बरसात होने लगती है चारा और फ़सलें मिलने  लगती हैं। यह केवल खेती ही नहीं है यह समाज में सच्चाई और ईमानदारी से भी जीने का जरिया है।

जब से हमने इस खेती को करना शुरू किया है तब से इसे देख़ने के लिए देश के हर प्रांत के अलावा विदेशों से भी अनेक लोग यहाँ आते है वे क्ले की गोलियॉं बनाना सीखते  हैं।  भारत में यह पहला नेचरल फॉर्म है जिस से इस विचार धारा का विस्तार हो रहा है अनेक जगह पर नेचरल फॉर्म स्थापित हुए हैं।

भूमि हीन एवं गऱीब खेतीहरों  के लिये सीड बाल बनाकर बेचना  एक़ उत्तम  लाभकारी धंदा है वहीं अन्य किसानोँ के  लिए कुदरती आहार का विक्रय एक लाभ कारी  धन्दा है।