Thursday, February 28, 2013

किसानो की आत्म हत्या समस्या और समाधान FARMERS SUCIDE PROBLEM AND SOLUTION

किसानो की आत्म हत्या
समस्या और समाधान                                                          
FARMERS SUICIDE
PROBLEM AND SOLUTION

भारत एक कृषि प्रधान देश है यहाँ की करीब सत्तर प्रतिशत आबादी कृषि पर आश्रित है किन्तु पिछले कुछ सालों से कृषि की हालत बिगड़ने लगी है। पहले खेती किसानी आत्म निर्भर थी वह आस पास के पर्यावरण और खुद के संसाधनों से संचालित होती थी। किन्तु अब वह आयातित तेल की गुलाम हो गयी है। ट्रेक्टरों से की जाने वाली गहरी जुताई ,कम्पनिओं के बीज ,रासायनिक उर्वरक , जहरीले खरपतवार और कीट नाशक, बिजली   आदि अनेक बाहरी तत्व खेती के लिए जरूरी हो गए हैं। जो किसानो को खरीदना पड़ता है। इस से खेती की लागत बहुत बढ़ जाती है।

एक जमाना था जब किसान जंगलों में रहता था उसे आसानी से कुदरती आहार मिल जाता था। उसके बाद उसने बीजों से फसल पैदा करना सीखा, वह बरसात आने से पहले जमीन पर सीधे बीज बिखरा देता था बरसात आने पर सब बीज उग आते थे। इन बीजों में सभी प्रकार के बीज मिले रहते थे जैसे अनाज के बीज, सब्जियों के बीज ,चारों के बीज ,फलों के बीज आदि। इनमे कुछ फसलें बरसात के बाद पक जाती थीं तो कुछ ठण्ड में पकती थीं तो कुछ गर्मियों में पकती थीं। बीज फेंकने से पूर्व किसान किसी हरे भरे भूमि ढकाव वाले स्थान को साफ़ कर देते थे।

हरियाली को काट कर बचे अवशेषों को जहाँ का तहां मल्च के रूप में  छोड़ देते थे  वे इस मल्च में बीजों को छिड़क कर खेती करते थे इस खेती में फसलों की रखवाली और हार्वेस्टिंग के आलावा और कोई काम नहीं रहता था। कुछ किसान मल्च को जला  कर भी खेती करते थे। जो किसान मल्च को जला कर खेती करते थे वे हरयाली को पुन: पनपने के लिए दो तीन साल के लिए छोड़ देते थे इस से जमीन फिर से तयार हो जाती थी। इस खेती को झूम खेती  का नाम दिया गया है। खेती करने की ये विधि सब से अधिक समय तक टिकाऊ रही है। आज भी अनेक आदिवासी अंचलों में इस खेती को देखा जा सकता  है।
ये पर्यावरण और आत्म निर्भरता के लिहाज से सर्वोत्तम खेती की विधि थी।

इसके बाद किसानो ने जुताई आधारित खेती करना सीखा पहले वे हाथों से जमीन में मामूली सा छेद बना कर बरसात आने से पूर्व बीज बिखेर देते थे फिर उन्होंने पशु बल से जमीन को जोतना सीखा एक किसान इस तरह काफी लम्बी जोत में खेती कर लेता था। बरसात आने से पूर्व वे अनेक प्रकार के बीजों को खेतों में बिखरकर उन्हें मिट्टी से ढँक दिया करते थे। इस प्रकार साल भर की खेती का काम समाप्त हो जाता था। जुताई से कमजोर होती जमीन को कुछ साल बिना जुताई का छोड़ देने से जमीन सुधर जाती है।

इस खेती में फिर सिंचाई की खेती का चलन शुरू हुआ जिस बेमोसम फसलों को उगाया जाने लगा, सिंचाई के साथ साथ मशीनो का खेती चलन शुरू  हो गया, मशीनो के साथ साथ ,रासायनिक उर्वरक ,कीटनाशक आदि का
भी खूब उपयोग शुरू हो गया।
सब ने इस उपलब्धि को बहुत बड़ी वैज्ञानिक उपलब्धि बताया। खेती इस से आजीविका साधन ना रहकर उधोग में तब्दील हो गयी इस के कारण तेजी से जंगल काटे जाने लगे , चरागाहों को भी खोद कर खेतों में तब्दील किया जाने लगा अनेक फल के बगीचे नस्ट कर दिए गए। ऐसा गेंहूं चावल जैसे मोटे अनाजों की बाजारू खेती के कारण हुआ। ये गेर कुदरती हिंसात्मक खेती सिद्ध हुई जमीने बंजर होने लगी ,खेती में लागत बढ़ने लगी, आत्म निर्भर खेती आयातित तेल की गुलाम हो गयी ,पशु धन लुप्त होने लगा , अधिक खर्च कम मुनाफे के कारण किसान गरीब होने लगे। अनेक किसान फसलों को पैदा करने के लिए कर्ज लेने लगे ,कर्ज नहीं पटा पाने के कारण वो आत्म हत्या करने लगे। मात्र कुछ ही सालों में वैज्ञानिक खेती का बोरिया बिस्तर लिपटने लगा। अब तक करीब तीन लाख किसान आत्म हत्या कर चुके हैं। भारत का अनाज का कटोरा कहलाने वाला प्रदेश पंजाब में हर दुसरे दिन तीन  किसान आत्म हत्या कर है। महारास्ट्र  में हालत इस से भी गंभीर है। कोई भी प्रदेश इस समस्या से अछूता नहीं है।
कुदरती खेती के अविष्कारक 

खेती और पर्यावरण का चोली दामन का साथ है। दोनों एक दुसरे पर निर्भर हैं। जंगलों को नस्ट कर ,जमीन को गहराई तक जोतने खोदने और उस में अनेक जहरों को डालने से समस्या विकराल बनी है। भला हो जापान के
कृषि वैज्ञानिक ,कुदरती खेती के किसान ,और गाँधीवादी अहिंसात्मक खेती के प्रणेता श्री फुकुओकाजी का जिन्होंने बिना-जुताई ,बिना निदाई ,बिना खाद ,बिना उर्वरक,बिना कीट नाशकों के ऐसी खेती का अविष्कार कर दुनिया के सामने ये सिद्ध कर दिखाया की खेती से जुडी सब वैज्ञानिकी केवल धोका है इस की कोई जरुरत नहीं है। ये हमारे पर्यावरण और खेत-किसानो के लिए बहुत नुकसान दायक है।  कुदरती खेती से खाद्य ,हवा, पानी ,पर्यावरण की समस्या के साथ साथ  खेतों और किसानो का संवर्धन हो जाता है।
गेंहूं की फसल NATURAL WHEAT CROP
पेड़ों के साथ गेंहूं की खेती GROWING WHEAT WITH TREES  
      हम पिछले 27 सालों से इसका अभ्यास कर रहे हैं और इस के प्रचार और प्रसार में सलग्न हैं। कुदरती खेती जंगलों में अपने आप पनपने वाली वनस्पतियों के समान की जाने वाली खेती है। कुदरती स्थाई वनों में अनेक कुदरती जैव-विविधताओं के रहने से जीने मरने से जिस प्रकार जमीन और वातावरण ताकतवर होता जाता है उसी प्रकार कुदरती खेतों में भी खेतों की ताकत और मोसम में बढ़ते क्रम में इजाफा होता है जिस का लाभ कुदरती फसलों को मिलता है। फसले निरोगी ,रोगों को दूर करने वाली लाभप्रद ,लागत रहित पैदा होती हैं। इस खेती को करने से किसान को कर्ज की कोई जरुरत नहीं रहती है घाटा नहीं होता है। 

      कुदरती खेती सच्ची कुदरत मां की सेवा है जब की जुताई और रसायनों पर आधारित खेती कुदरत मां की हिंसा पर आधारित खेती है। खेतों और किसानो को बचाने का यह एक मात्र उपाय बचा है।

शालिनी एवं राजू टाइटस

 
Through this article I want to tell that Why millions of farmers committing suicide in India?. And how this problem can be avoided.

First we lived in forests eat fruits, roots etc. Than we learned grow seeds. Slash- and-burn was first invention of primitive agriculture. Then we learned cultivating the soil and sow the seeds in the soil. These two types of ways of shifting cultivated and are sustainable ways.

But after when chemicals and mechanical farming started the sustainability of agriculture vanished. Farmers became slave of fossil fuel and harmful chemicals. Deforestation, desertification, climate changes, droughts and floods become common. Self reliant farming converted in to industrialized slave farming.

Masnobu Fukuoka was first world famous scientist who invented farming based on without tilling , without man made fertilizers and compost , without weeding etc. He gave name of this farming “Natural farming” he wrote “The one Straw Revolution”. This book opened new path back to nature.

Titus Farm is pioneer in India. Is in its 27 the year. Many people following this modal. Any body can follow this way and saved his farm and life.


*Raju Titus.Natural farm.Hoshangabad. M.P. 461001.*
       rajuktitus@gmail.com. +919179738049.
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Monday, February 25, 2013

कृषि-दवाओं का गोरख धंदा Monkey business in Agree drugs

कृषि-दवाओं का गोरख धंदा

ज कल फसलों के इलाज के लिए अनेक प्रकार की जैविक और अजैविक दवाइयों की चर्चा जोरों पर है. ये दवाएं खाद ,उर्वरक , कीटनाशक ,खरपतवार नाशकों ,टोनिक ,टीकों के रूप प्रचलित है . ये दवा रासायनिक,हारमोनिक  ,जैविक आदि तरीकों से बनाई जा रही है। अनेक दवाई जहर के रूप में कीड़ों और नींदों को मारने के लिए बन और बिक रही हैं।
EFFECT OF PESTICIDES BORN WITHOUT HANDS AND LEGS दवा का असर
बिना हाथ और पांव का बच्चा पैदा हुआ।  

हम पिछले 27 सालों से कुदरती खेती का अभ्यास कर रहे हैं। इस दोरान हमने आज तक किसी भी प्रकार की दवाई का उपयोग अपने खेतों में नहीं किया है. हम खेती करने के लिए जमीन की जुताई नहीं करते हैं। जुताई नहीं करने से हमारे खेतों में रहने वाले जीव जंतु ,कीड़े मकोड़े ,नींदे आदि खेतों को गहराई तक पोला बना देते हैं जिस से बरसात का पानी जमीन में समां जाता है वह बहता नहीं है इस लिए खेतों की खाद भी नहीं बहती है. खेतों में खाद पानी की कोई कमी नहीं रहने से उसमे ताकतवर फसलें पैदा होती हैं। इस लिए उनमे कोई रोग का प्रकोप नहीं रहता है. यदि कोई रोग आता है तो कुदरती संतुलन के कारण वह अपने आप चला जाता है.

असल में फसलों में लगने वाली बीमारियों के पीछे फसलोत्पादन के लिए अमल में लाये जा रहे गेरकुद्रती उपाय हैं जैसे  जमीन की जुताई , गेर-कुदरती खाद और दवाओं का उपयोग ,खरपतवारों की हिंसा , कीड़ों को मारना आदि।

गेर-कुदरती खेती के पीछे आज की गेर-कुदरती डाक्टरी का सबसे बड़ा हाथ है. ये डाक्टरी हिंसा पर आधारित है.
इस महिला के तीन बेटे केंसर से मर गए। 3 SON DIED DUE TO CANCER
कुछ भी बीमारी दिखी तो उसके पीछे बीमारी के कीड़े दिखने लगते हैं बस उन्हें मारने  के लिए जहरों का उपयोग शुरू हो जाता है जिस से बीमारी और बढ़ जाती है. फसलें मर जाती है। इसी प्रकार ये डाक्टर लोग अनेक प्रकार की मानव निर्मित खाद ,उर्वरकों ,हारमोनिक टोनिक आदि की सिफारिश करते रहते हैं। अब तो ये अनेक सूक्ष्म-जीवाणुओं को शीशी में भर कर बेचने लगे हैं।

जब से रासायनिक दवाओं और जहरों से  होने वाले हानिकारक प्रभावों का असर पहचाना जाने लगा है तब से आर्गेनिक और बायो तकनीको का हल्ला जोरों पर है अनेक नीम हकीम पनपने लगे हैं। गोबर गो मूत्र से भी दवाएं बनने लगी हैं उनके पीछे परंपरागत खेती किसानी और धार्मिक सोच के आधार पर लोगों की आस्था से खिलवाड़ किया जा रहा है. ये बहुत बड़ा गोरख-धंधा है.
NATURAL CROP OF RICE कुदरती चावल की फसल 

खेती के डाक्टर किसानो को पहले ऐसी तकनीक बताते हैं जिस से खेत कमजोर हो जाते है उनमे कमजोर फसल पैदा होती है जो बीमार हो जाती हैं फिर वे उन में दवा के नाम पर अनेक जहर डालने की सलाह देते हैं एक दवा के बेअसर हो जाने पर दूसरी दवा फिर तीसरी दवा डलवाते रहते हैं फसलों के मर जाने पर वे भी वे किसानो  पीछा नहीं छोड़ते है बेचारा किसान बंजर खेतों ,बीमार फसलों के आगे बेबस हो कर आत्म हत्या तक कर लेता है.



अनेक लोग हमारे खेतों पर पनप रही निरोगी फसलों को जो आस पास के खेतों से अच्छी रहती है  को देख कर
दांतों तले ऊँगली दबा लेते हैं। अनेक खेती के डाक्टर भी यहाँ आते हैं वे भी फसलों को देख कर अचंभित तो होते हैं पर इस खेती को करने की सलाह नहीं देते हैं। वो कहते है की जो हम यहाँ देख रहे हैं वह सत्य है किन्तु हमने इसे पढ़ा नहीं है.

कुदरती खेती से जुडी जीवन पद्धति के नहीं पनपने के पीछे एक और  जहाँ खेती से जुड़े डाक्टर साधू संतों आदि का दोष है वही इनके सहारे अपनी दुकान चलाने  वाले योजनाकारों और जन प्रतिनिधियों का हाथ है. उनका कहना है की यदि सब किसान कुदरती खेती करने लगेंगे तो कम्पनियों और दुकादारों का क्या होगा ?
कुदरती गेंहू की फसल  NATURAL WHEAT CROP

 उन्हें बंजर होते खेत ,आत्म हत्या करते किसानो, खाने की थाली में मिलते जहरों , कुपोषण की समस्या ,बढ़ते केंसर के रोगी ,मौसम परवर्तन ,पर्यावरण प्रदुषण जैसे सामाजिक सरोकारों से कोई लेना देना नहीं है. हमारा मानना है की कुदरती खेती को अपना कर हम आज हम उपरोक्त सभी समस्याओं पर काबू पा सकते हैं।

शालिनी एवं राजू टाइटस
कुदरती खेती के किसान

 
Now a day’s use of organic and inorganic medicines for the treatment of crops is in full swing. These medicines are available in the form of fertilizers, weed killers, pesticides, tonic and bio-fertilizers. These medicines are being made by chemicals, hormones and organics. Many medicines are highly poisonous.

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The last 27 years we have been practicing natural farming. In this period we have not used any medicines for crop protection or treatment. We do not tilling land. Due to no till field is in full biodiversity which make soil healthy ,crops remain free from disease. If some disease comes it naturally cured.


Actually crop diseases product of unnatural ways of farming such as tilling, use of chemicals, killing of weeds, killing of insects etc.





The unnatural way of farming is based on killing of biodiversity. Killing of weeds, killing of insects, killing of viruses etc. Ultimate result of this killing is dead soil. Growing crops in dead soil is not possible without hazardous chemicals, hormones etc.
Many bottled microbes are also come in market as bio-tonic.



As the awareness spreading about the pollution caused by agro chemicals many alternative medicines coming in market in the name of organic and bio. Many fake doctors befooling farmers. Medicines made by cow dung and urine are also in market, religious faith is being played by monkey business.



Doctors first advised to make soil poor by deep tilling. Poor soil produces weak crops prone to disease, than they advised to use poison to kill insects, insects become immune spread strongly kill all crop. Many farmers in India are committing suicide due crop failure by this reason.


Many doctors are coming to our natural farm after comparing  crops by our neighbor’s they admire truth  but do not say that this way of farming is possible because thy do not read this way in doctor’s course.



Natural farming is a method of agriculture which can prevent harmful effect of aggro drugs but monkey business is stopping. Many children born handicapped ,many people dying due to cancer , desertification spreading. Farmers are committing suicide due to crop failure.
   









Friday, February 22, 2013

RICE WORLD RECORD धान का विश्व-कीर्तिमान

धान का  विश्व-कीर्तिमान
श्री सुमंत कुमार किसान
नालंदा बिहार भारत
    जमीन से मिलने वाली पैदावार की कोई सीमा नहीं है . हाल ही में नालंदा के किसान श्री सुमंत कुमार ने 2 2 .4 टन धान प्रति हेक्टर पैदा कर विश्व कीर्तिमान स्थापित किया है . उन्होंने इस से पहले का कीर्तिमान जो 1 9 .5 था को तोडा है. जो चीन के वैज्ञानिक श्री युआन ने स्थापित किया था .

श्री सुमंत कुमार
SUMANT KUMAR 
श्री सुमंत कुमार का कीर्तिमान इस लिए अधिक महत्व का है क्योंकि उन्होंने ये उपज बिना रसायनों और बिना अनु-वांशिक बीजो के प्राप्त किया है. इस की गुणवत्ता बहुत अधिक है . हम ये दावे के साथ कह सकते हैं की एक और जहाँ श्री युआन का चावल केंसर जैसी बीमारी को जन्म देने में समर्थ है वैसे श्री सुमंतजी का चावल केंसर जैसी बीमारी को ठीक करने में समर्थ है .

इस से पूर्व जापान के कुदरती किसान श्री स्व .मासानोबू फुकुओकाजी ने बिना-जुताई खाद और दवा के एक टन से अधिक प्रति एक चोथाई चावल की पैदावार अनेक सालों तक लगातार बढ़ते क्रम में लेकर कीर्तिमान बनाया था . फसलोत्पादन के लिए जमीन की कुदरती ताकत और मौसम  का बड़ा हाथ है. जमीन की ताकत जमीन में पैदा होते मरते जैविक अंशो पर निर्भर है. जैविक अंश जिन्हें हम कीड़े,मकोड़े ,पेड़पौधे ,सूक्ष्म जीवाणु आदि कहते हैं। ये जैव-विविधताएँ जमीन पर उस समय पनपती हैं जब जमीन को अपने कुदरती स्वरूप में रहने दिया जाये . अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के चक्कर में किसान जमीन को खूब खोदते जोतते हैं, उस में अनेक प्रकार के रासायनिक जहर डालते हैं . खेतों को पानी में डूबा कर रखते हैं . इस लिए जमीन की जैव-विविधताएँ मर जाती हैं . उनसे मिलने वाली ताकत भी ख़तम होने लगती है.
सुमंतजी की फसल
SUMANT'S PADDY CROP


कुदरती खेती की फुकुओका विधि एक मात्र ऐसी विधि है जो जमीन ताकत को बढ़ते क्रम में बनाये रखने में सक्षम है. इस विधि में इसी कारण जमीन की जुताई ,कीचड की मचाई ,मानव निर्मित खाद और कीट/नींदा नाशक उपायों, नरवाई ,पुआल आदि को हटाना आदि गेर-कुदरती उपाय वर्जित हैं .

चीन के वैज्ञानिक महोदय जी का कहना है की श्री सुमंतजी का 2 2 .4 टन प्रति हेक्टर का उत्पादन बिना रसायनों और बिना अनुवांशिक उपाय के असंभव है. हम पिछले 2 7 सालों से बिना जुताई बिना रसायनों के खेती कर रहे हैं . इस विधि का अविष्कार श्री फुकुकाजी ने कर दीर्घ कालीन विश्व स्तरीय कीर्तिमान कर बहुत पहले दुनिया को दिखा दिया है.
चीन के वैज्ञानिक श्री युवान लोंगपिंग
MR YUVAN LONGPING OF CHINA
PREVIOUS WORLD RECORD HOLDER.

श्री सुमंत  कुमार जी ने भी इस विधि के बहुत करीब जाकर ये कीर्तिमान स्थापित किया है . इस के लिए वे बधाई के पात्र हैं किन्तु चीन के श्री युवान गेर-कुदरती तरीके से गेर-कुदरती फसल के रिकार्ड के लिए बधाई के पात्र नहीं है। रसायनों और जी एम् से खेत ख़राब होते है।
हमारा ये मानना है की श्री सुमंत कुमार जी यदि अपनी इस विधि से गेर-कुदरती उपाय यदि हैं तो  हटा देते हैं तो साल दर साल वे अपने रिकार्ड को बनाये रख सकते है। किन्तु गेर-कुदरती चावल के तथा कथित पितामह कभी भी उत्पादन को टिकाऊ नहीं रख सकते हैं।
शालिनी एवं राजू टाइटस
कुदरती खेती के किसान

MR SUMANT KUMAR FARMER OF NALANDA BIHAR INDIA PRODUCE 22.4 TONS OF PADDY (WET) FROM ONE HECTARE. HE NOT USED CHEMICAL AND GM SEEDS. HE BROKEN PREVIUS RECORD OF MR YUVAN LONGPING OF CHINA WHO WAS WINNER OF
WORLD RECORD IN PADDY PRODUCTION ,PRODUCED 19.5 TONS.

MR YUVAN IS NOT SATISFIED WITH THE YIELD SHOWN BY MR SUMANT OF INDIA AS PER HIM CLAIM IS FAKE. I AM NOT SATISFIED WITH MR YUVAN'S STATMENT AND WORK BECAUSE HE PRODUCED UNNATURAL CROP WITH GM SEEDS AND HAZARDOUS
CHEMICALS. MR SUMANT KUMAR'S CLAIM IS JUSTIFIED BECAUSE HE PRODUCED NATURAL CROP OF PADDY.

MR KUMAR'S YIELD IS JUST DOUBLE FROM FUKUOKA' YIELD IT SHOWS THAT YIELD IS DEPEND OF GOOD NATURAL HEALTH OS SOIL. THIS HEALTH IS POSSIBLE ONLY BY USING
FUKUOKA PRINCIPALS. THERE IS NO LIMIT OF YIELD IN NATURAL WAY OF FARMING METHODS.
THANKS
RAJU

Thursday, February 21, 2013

KOBRA AND CAT कोबरा, बिल्ली और मैं !

कोबरा, बिल्ली और मैं !
  एक दिन की बात है मेरी भेंस जिसका नाम भूरी है हमारे सुबबूल के कुदरती खेतों में चरने के लिए गयी थी,  उसकी पड़िया ( भेंस की बच्ची) जिसका नाम सलमा है हमेशा की तरह घर मे अपनी माँ  का इंतजार कर रही थी. खेतों मे जानवरों को  लम्बी रस्सी से बांधना पड़ता है. उन्हें सुबबूल के पेड़ों से पत्तियों को काट काट कर  खिलाया जाता है. असावधानी के कारण उसकी टांग रस्सी मे उलझ गयी थी जिस से वह ऐसी गिरी की उस से उठते ही नहीं बना. इस कारण वो उस रात घर नहीं आ सकी.

 गो धूलि का समय था. सार (जानवरों को बांधने की जगह) में अँधेरा था. सलमा को दूध नहीं मिलने से वो बहुत रो रही थी, और मैं उसे उपरी दूध पिलाने की कोशिश कर रहा था. मैं उखरू बैठ कर कटोरे से उन्ग्लिओं के सहारे दूध पिलाने लगा. सलमा विचलित न हो जाये इस लिए मैने टोर्च को बुझाकर नीचे रख दिया था.
    इसी बीच मुझे सांप के फुफकारने की आवाज आई. मैने टोर्च को जला कर देखा तो सामने मुंडेर पर जंगली बिल्ली बैठी  थी. मैने सोचा एक और बिल्ली होगी और वे लड़ रही होंगी. उनकी आवाज भी सांप के फुफकारने जैसी रहती है. हमारे कुदरती खेतों में सांप, जंगली बिल्लियाँ, नेवले ,मोर आदि यहाँ वहां घूमते रहते हैं. इनके कारण अपने आप एक कुदरती संतुलन बना रहता है.
    अबकी बार ये फुफकारने की आवाज बिलकुल मेरे कान के पास सुनाई दी. मैने पुन: टॉर्च को जला दिया. और पलट कर देखने लगा. देखा तो बिलकुल मेरे कान के पास कोबरे का सिर था. जैसे ही मेरी आंख उस की आँखों से मिली तो मुझे महसूस हुआ की वो किसी चीज़ से डर कर मेरे पीछे छुपने की कोशिश कर रहा है. वो फुफकार कर मुझ से कहने की कोशिश कर रहा है की मुझे बचाओ. मैने सामने देखा वही जंगली बिल्ली थी मेरे कारण वो आगे नहीं बढ़ पा रही थी. मैने धीरे से "हट" "हट" करते हुए बिल्ली को भगाने की कोशिश की. वह दो कदम पीछे चली गयी. उसके पीछे हटने से कोबरा भी नीचे सिर कर जाने लगा. मैं हट हट करते रहा बिल्ली हटती गयी और कोबरा भी जाता रहा, वो मुड़ मुड कर  मुझे और बिल्ली को देखता जा रहा था. और देखते देखते वो आँखों से ओझल हो गया.
 उसके जाने के बाद मैने सोचा की आखिर मुझे डर क्यों नहीं लगा ? मुझे डर इस लिए नहीं लगा क्यों की यदि में डर कर ऐसी वैसी हरकत कर देता तो वो मुझे  डस सकता था . कुदरती खेती करने से पहले मैं साँपों को देख कर सीधे मारने की कोशिश करता था. कभी उनको अपना मित्र नहीं समझता था. किन्तु इस कोबरे ने मेरी आंख खोल दी. यदि वो भी मेरी तरह मुझे दुश्मन समझता तो में जिन्दा नहीं बच सकता था.
राजू टाइटस

Wednesday, February 20, 2013

ORGANIC NO -TILL FARMING बिना-जुताई की जैविक खेती

(A) ORGANIC NO TILL FARMING
बिना-जुताई की जैविक खेती


जब से गहरी जुताई और रासायनिक खेती के दुष्प्रभावों की चर्चा होने लगी है तब से विकल्प के रूप में जैविक खेती और बिना जुताई की रासायनिक खेती की चर्चा जोरों पर है।
जैविक खेती 
(ORGANIC FARMING)
"जैविक खेती सामान्यत: उस खेती करने की पद्धति को कहते हैं जिसमे नींदों की हिंसा  जुताई से  सामान्य तरीके से की जाती है. किन्तु रसायनों का इस्तमाल नहीं होता है। "
आगे हरे भूमि ढकाव को सुलाने वाला क्रिमपर रोलर पीछे बिना-जुताई की बोने की मशीन 

   जैविक खेती में जुताई करने से बरसात का पानी जमीन में ना समाकर तेजी से बहता है जो अपने साथ जैविक खाद को भी बहाकर ले जाता है। इस से खेत लगातार कमजोर होते जाते है।
बिना-जुताई की रासायनिक खेती  
NO-TILL CONSERVATIVE FARMING
"बिना-जुताई की रासायनिक खेती उस खेती करने की पद्धति को कहते हैं जिस में जुताई नहीं की जाती है किन्तु नींदों की हिंसा जहरीले रसायनों से की जाती है  इस से रसायनों का प्रदुषण बना रहता है जिस से जैव-विविध्तायों की हिंसा होती है. जिस से खेत कमजोर हो जाते है.


बिना-जुताई की जैविक खेती 
                                                        NO-TILL NATURAL/ORGANIC FARMING

बिनाजुताई की जैविक खेती
हरे वीड कवर को सुला कर खेती
NO-TILL NATURAL/ORGANIC FARMING
GREEN COVER CRIMPING BY FOOT POWERED TOOL.
बिना-जुताई की जैविक खेती का रास्ता उपरोक्त दोनों आधुनिक खेती के दोषों को समाप्त कर देता है. इसमें जुताई , रसायनों की कोई जरुरत नहीं रहती है. नींदों को मारा नहीं वरन पाला जाता है.  जिस से एक और जहाँ भूमि और जल का छरण पूरी तरह रुक जाता है वहीँ रासायनिक प्रदुषण नहीं रहने से जमीन की जैव विविधतायों का बढ़ता क्रम बना रहता है. जिस से जमीन की ताकत हर मोसम बदती जाती है.

इस खेती को करने के लिए किसी भी प्रकार के मानव निर्मित खाद और खरपतवार नाशक तथा कीटनाशक उपाय की जरुरत होती है. इस खेती में खड़ी खरपतवारों या फसलों के बीच बीजों को छिड़क दिया जाता है और खरपतवार को काट कर या क्रिम्पर यंत्र की सहायता से जहाँ का तहां सुला दिया जाता है. फसलो को काट  कर उसके अवशेषों को भी जहाँ का तहां फेला दिया जाता है .

कृषि अवशेषों के ढकाव से खेती
STRAW FARMING
खेतों में खड़ी हरी फसलों या  अन्य वनस्पतियों को 'हरा भूमि ढकाव ' कहा जाता है. इसके नीचे असंख्य जीव-जंतु कीड़े-मकोड़े निवास करते हैं जो जमीन को गहराई तक छिद्रित बना  देते है ,जमीन को नमी प्रदान करते है ,जैविक खाद बनाते है. जड़ों और छिद्रियता के कारण बरसात का या सिचाई का पानी जमीन में गहरायी तक समां जाता है. इस कारण जमीन में उन तमाम पोषक तत्वों की जरुरत की आपूर्ति हो जाती है जिनकी फसलों को जरुरत रहती है. फसलों के अवशेषों जैसे नरवाई ,पुआल आदि को जहाँ का तहां वापस कर देने से एक जहाँ जमीन की ताकत बढती जाती है वही फसलों का उत्पादन भी बढ़ता जाता है. ये खेती करने की तमाम टिकाऊ खेती की तकनीकों में सर्वोत्तम विधि है.
शालिनी एवं राजू टाइटस
ऋषि-खेती किसान
THERE IS EQUALITY IN NATURAL WAY OF FARMING AND NO-TILL ORGANIC WAY OF FARMING. THESE METHODS OF FARMINGS ON TOP IN THE LIST OF SUSTAINABILITY BECAUSE THESE METHODS SAVING WEEDS INSTEAD OF KILLING.
WHEREAS NO-TILL CONSERVATIVE WAY OF FARMING IS NOT SUSTAINABLE DUE TO KILLING OF WEEDS BY CHEMICAL POISON AND ORGANIC WAY OF FARMING IS ALSO NOT SUSTAINABLE DUE TO KILLING OF WEEDS BY TILLING.

*Raju Titus.Natural farm.Hoshangabad. M.P. 461001.*
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Friday, February 15, 2013

DROUGHT IN MAHARASHTRA बूँद बूँद को तरसता महारास्ट्र

DROUGHT IN MAHARASHTRA
ऋषि-खेती
बिना-जुताई की कुदरती खेती
बूँद बूँद को तरसता महारास्ट्र 

जैसे ही आज हमने  टीवी पर ये खबर देखी वैसे ही हम लिखने बैठ गए . एक ओर हमारे फल के बगीचे हैं जिनमे हमने गेंहू बोया है उनमे हम पानी की अधिकता से परेशान हैं। गेंहू की फसल अधिक बढ़ने के कारण गिरने लगी है वहीँ महारास्ट्र में संतरे के बगीचे जो फलते फलते पानी की कमी के कारण सूख रहे हैं।
सूखती फसल के आगे बेबस किसान
HELPLESS FARMER LOOKING HIS CROP DAMAGED BY DROUGHT 
                                                      
हमारे ये बाग़ बिना-जुताई की कुदरती खेती को करने के कारण पानी से भरपूर हैं। महारास्ट्र के संतरे के बाग़ जुताई वाली रासायनिक खेती करने के कारण  हो रही पानी की कमी के कारण मर रहे हैं। ये समस्या केवल संतरों के बागानों तक सीमित नहीं पूरा महारास्ट्र फसलोत्पादन के लिए की जा रही जमीन की गहरी जुताई के कारण बूँद बूँद के लिए तरसने लगा है।

महारास्ट्र ही क्यों? हर वह प्रदेश या देश फसलोत्पादन के लिए जमीन को गहराई तक खोदेगा /जोतेगा वह भी भविष्य में बूँद बूँद के लिए तरसेगा।
हजारों बाग़ सूख गए
THOUSANDS OF ORCHARD DIED
जब भी फसलोत्पादन के लिए जमीन को जोता या बखरा जाता है बखरी बारीक मिट्टी कीचड में तब्दील हो जाती है जो बरसात के पानी को जमीन के भीतर जाने नहीं देती है। इस के आलावा जमीन पर जितनी वनस्पतियाँ ,कीड़े मकोड़े आदि रहते हैं उनके घर बरसात के पानी को जमीन के अंदर ले जाने का काम करते हैं।
जमीन की जुताई के कारण ये घर मिट जाते हैं। खबर में बताया गया है की ये समस्या देश के कृषि मंत्रीजी के छेत्र में भी है कृषि वैज्ञानिको के पास इस का कोई उपाय नहीं है. 

  

बरसात असमान से नहीं जमीन से आती है जमीन में पानी होगा तो पानी बरसेगा। जिस रास्ते से जमीन में पानी अंदर जाता है उसी रास्ते से पानी वास्प बन कर बादल बन बरसता है।
बिना -जुताई की कुदरती खेती
NO-TILL NATURAL FARMING



बिना-जुताई की कुदरती  खेती का अविष्कार श्री मस्नोबू फुकुओकाजी ने किया है। उनका कहना है की पानी उपर से नहीं वरन जमीन के भीतर से आता है बशर्त पानी को जमीन में जाने से नहीं रोक जाये। हमें बिना-जुताई की खेती को करते 27 साल हो गए हैं। इस से पूर्व हम भी जुताई आधारित खेती करते थे इस से हमारे कुए सूखने लगे थे किन्तु जब से हमने बिना-जुताई की खेती को करना शुरू किया है तब से हमारे देशी उथले कुओं का जल स्तर लगातार बढ़ रहा है।
कुदरती खेती जापान
GREEN COVER IN THE SHADE AREA OF FRUIT TREES
                

महारास्ट्र में सूखे से निबटने के लिए पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है। जबकि बिना-जुताई की कुदरती खेती करने से 80% लागत कम हो जाती है। फसलोत्पादन के आलावा पानी की फसल अतिरिक्त प्राप्त होती है।




शालिनी एवं राजू टाइटस
27 सालों से बिना-जुताई की कुदरती खेती के किसान

THERE IS SEVERE DROUGHTS IN MAHARASTRA INDIA THIS YEAR. THOUSANDS OF ORANGE ORCHARDS ARE DYING DUE THIS. MANY VILLAGERS ARE NOT GETTING DRINKING WATER FOR PEOPLE AND DOMESTIC ANIMALS.

AS PER MR FUKUOKA WATER IS NOT COMING FROM SKY IT IS COMING FROM GROUND. IF GROUND IS PROPERLY RECHARGED WATER VAPORS COVERTS IN CLOUDS WHICH BRINGS RAIN. TILLING OF LAND AND KILLING OF SOIL BIODIVERSITY NOT ALLOWED RAIN WATER TO ABSORBED BY SOIL IS MAIN CAUSE OF DROUGHTS.

FARMERS ARE TILLING IN ORCHARDS AND KILLING ALL GREEN  COVER OF GROUND DO NOT ALLOW RAIN WATER TO GO IN THE SOIL. IF FARMERS ALLOW GREEN COVER IN THEIR ORCHARD STOP TILLING THEY WILL GET SUFFICIENT RECHARGING.

FUKUOKA WAY OF FARMING IS BEST WATER SHADE METHOD AND BEST WATER MANAGEMENT. COST OF THIS METHOD IS 80% LESS.


कुपोषण: समस्या और समाधान


कुपोषण: समस्या और समाधान 


पिछले कुछ सालों से भारत में कुपोषण के बढ़ते चरण की बहुत चर्चा है। कहा जा रहा है की करीब आधी आबादी इसकी चपेट में है। 70% महिलाएं एनिमियां यानि खून की कमी का शिकार हैं ,नवजात बच्चों की मौत और अपंगता ने आज तक के सारे रिकार्ड तोड़ दिए हैं। केंसर जैसे असाध्य रोग आम होने लगे हैं। मधुमेह और दिल की बीमारी अब हर किसी को हो रही है। समय से पहले बालों का पकना और झड़ना  , आँखों से कम दिखाई देना, दांतों का टूटना, बार बार सर्दी जुखाम और बुखार आना आदि सब कुपोषण के निशान हैं। 

आखिर क्या है ये कुपोषण ?

हमारा शरीर एक कुदरती जैविक अंश है। इसे जीवित रहने और पनपने के लिए कुदरती खान ,पान और हवा की जरुरत रहती है  जब ये  नहीं या कम मिलता है तो  इस दशा को कुपोषण कहते हैं। ये एक प्रकार की भुखमरी है।
ये समस्या किसी को भी अपनी गिरफ्त में ले सकती है चाहे वह गरीब हो या अमीर हो ,मोटा हो पतला हो,छोटा हो या बड़ा हो।

हमारा शरीर  कुदरती तंत्र का  हिस्सेदार हैं जो अनेक  जैव-विवधताओं को आहार के रूप में इस्तमाल करता है। जब ये जैव-विविधताये गेर कुदरती हो जाती हैं तो शरीर इसे स्वीकार नहीं करता है वह गेर-कुदरती खान-पान के कारण भूका रहते हुए कुपोषण का शिकार हो जाता है।

इस समस्या का जन्म  मात्र कुछ सालों से  अधिक दिखाई दे रहा है। इस समस्या का  सम्बन्ध गेर-कुदरती आहार से है। ये गेर-कुदरती आहार  गेर-कुदरती खेती में पैदा होता है ,जिसका चलन मात्र कुछ सालों से शुरू हुआ है। जिसमे फसलोत्पादन के लिए की जा रही मशीनी जमीन की जुताई और रसायनों का उपयोग प्रमुख है।
कुदरती चावल की फसल 

कुदरती गेंहू की फसल 
मशीनी जमीन की जुताई से खेतो की कुदरती खाद और पानी का बड़े पैमाने पर छरण होता है जिस से जमीन जो स्वं एक कुदरती तंत्र कुपोषण का शिकार हो जाती है इस लिए इस में पनपने वाली तमाम जैव-विविधताये भी कुपोषित हो जाती हैं। जिनके कुपोषण का असर हम पर और हमारे मवेशियों पर पड़ता है। खाने के अनाज,सब्जियां, दूध,मांस आदि सब गेर-कुदरती तरीके से पैदा होने के कारण कुपोषित और प्रदूषित रहते हैं। इनमे कुदरती स्वाद,खुशबु और जायके की भारी  कमी रहती है।

इस के विपरीत  जंगल में मिलने वाली तमाम कुदरती खाने वाली जैव-विवधताओं हैं ये सब कुदरती स्वाद, जायके और खुशबु से परिपूर्ण ,स्वास्थवर्धक रहती हैं। इनको खाने से कुपोषण नहीं होता है यदि हो जाये तो वह ठीक भी हो जाता है।
कुदरती फलों की फसल 


बिना-जुताई की कुदरती खेती अनाज ,सब्जी,फल,दूध,अंडे आदि पैदा करने की ऐसी तकनीक है जिसमे जमीन की जुताई और कृषि-रसायनों का उपयोग बिलकुल नहीं किया जाता है। सभी खाद्य विविधताएँ  जंगल में पैदा होने वाली विवधताओं की तरह स्वादिस्ट,खुशबु और जायके वाली होती हैं। इनको खाने से कुपोषण की समस्या नहीं रहती है।