Monday, September 24, 2012

कुदरत के आगे विज्ञान फेल है।


कुदरत के आगे विज्ञान फेल है।
महोदय,
जब से म.प्र. के माननीय मुख्यमन्त्री महोदय ने आयातित लाल गेहूं की गुणवत्ता पर प्रष्न चिन्ह लगाया है। खाद्य पदाथों को परखने वाले वैज्ञानिकों मे खलबली मची है। वे इसे प्रदूषित नहीं मान रहे हैं। उनका यह कहना कि यह खाने योग्य है, बिलकुल हास्यासप्रद है।
असल मे वैज्ञानिकों के पास कुदरति जिस्नों को परखने का कोई प्रबन्ध है ही नही, होता तो बरसों से हरित क्रान्ति के द्वारा परोसा जाने वाला प्रदूषित अनाज कब का बन्द हो गया होता। विज्ञान कुदरति स्वाद और ज़ायके की पहचान करने मे पूरी तरह फेल है। यही कारण है अंसख्य लागों के कहने पर इस गेहूं की रोटी कड़वी,बेस्वाद और रबर जैसी खाने येाग्य नही है कोई मान नही रहा है। मामला कोर्ट से भी बेरंग वापस आने वाला है। यदि जज या हमारे मुख्य मन्त्री महोदय भी यह कहें कि यह बेस्ुवाद है तो भी इसे प्रूफ करने के लिये किसी डाक्टर के सर्टीफिकेट की आवष्यकता होगी जिसके लिये वैज्ञानिक जांच की जरुरत होगी और वैज्ञानिक इसे विज्ञान की अंधी आंख से प्रेाटीन और विटामिनो के तुलनात्मक प्रमाणों के आधार पर खाने येाग्य बताकर अपना पल्लू झाड़ एक तरफ हो जायेंगे।
जबसे हरित क्रान्ति बनाम आधुनिक वैज्ञानिक खेती का अनाज आना शुरु हुआ है तबसे कुदरति स्वाद और जायका हम भूल ही गये हैं। गरीब मज़दूर वर्ग कब से यह कहते कहते थक गया कि जहां दो रोटी से पेट भर जाता था वहां अब आठ रोटी से भी पेट नहीं भरता है। छोटे बच्चे कुदरति स्वाद जायके को खूब पहचानते हैं क्योंकि वे प्रोटीन और विटामिन की भाषा से अनभिज्ञ रहते हैं।
कुदरति स्वाद और जायके का हमारे स्वास्थ्य से सीधा सम्बन्ध है। कुदरति हवा पानी और भोजन बड़ी से बड़ी बीमारी को ठीक कर देते हैं। हमारा निवेदन है कि सरकार को अनाज और सब्जियों की कुदरति गुणवत्ता जांचने के लिये वैकल्पिक उपाय पर जोर देना चाहिये।
शालिनी एवं राजू टाईटस
बिना-जुताई की कुदरति खेती के किसान
खोजनपुर,होशंगाबाद ,म.प्र. ४६१००१ फोन .07574.२८००८ मोब.9179738049

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