आयातित तेल की गुलामी और खाने में जहर से कैसे बचें ?
जब मैने ये सुना की हम इन दिनों अपनी जरुरत का ८०% तेल आयात कर रहे हैं तो बहुत जोर का झटका लगा. आज़ादी के इतने साल के बाद जहाँ हम विकास और विकास को सुनते थकते नहीं थे वहीँ ये विकास हमें मिला है की हम तेल के गुलाम हो गए हैं.ये गुलामी अंग्रेजों की गुलामी से कहीं बहुत बड़ी गुलामी है.
दूसरे जहाँ हमारे नेता ये कहते थकते नहीं हैं की हमने खेती में इतना विकास कर लिया है की पहले हम खाना बाहर से बुलाते थे और अब विदेशों को भेज रहे हैं.हमारे पास रखने को जगह नहीं है. किन्तु जब हमने अमीर खान का शो ( थाली में जहर) देखा जो उन्होंने सत्यमेव जयते के माध्यम से दिखाया था तो हमें ये जान कर बहुत दुःख हुआ इस अनाज से जिस के लिए हम गर्व कर रहे हैं वह पूरा का पूरा रासायनिक जहरों से भरा है जिस से केंसर जैसी अनेक बीमारियाँ पनप रही हैं. इस अनाज को हमारी सरकार छोटे छोटे बच्चों के पोषण हेतु खिला रही है.
ये बहुत ही गंभीर समस्या है जिस पर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है. पर्या-मित्र विकास की तो बात सब करते हैं किन्तु कोई भी इस पर अमल नहीं कर रहा है.
इस से तो हम बहुत खुश हैं की हम अपने कुदरती खेतों में रहते हैं बिना आयातित तेल की मशीनों का उपयोग करे ,बिना रसायनों का उपयोग करे ,बिना कीट और खरपत नाशक दवाओं का उपयोग करे. आत्म निर्भर कुदरती खेती कर आराम से जीवन व्यतीत कर रहे हैं. हमारे पडोसी किसान अभी हवा में उड़ रहे हैं वे आयातित तेल की गुलाम आधुनिक वैज्ञानिक खेती कर रहे हैं. और गेस ,डीज़ल के बढे दामो से परेशान हैं.
बिना जुताई की कुदरती खेती बहुत आसान है इसकी गुणवत्ता और उत्पादकता भी आधुनिक वैज्ञानिक खेती के मुकाबले बहुत अधिक है.
हम पेडों पर पैसे उगाते हैं. हमने अपनी जमीन में अधिकतर भू भाग में सुबबूल नाम के पेड़ लगायें हैं. ये पेड़ बड़ा ही चमत्कारी है इस के बीज जमीन पर गिरते हैं वे वहाँ अपने आप सुरक्षित पड़े रहते हैं बरसात आने पर उग आते हैं और एक साल में पेड़ बन जाते हैं. इनसे हमारे पशुओं को चारा मिलता है जिस से हमें दूध और जलाऊ लकड़ी मिलती जिसे बेचकर हमें पर्याप्त पैसा मिल जाता है. इस के अलावा गोबर से गोबर गेस और जैविक खाद पर्याप्त है.
आज क़ल सब जगह कुदरती जल की बहुत कमी है सत्यमेव जयते के पानी वाले एपिसोड में बताया गया है दिल्ली में लोग अपने टॉयलेट के पानी को साफ कर बार बार काम में ला रहे हैं. बिना जुताई की कुदरती खेती करने से हमारे उथले कुए साल भर कुदरती जल से भरे रहते हैं एक विदेशी मेहमान हमारे कुओं के जल को पी कर कह रहे थे आप टोकियो और अमेरिका के अच्छे से अच्छे तरीके से साफ़ किए पानी को नहीं पी सकते क्यों की आप इन कुदरती कुओं का पानी पीते हैं.
आयातित तेल की गुलामी और हमारे खाने में मिल रहे रासायनिक जहरों से मुक्ति बहुत आसान है यदि हम बिना जुताई की कुदरती खेती का अभ्यास करें. इस से ८०% खर्च में कटोती हो जाती है. अन्य लाभ अतिरिक्त हैं.
rajuktitus@gmail.com.
जब मैने ये सुना की हम इन दिनों अपनी जरुरत का ८०% तेल आयात कर रहे हैं तो बहुत जोर का झटका लगा. आज़ादी के इतने साल के बाद जहाँ हम विकास और विकास को सुनते थकते नहीं थे वहीँ ये विकास हमें मिला है की हम तेल के गुलाम हो गए हैं.ये गुलामी अंग्रेजों की गुलामी से कहीं बहुत बड़ी गुलामी है.
दूसरे जहाँ हमारे नेता ये कहते थकते नहीं हैं की हमने खेती में इतना विकास कर लिया है की पहले हम खाना बाहर से बुलाते थे और अब विदेशों को भेज रहे हैं.हमारे पास रखने को जगह नहीं है. किन्तु जब हमने अमीर खान का शो ( थाली में जहर) देखा जो उन्होंने सत्यमेव जयते के माध्यम से दिखाया था तो हमें ये जान कर बहुत दुःख हुआ इस अनाज से जिस के लिए हम गर्व कर रहे हैं वह पूरा का पूरा रासायनिक जहरों से भरा है जिस से केंसर जैसी अनेक बीमारियाँ पनप रही हैं. इस अनाज को हमारी सरकार छोटे छोटे बच्चों के पोषण हेतु खिला रही है.
ये बहुत ही गंभीर समस्या है जिस पर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है. पर्या-मित्र विकास की तो बात सब करते हैं किन्तु कोई भी इस पर अमल नहीं कर रहा है.
इस से तो हम बहुत खुश हैं की हम अपने कुदरती खेतों में रहते हैं बिना आयातित तेल की मशीनों का उपयोग करे ,बिना रसायनों का उपयोग करे ,बिना कीट और खरपत नाशक दवाओं का उपयोग करे. आत्म निर्भर कुदरती खेती कर आराम से जीवन व्यतीत कर रहे हैं. हमारे पडोसी किसान अभी हवा में उड़ रहे हैं वे आयातित तेल की गुलाम आधुनिक वैज्ञानिक खेती कर रहे हैं. और गेस ,डीज़ल के बढे दामो से परेशान हैं.
बिना जुताई की कुदरती खेती बहुत आसान है इसकी गुणवत्ता और उत्पादकता भी आधुनिक वैज्ञानिक खेती के मुकाबले बहुत अधिक है.
हम पेडों पर पैसे उगाते हैं. हमने अपनी जमीन में अधिकतर भू भाग में सुबबूल नाम के पेड़ लगायें हैं. ये पेड़ बड़ा ही चमत्कारी है इस के बीज जमीन पर गिरते हैं वे वहाँ अपने आप सुरक्षित पड़े रहते हैं बरसात आने पर उग आते हैं और एक साल में पेड़ बन जाते हैं. इनसे हमारे पशुओं को चारा मिलता है जिस से हमें दूध और जलाऊ लकड़ी मिलती जिसे बेचकर हमें पर्याप्त पैसा मिल जाता है. इस के अलावा गोबर से गोबर गेस और जैविक खाद पर्याप्त है.
आज क़ल सब जगह कुदरती जल की बहुत कमी है सत्यमेव जयते के पानी वाले एपिसोड में बताया गया है दिल्ली में लोग अपने टॉयलेट के पानी को साफ कर बार बार काम में ला रहे हैं. बिना जुताई की कुदरती खेती करने से हमारे उथले कुए साल भर कुदरती जल से भरे रहते हैं एक विदेशी मेहमान हमारे कुओं के जल को पी कर कह रहे थे आप टोकियो और अमेरिका के अच्छे से अच्छे तरीके से साफ़ किए पानी को नहीं पी सकते क्यों की आप इन कुदरती कुओं का पानी पीते हैं.
आयातित तेल की गुलामी और हमारे खाने में मिल रहे रासायनिक जहरों से मुक्ति बहुत आसान है यदि हम बिना जुताई की कुदरती खेती का अभ्यास करें. इस से ८०% खर्च में कटोती हो जाती है. अन्य लाभ अतिरिक्त हैं.
rajuktitus@gmail.com.
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