Monday, August 7, 2017

गेंहूं की खेती के लिए जुताई अनावशयक है।

गेंहूं की खेती के लिए जुताई अनावशयक है। 

गेंहू रबी के मौसम में बोया जाता है। इस मौसम में नींदो की कोई समस्या नहीं रहती है इसलिए जुताई करने का कोई औचित्य नहीं है। गेंहूं को हम पिछले तीस साल से अधिक समय से सीधे फेंक कर ऊगा रहे हैं जिस से एक ओर  हमे उत्पादन सामान्य  मिलता है और जुताई ,खाद ,दवाओं का कोई खर्च नहीं लगता है। 

यदि गेंहू बिना जुताई किसी दलहन फसल के बाद बोया जाता है तो उसे कुदरती यूरिया  का अतिरिक्त लाभ मिलता है। नहीं तो सीधे गेंहू को फेंकते समय साथ में एक किलो प्रति एकड़ बरसीम के बीजों को मिला देने से कुदरती यूरिया की मांग की आपूर्ति हो जाती है। 
धान की फसल के बाद  की गयी गेंहूं की खेती (चित्र श्री बेरवा  फार्म मंडीदीप )
पैदावार दो टन प्रति एकड़ 

जुताई करना और रासायनिक यूरिया का उपयोग खेतों के लिए बहुत नुक्सान का है इस से एक ओर  जहां आर्थिक नुक्सान होता है वहीं खेत की आधी ताकत एक बार की जुताई से नस्ट हो जाती है दूसरा रासयनिक यूरिया भी गैस बन कर उड़ जाती है बची यूरिया गेंहूं को मुर्दार बना देती है। 

गेंहूं को यदि बरसाती फसल को काटने के पूर्व करीब दो सप्ताह पहले खड़ी  फसल में उगाया जाता है तो काफी समय की बचत हो जाती है। गेंहूं जब खड़ी फसल के अंदर उग जाता है और फसल को काटा जाता है तो गेंहूं के नन्हे पौधे पांव से दबते हैं किन्तु उन्हें कोई नुक्सान भी नहीं होता है। सामन्य मिलती है। 

इस प्रकार गेंहू की खेती करने में करीब 70 %खेती खर्च कम आता है और 50 % सिंचाई खर्च भी कम हो जाता है। जमीन की उर्वरकता का बढ़ने। फसल की गुणवत्ता से मिलने वाले लाभ अतिरिक्त है। यह गेंहूं कैंसर जैसी बीमारियों को भी ठीक करने की ताकत रखता है इसलिए ऊंची कीमतों पर माँगा जाता है। 

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