Sunday, May 1, 2016

बिना -जुताई की बारानी कुदरती खेती

बिना -जुताई की बारानी  कुदरती  खेती

गर्माती धरती और जलवायू परिवर्तन को थामने  की योजना 

क्ले से बनी बीज गोलियां 
मारा देश इन दिनों जलवायू परिवर्तन की भयानक त्रासदी झेल रहा है।  कही सूखा पड़ा है  तो कहीं बाढ़ आ रही है। गर्मी इस हद तक बढ़ गई है की जंगल अपने आप झुलसने लगे हैं। इसका मूल कारण जुताई आधारित गैर -कुदरती खेती है। जिसमे सिंचाई का बहुत बड़ा हाथ है।

भारतीय परम्परागत खेती किसानी में बारानी खेती होती थी। जिसमे खेत की  उर्वरा शक्ति , जल धारण और  ग्रहण शक्ति का किसान खास ध्यान रखते थे। किन्तु हरित क्रांति के मात्र कुछ सालो  ने देश को मरुस्थल  तब्दील कर दिया है। हालत हमारे सामने है।

हरे कवर को सुलाने वाला रोलर 
इसलिए अब समय आ गया है की हम सही हरित क्रांति का आगाज़ करें जिस से हमारे खेत ,गाँव पुन : हरे भरे  उर्वरक और पानी दार बन जाएँ। इसके लिए हमे बिना जुताई की बारानी खेती पर जोर  देने की जरूरत है।  जो बहुत आसान है जिसमे बहुत अधिक लागत की जरूरत नहीं है। यह खेती हाथों से ,बैलों की सहायता से और मशीनों से की जा सकती है।

इसमें पहले जमीन पर अपने आप पैदा  होने वाली वनस्पतियों  जिनको खरपतवार कहते हैं को पनपने दिया जाता है।  हरियाली का ढकाव करीब एक फ़ीट का हो जाता है इसमें सीधे या क्ले से कोटिंग किए गए अनेक किस्म के बीजों को बिखेर दिए जाते हैं और खरपतवारों के ढकाव को जहां का तहाँ जैसा का तैसा सुला दिया जाता है। खरपतवारों को इस प्रकार सुलाना जरूरी है की वह  मरे नहीं और तुरंत सीधा भी न हो सके।

हरे कवर पांव से सुलाने का तरीका 
 इस विधि में एक साथ अनेक एक बार अनाज ,सब्जी  पेड़ों के बीज बोन से साल भर फसल मिलती रहती है।
क्ले मिट्टी में जमीन को उर्वरक और पानीदार  बनाने असंख्य सूक्ष्म जीवाणु रहते हैं। जुताई नहीं करने से बरसात का पानी जमीन में समा जाता है। जो वास्प बन सिंचाई करता रहता है। हरा कवर   खरपतवारों और कीड़ों का नियंत्रण कर लेता है सड़ कर जैविक खाद में तब्दील हो जाता है।




1 comment:

Jayesh Ramjibhai Ladani said...

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