Monday, March 21, 2016

नरवाई क्रांति

नरवाई क्रांति

नरवाई आज भले किसानो को बेकार लगे किन्तु इस से उत्पन्न क्रांति असली है। 
ब से मशीनो से की जाने वाली गहरी जुताई और जहरीले रसायनो से खेती की जाने लगी है तब से खेतों में हरियाली का नामोनिशान नहीं है। अनेकों कुदरती वन ,बाग़ बगीचे और स्थाई चरोखर इसके भेंट चढ़ गए हैं।

देशी खेती किसानी में खेती पशुपालन और पेड़ों के समन्वय से की जाती थी।  हर किसान अपने यहां पशुधन रखता था बैलों का उपयोग कृषि कार्यों में होता था गायों से दूध मिलता था गोबर गोंजन  आदि खाद के रूप में इस्तमाल होता था।  पशुओं के लिए चरोखर और जंगल खेतों की तरह संभाले जाते थे।  जिस से हमारा पर्यावरण संतुलित रहता था। मौसम में कोई परिवर्तन नहीं होता था।

देशी खेती में फसलो से मिलने वाले अवशेषों जैसे नरवाई ,पुआल आदि को बहुत कीमती माना जाता था इसे किसान पशुओं के चारे के लिए सम्हाल कर रखता था। किन्तु अब सब किसान कृषि कार्यों के लिए मशीनो का इस्तमाल करने लगे हैं ,खाद के  लिए रसायनो  का इस्तमाल  होने लगा है। दूध पैकेट में मिलने लगा है गायों की कोई जरूरत नहीं रह गयी है।   फसल की कटाई  भी मशीनो से होती है  अनाज सीधे खेतों से मंडी चला जाता है।
इसलिए नरवाई और पुआल आदि को खेतों में ही जला  दिया जाता है।
पुआल को जलाते किसान 

कृषि अवशेषों को जला देने से खेत को बहुत नुक्सान होता है। हमारे खेत असंख्य जीव जंतु ,कीड़े मकोड़ों का घर होते हैं।  यह जैव विविधतायें खेत की उर्वराशक्ति और जल ग्रहण की शक्ति में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इन जैव विवधताओं के जीवन चक्र से फसलों के लिए आवशयक पोषक तत्व मिलते हैं इनके मर जाने से विपरीत परिणाम मिलते हैं।

मसानोबू फुकुओका एक जग प्रसिद्ध सूक्ष्मजीवनु वैज्ञानिक रहे हैं।  उन्होंने अनेक साल जापान सरकार के कृषि विभाग में शोध का कार्य किया था। उन्होंने अपने शोध से यह पाया की फसलोत्पादन के लिए की जा ही जमीन की जुताई ,रसायनो का उपयोग और नरवाई आदि को जलाने से बहुत बड़ी हिंसा होती है। इसलिए उन्होंने आधुनिक वैज्ञानिक खेती के बदले अहिंसा पर आधारित खेती की खोज की जिसमे सबसे बड़ा  काम जैविविधताओं को बचाना है।
नरवाई क्रांति गेंहूँ की फसल दिखाते फुकूओकाजी 

उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ कर अपने खेतों में ऐसी  खेती का आविष्कार कर डाला जिसमे जमीन की जुताई ,खादों का उपयोग ,कीटनाशकों और नींदा नाशको का उपयोग नहीं है। इसमें मशीनो और सिंचाई का भी उपयोग यही है।  इस खेती को वे नरवाई (स्ट्रॉ )क्रांति कहते है।

इस खेती में वे फसलों को काटने और गहयी के उपरांत सभी नरवाई आदि को जहाँ का तहाँ वापस खेतों में फैला देते हैं।  ऐसा करने से खेतों में एक सूखा ढकाव बन जाता है। इस ढकाव में असंख्य कीड़े मकोड़े ,सूख्स्म जीवाणु ,केंचुए आदि काम करने लगते है जो जमीन को बहुत गहराई तक पोला  बना देते हैं जिस से बरसात का पानी जमीन के भीतर चला जाता है। इन जैव-विवधताओं के जीवन चक्र से पोषक तत्वों की आपूर्ति हो जाती है ,खरपतवारों का नियंत्रण हो जाता है ,इस ढकाव में रहने वाले अनेक मेंढक ,छिपकली आदि फसलों पर आने वाले कीड़ों को खा लेते हैं।

 नरवाई और पुआल आदि का ढकाव सब से महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता  है।  जमीन धूप ,तेज बरसात और आंधी  से भी बची रहती है। इस नरवाई क्रांति ने एक और जहाँ आधुनिक वैज्ञानिक खेती को धता बता दिया वहीँ परम्परगत पशुबल से की जाने वाली को  भी बेकार सिद्ध कर दिया है।
गेंहूँकी नरवाई से झांकते धान के पौधे 

होशंगाबाद का तवा  कमांड का छेत्र मिनी पंजाब कहलाता है।  पंजाब और  तवा के छेत्र में नरवाई और पुआल को जलाना जरूरी समझा जाता है।  एक और जहाँ यह छेत्र हमारी खाद्य सुरक्षा के लिए  जरूरी हैं वहीं  अब ये मरुस्थल में तब्दील हो रहे हैं।  सारे किसान कर्ज के  बोझ में दब  गए हैं।  इस छेत्र के किसानो को मुआवजा  देते २ अब सरकार भी कर्जदार हो गई है।  हर एक निवासी पर हजारों रु का कर्ज चढ़  गया है।

पर्यावरण दूषित हो रहा है रोटी में जहर घुलने लगा है। पंजाब की तरह हर चौथे घर में कैंसर का खतरा उत्पन्न हो गया है ,हर किसी के खून में रासायनिक जहर सीमा पार कर रहा है। दूध पिलाने वाली माताओं के दूध में जहर घुल रहा है।

किन्तु आज भी यदि आमआदमी ,सरकार ,कृषि वैज्ञानिक और किसान नरवाई क्रांति का उपयोग करने लगे तो स्थिति पलट सकती  है।  हम पिछले तीस सालों  से नरवाई क्रांति का लाभ उठा कर खेती कर रहे हैं और इसका नि :शुल्क प्रशिक्षण भी दे रहे हैं।









1 comment:

Jayesh Ramjibhai Ladani said...

Very useful information......farmers must return to basic AFAP.