सत्य और अहिंसा
आमआदमी की लड़ाई
ऋषि -खेती
भारत की आज़ादी की लड़ाई महात्मा गांधीजी के नेतृत्व में हमने अंग्रेजों से "सत्य और अहिंसा " के बल जीती थी,किन्तु इस आज़ादी को चंद बेईमान लोगों ने सत्ता के खातिर मिट्टी में मिला दिया। जिसमे परंपरागत राजनैतिक पार्टियों की सरकारों बड़ा हाथ है . ये सरकारें विकास के नाम पर भ्रस्टाचार करती हैं तथा जाती और धर्म के नाम पर लोगों को आपस में लड़वा कर भ्रस्टाचार में लिप्त हो जाती है.
यही कारण है की हमारे देश में खेती किसानी जो इस देश को आत्मनिर्भर रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थी अब दम तोड़ रही है. खेत रेगिस्तान में तब्दील हो रहे हैं किसान आत्महत्या करने लगे हैं. इसी कारण उधोगधंदे भी नहीं पनप रहे बाजार में मंदी सर पर चढ़ी जा रही है. महंगाई ,बेरोजगारी चरम सीमा पर है वहीं हमारा पर्यावरण दूषित हो गया है हमे खाने को कुदरती खाना नहीं मिल रहा है वहीं पीने के पानी और हवा में भी जहर घुल रहा है. कैंसर जैसी महामारियां मुंह बाये खड़ी है.
इन्ही समस्याओं को लेकर विगत दिनों दिल्ली में एक अहिंसातमक आंदोलन भ्रस्टाचार को लेकर अन्नाजी के नेतृत्व में किया गया जो सत्य और अहिंसा पर आधारित था जिसे भारी संख्या में लोगों का समर्थन मिला किन्तु दुर्भाग्य की बात है इस आंदोलन का मौजूदा सरकारों और जन प्रतिनिधियों पर कोई भी असर नहीं हुआ और आंदोलन बिना किसी निष्कर्ष के खत्म हो गया.
किन्तु इस आंदोलन से निकले कुछ साहसी लोगों ने इस आंदोलन को एक नयी दिशा प्रदान कर इस आंदोलन को राजनीती में बदल दिया उसका मूल कारण यह था की जिन लोगों के आगे हम गिड़गिड़ाते हैं वे सब के सब सत्ता के भूखे हैं और उनके आगे चुनाव जीतने के अलावा कोई और उदेश्य नहीं है. इसलिए उन्होंने आमआदमी के गुस्से को एक अहिंसात्मक राजनीतिक आंदोलन की तरफ मोड़ दिया जिसका नाम रखा गया "आमआदमी पार्टी " जिसका उदेश्य सत्ता को हासिल करना नहीं है वरन देश भर में जनता के ऐसे आंदोलनों को एकत्रित करना है जो आज नहीं तो कल अन्याय के कारण हिंसा की तरफ मुड़ सकते हैं. यह हिंसा का विकल्प है.
इस आंदोलन का पहला प्रयोग दिल्ली में सरकार बनाने तक हम सबने देखा अब यह आंदोलन पूरे देश में
जन आंदोलन की शक्ल हासिल कर रहा है जिसमे देश भर से अनेक आंदोलनकारी लोग जुड़ रहे हैं. यह आज २०१४ के लोकसभा चुनाव में अपनी उपस्थिती दर्ज कराने में सफल हो गया है. यह स्वराज के नाम से दूसरी आज़ादी की लड़ाई के रूप में जाना जाने लगा है जिसमे पूरी दुनिया से लोग जुड़ रहे है इस की जड़ में महात्मा गांधीजी के आदर्श कूट कूट कर भरे हैं. यह लड़ाई बापू के सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चल रहा है. इस कारण इसमें फेल होने का कोई भय नहीं है.
इस आंदोलन में भले श्री केजरीवालजी के मात्र उंगिलयों पर गिने जा सकने वाले दोस्तों के नाम दिखाई देते हों पर इस से अंदरूनी तौर पर करोड़ों देशवासी जुड़ते जा रहे हैं.इसका मूल कारण हर घर में आ रही अनेक समस्याएं है और इन समस्याओं को हल करने में मौजूदा परंपरागत राजनैतिक पार्टियां बेकार सिद्ध हुई हैं.
अभी ये आंदोलन देश के महानगरों में उत्पन्न आमआदमी की तकलीफों से प्रेरित होकर महानगरों तक ही केंद्रित है किन्तु ये धीरे देश के दूरदराज गांवों में भी अपनी पैठ बनाने लगा है. गांवों की स्थिति महानगरों से कहीं अधिक गंभीर है. हमारा देश खेती किसानी वाला देश है जिसमे पिछले हजारों सालो से खेती किसानी पर्यावरण के अनुकूल आत्म निर्भर और टिकाऊ थी किन्तु मात्र आज़ादी के कुछ सालो में ये खेती आयातित तेल की गुलाम होकर रह गयी है और तेल का व्यापार देश की बड़ी २ कम्पनियों के हाथ में चला गया है. तेल एक तो सहज उपलब्ध नहीं है तथा वह महंगा होता जा रहा है. उस से प्रदूषण चरम सीमा पर है और तेल के कुए भी अब सूखते जा रहे हैं. ऐसे में एक और किसानो के आगे आजीविका संकट आ गया है और आमआदमी के खाने पीने की दिक्कतों में तेजी से इजाफा हो रहा है. जो खाना आज हमे मिल रहा है वह भी कमजोर और प्रदूषित है जिसके कारण कैंसर जैसी महामारियां अब चरम पर हैं.
किसी भी देश की जनता उस देश में प्राप्त कुदरती खान और आवोहवा पर निर्भर रहती है. जिसका सम्बन्ध हरियाली और उस पर आश्रित जैवविधताओं से रहता है. इसी लिए कहा जाता है की हरियाली है जहाँ खुशहाली है वहां, किन्तु मौजूदा सरकारी खेती किसानी ने हरियाली को बहुत ही तेजी से नस्ट किया है इस कारण हम अब कुदरती आवोहवा और खान पान से महरूम हो रहे हैं. हमारी धरती जिसे हम प्यार से भारत माँ कहकर बुलाते है बीमार होकर मूर्छित हो गयी है उस में हमे खाना खिलाने की ताकत नहीं रही है.
महानगरीय विकास हर हाल में दूरदराज के गांवों और आसपास के पर्यावरण पर निर्भर रहता है किन्तु जिस तरह से ये विकास हो रहा है वह विकास नहीं विनाश है. एक दिन तेल या बिजली नहीं मिले तो लोग मरने लगेंगे। जबकि आज भी अनेक गांवों में बिजली और तेल के बिना लोग लोग आराम से रह रहे हैं. असल में महानगरीय विनाश को कम करने की जरुरत है. उसके लिए नगरों की अपेक्षा दूरदराज के गांवों में हो रही खेती किसानी को आत्मनिर्भर और पर्यावरणीय बनाने के जरुरत है. शेर और हाथी पालना कोई पर्यावरणीय काम नहीं है असल में हर खेत पर्यावरणीय कुदरती हरियाली से ढंका होना चाहिए।
यांत्रिक जुताई ,जहरीले रसायनो और भारी सिचाई पर आधारित खेती हमारे पर्यावरण के लिए बहुत घातक सिद्ध हो रही है यह खेती असत्य और हिंसा पर आधारित है. जमीन की जुताई और जहरीले रसायनो से जमीन मर जाती है. यह सबसे बड़ी हिंसा है. जब तक यह हिंसा जारी रहेगी हमारे मानव एवं कुदरती संसाधनो के हनन को नहीं रोक जा सकता है.
ऋषि खेती एक गांधीवादी खेती है जो सत्य और अहिंसा पर आधारित है यह खेती जुताई रसायनो के बगैर की जाती है इस से एक और जहाँ हरियाली पनपती हैं वहीं बरसात का पानी जमीन में समां जाता है. पानी की कमी सबसे बड़ी समस्या है. दिल्ली गुजरात देश के सबसे विकसित कहे जाने वाले प्रदेश हैं किन्तु वहां पीने के पानी का अकाल है.
हम पिछले २७ सालो से अपने पारिवारिक खेतों में ऋषि खेती का अभ्यास कर रहे हैं तथा इसके प्रचार प्रसार में सलग्न हैं. हम खुश हैं की आज जहाँ महानगरों में जहाँ कुदरती आवो हवा और भोजन उपलब्ध नहीं है हमे कोई कमी नहीं है. आज की सभी पार्टियां अपने चुनावी वायदों में कोई भी यह नहीं कह रही हैं की हम लोगों कुदरती आवोहवा और खाना उपलब्ध कराएँगे सभी सीमेंट कंक्रीट के विकास की बात कह रही हैं.
चुनाव जीतने के बाद सारा काम निजी कंपनियों के हवाले कर दिया जायेगा नेता लोग मोटी मोटी रकम लूट कर अपने घर में बैठ जायेंगे।
ऋषि खेती एक ऐसी योजना है जिसमे निजी कंपनियों का कोई रोल नहीं है इस लिए कोई बढ़ावा नहीं दे रहा है.
ऐसे अनेक काम है जिसमे पैसे की कोई जरुरत नहीं रहती है अन्नाजी का कहना है आज पैसे से सत्ता और सत्ता से पैसे का खेल चल रहा है. आमआदमी पार्टी एक ऐसी पार्टी है जो सत्य और अहिंसा के आधार पर बनी है उस से हम उम्मीद करते हैं की वो अब पैसे के खेल पर विराम लगाएगी और ऋषि खेती जैसी बिना लागत की खेती को बढ़ने में सहयोग करेगी जिस से आमआदमी को कुदरती आवो हवा और आहार मिल सके.
आजकल अनेक पढ़े लिखे और बहुत पढेलिखे लोग और अनेक अमीर लोग इस बात को पहचान कर ऋषि खेती की और आकर्षित हो रहे हैं उनका कहना है हम पैसे का क्या ? करें हमे तो कुदरती आवो,हवा और भोजन चाहये।अमेरिका ,ब्राज़ील,ऑस्ट्रेलिया ,केनेडा आदि देशो में बिना जुताई की खेती के रूप में ऋषि खेती अपने पांव जमा रही है. जबकि उनका पर्यायवरण हमारे देश की अपेक्षा उतना अच्छा नहीं है. इसलिए हम उम्मीद करते हैं की हम सब अब अपने खातिर इस यज्ञ में आहूती करेंगे।
धन्यवाद
शालिनी एवं राजू टाइटस
ऋषि खेती के किसान