विश्वाशी-खेती
(कुदरती खेती का परिचय)
प्रभु यीशु मसीह का जीवन दर्शन सत्य और अहिंसा पर आधारित है।यही हमारा
विश्वाश है।खेती हमारी जीवन पद्धति है।पहले हम सभी इस पद्धति के सहारे
कुदरत के साथ मिल कर रहते थे।हम कुदरत से मिले हवा,पानी ओर भोजन को सेवन
करते स्वस्थ और खुश रहते थे। इस से हमारे समाज में शांति थी।आपस में
प्रेम था।किन्तु धीरे धीरे हमारी खेती कुदरत से दूर होती गयी। इस कारण
कुदरती हवा,पानी और भोजन की कमी में रहने लगे, आपस का प्रेम नहीं रहा और
शांति भंग हो गयी है।
हम सामजिक लड़ाईयों ,बुराइयों ,बीमारियों में फंस गए हैं। हमें इस से
बाहर निकलना है।इस में परवर्तन लाना है।इस लिए सब से पहले हमें अपने
विश्वाश को मजबूत करना है।ये विश्वाश कुदरती पर्यावरण के बिना असंभव
है।जिसकी पहली सीढ़ी है विश्वाशी खेती यानि कुदरती खान,पान और हवा की फसल
काटना है।
हरयाली को नस्ट कर, खेतों को खूब जोत कर, उस में अनेक प्रकार के जहर
डालने से जो फसल हमें मिलती है उस से एक और जहाँ हम बीमार हो जाते हैं
वहीँ हमारा मन भी दूषित हो जाता है।हमारे मन का पर्यावरण हमारे बाहरी
पर्यावरण पर निर्भर करता है।एक कहावत है जैसा खाएं अन्न वैसा होय मन।
एक कहानी है जिस में दो बेटे रहते हैं एक कुदरती खेती करता है दूसरा
गेरकुदरती खेती करता है दोनों जब अपनी भेंट परमेश्वर को देते हैं तो
कुदरती भेंट स्वीकारी जाती है दूसरी नहीं स्वीकारी जाती है इस लिए वह
गुस्सा हो जाता है और अपने भाई को मार देता है। आज हमारे समाज में जो
हिंसा व्याप्त है वह इसी कारण है।
इस लिए परिवर्तन जरूरी है। एक कहावत है की हम बदलेंगे तो जग
बदलेगा।इस लिए विशवास के साथ बदलना है।हमें विश्वाश के पेड़ लगाने है।एक
पेड़ से जब बीज गिरते हैं तो पूरा खेत बदल जाता है। खेती करने के लिए की
जारही जमीन की जुताई सब से बड़ा पाप है।इस को बंद कर भर देने से विश्वाशी
विश्वासी खेती के जनक मस्नोबू फुकुओका जी
खेती शुरू हो जाती है।हमें कुदरती खान,पान मिलने लगता है।
हम बदलने लगते हैं,हमारा मन बदलने लगता है।हम एक सच्चे इंसान बन जाते
हैं,हमारा परिवार भी बदलने लगता है।जिस से हमारे समाज में बदलाव आने लगता
है।
विश्वाशी खेती आत्म निर्भर खेती है।अविश्वाशी खेती जो मशीनो और
रसायनों पर आधारित है वह आयातित तेल की गुलाम है।जो सात समुन्दर पार से
हजारों फीट गहराई से निकलता है जो अब ख़तम हो रहा है।इस से प्रदुषण इस हद
तक फेल गया है की हर दसवे इंसान को कोई न कोई जान लेवा बीमारी हो रही
है। हमारे खून और मां के दूध में जहर घुल गया है।नवजात बच्चों की मौत
सामान्य हो गयी है।70% महिलाएं खून की कमी का शिकार है।हर दसवे घर में
केंसर दस्तक देने लगा है।
बच्चों में हिंसक प्रवत्तियां पनपने लगी हैं वे हत्याएं करने लगे
हैं।पुरुषों में नापुन्सगता पनप रही है। मधुमेह और दिल की बीमारियाँ आम
हो गयी हैं।अविश्वाशी खेती के कारण अब किसान खेती छोड़ने लगे हैं लाखों
किसान घाटे के कारण आत्म हत्या कर चुके है। पंजाब जो अविश्वाशी खेती के
कारण संपन्न दिखता है वहां केंसर महामारी के रूप में फेल रहा है।
हर रोज दो किसान आत्म हत्या कर रहे हैं।
विश्वाशी -खेती जिसे हम नेचरल -फार्मिंग ,कुदरती-खेती ,ऋषि-खेती आदि
के नाम से पुकारते हैं में फसलों के उत्पादन के लिए जमीन को जोता या खोदा
नहीं जाता है। क्योंकि ये मिट्टी जीवित है इसमें आंख से दिखाई नहीं देने
वाले असंख्य सूक्ष्म-जीवाणु ,जीव-जंतु,पेड़-पौधे ,कीड़े-मकोड़े,तथा जानवर
रहते हैं। बखरी बारीक मिट्टी बरसात के साथ मिल कर कीचड में तब्दील
हो जाती है जो बरसात के पानी को जमीन में नहीं जाने देती है पानी तेजी से
बहता है अपने साथ उपजाऊ मिट्टी को भी बहा कर ले जाता है।
इस कारण सूखा-बाढ़ ,भूकंप ,ज्वार -भाटे आदि आते हैं। यही
क्लाईमेट चेंज है जिसके कारण ग्लोबल-वार्मिंग है,बरफ के ग्लेशियर पिघल
रहे हैं।
विश्वाशी-खेती बिना किसी मानव निर्मित खाद और रसायन के की जाती है
जिस से प्रदुषण नहीं फेलता है।जितनी भी वनस्पतियाँ या जीवजन्तु परमेश्वर
ने बनाये हैं सब जरुरी हैं। इन्हें मारने का कोई भी उपाय अमल में नहीं
लाया जाता है।
ऐसा करने से खेतों का उद्धार हो जाता है उस में आशीषों की बारिश होने
लगती है।हमारे खेत अदन की बाड़ी में परिवर्तित होने लगते हैं।कुदरती
हवा,जल,कुदरती आहार ,चारा,ईंधन सब आसानी से उपलब्ध रहता है।
हम पर्या -मित्र समूह के सदस्य हैं,पिछले 27 सालों से विश्वाशी -खेती
कर रहे हैं तथा इस के प्रचार-प्रसार में सलग्न हैं।हमारा उदेश्य
जाती,धर्म,भाषा और छेत्रीय भेद भाव के बिना प्रभु यीशु मसीह के बताये
मार्ग पर विश्वाश करते विश्वाशी खेती करते हुए सच्चा ग्रामीण विकास करना
है। यही हमारी सामाजिक परिवर्तन योजना का लक्ष्य है।
हमारे हर पासवान की ये जिम्मेदारी है की वह प्रभु यीशु की शिक्षा के
माध्यम से लोगों के मन में विश्वाश जाग्रत करे उन्हें अविश्वाशी खेती के
दुश्परिनामो के प्रति जाग्रत कर विश्वाशी खेती के लाभों की जानकारी दे
खुद सीखें और सिखाएं क्यों की उद्धार की कुंजी धरती माँ के हाथों में
है।
शालिनी एवं राजू टाईटस
ग्राम -खोजनपुर जि .होशंगाबाद .म .प्र .
(कुदरती खेती का परिचय)
प्रभु यीशु मसीह का जीवन दर्शन सत्य और अहिंसा पर आधारित है।यही हमारा
विश्वाश है।खेती हमारी जीवन पद्धति है।पहले हम सभी इस पद्धति के सहारे
कुदरत के साथ मिल कर रहते थे।हम कुदरत से मिले हवा,पानी ओर भोजन को सेवन
करते स्वस्थ और खुश रहते थे। इस से हमारे समाज में शांति थी।आपस में
प्रेम था।किन्तु धीरे धीरे हमारी खेती कुदरत से दूर होती गयी। इस कारण
कुदरती हवा,पानी और भोजन की कमी में रहने लगे, आपस का प्रेम नहीं रहा और
शांति भंग हो गयी है।
हम सामजिक लड़ाईयों ,बुराइयों ,बीमारियों में फंस गए हैं। हमें इस से
बाहर निकलना है।इस में परवर्तन लाना है।इस लिए सब से पहले हमें अपने
विश्वाश को मजबूत करना है।ये विश्वाश कुदरती पर्यावरण के बिना असंभव
है।जिसकी पहली सीढ़ी है विश्वाशी खेती यानि कुदरती खान,पान और हवा की फसल
काटना है।
हरयाली को नस्ट कर, खेतों को खूब जोत कर, उस में अनेक प्रकार के जहर
डालने से जो फसल हमें मिलती है उस से एक और जहाँ हम बीमार हो जाते हैं
वहीँ हमारा मन भी दूषित हो जाता है।हमारे मन का पर्यावरण हमारे बाहरी
पर्यावरण पर निर्भर करता है।एक कहावत है जैसा खाएं अन्न वैसा होय मन।
एक कहानी है जिस में दो बेटे रहते हैं एक कुदरती खेती करता है दूसरा
गेरकुदरती खेती करता है दोनों जब अपनी भेंट परमेश्वर को देते हैं तो
कुदरती भेंट स्वीकारी जाती है दूसरी नहीं स्वीकारी जाती है इस लिए वह
गुस्सा हो जाता है और अपने भाई को मार देता है। आज हमारे समाज में जो
हिंसा व्याप्त है वह इसी कारण है।
इस लिए परिवर्तन जरूरी है। एक कहावत है की हम बदलेंगे तो जग
बदलेगा।इस लिए विशवास के साथ बदलना है।हमें विश्वाश के पेड़ लगाने है।एक
पेड़ से जब बीज गिरते हैं तो पूरा खेत बदल जाता है। खेती करने के लिए की
जारही जमीन की जुताई सब से बड़ा पाप है।इस को बंद कर भर देने से विश्वाशी
विश्वासी खेती के जनक मस्नोबू फुकुओका जी
खेती शुरू हो जाती है।हमें कुदरती खान,पान मिलने लगता है।
हम बदलने लगते हैं,हमारा मन बदलने लगता है।हम एक सच्चे इंसान बन जाते
हैं,हमारा परिवार भी बदलने लगता है।जिस से हमारे समाज में बदलाव आने लगता
है।
विश्वाशी खेती आत्म निर्भर खेती है।अविश्वाशी खेती जो मशीनो और
रसायनों पर आधारित है वह आयातित तेल की गुलाम है।जो सात समुन्दर पार से
हजारों फीट गहराई से निकलता है जो अब ख़तम हो रहा है।इस से प्रदुषण इस हद
तक फेल गया है की हर दसवे इंसान को कोई न कोई जान लेवा बीमारी हो रही
है। हमारे खून और मां के दूध में जहर घुल गया है।नवजात बच्चों की मौत
सामान्य हो गयी है।70% महिलाएं खून की कमी का शिकार है।हर दसवे घर में
केंसर दस्तक देने लगा है।
बच्चों में हिंसक प्रवत्तियां पनपने लगी हैं वे हत्याएं करने लगे
हैं।पुरुषों में नापुन्सगता पनप रही है। मधुमेह और दिल की बीमारियाँ आम
हो गयी हैं।अविश्वाशी खेती के कारण अब किसान खेती छोड़ने लगे हैं लाखों
किसान घाटे के कारण आत्म हत्या कर चुके है। पंजाब जो अविश्वाशी खेती के
कारण संपन्न दिखता है वहां केंसर महामारी के रूप में फेल रहा है।
हर रोज दो किसान आत्म हत्या कर रहे हैं।
विश्वाशी -खेती जिसे हम नेचरल -फार्मिंग ,कुदरती-खेती ,ऋषि-खेती आदि
के नाम से पुकारते हैं में फसलों के उत्पादन के लिए जमीन को जोता या खोदा
नहीं जाता है। क्योंकि ये मिट्टी जीवित है इसमें आंख से दिखाई नहीं देने
वाले असंख्य सूक्ष्म-जीवाणु ,जीव-जंतु,पेड़-पौधे ,कीड़े-मकोड़े,तथा जानवर
रहते हैं। बखरी बारीक मिट्टी बरसात के साथ मिल कर कीचड में तब्दील
हो जाती है जो बरसात के पानी को जमीन में नहीं जाने देती है पानी तेजी से
बहता है अपने साथ उपजाऊ मिट्टी को भी बहा कर ले जाता है।
इस कारण सूखा-बाढ़ ,भूकंप ,ज्वार -भाटे आदि आते हैं। यही
क्लाईमेट चेंज है जिसके कारण ग्लोबल-वार्मिंग है,बरफ के ग्लेशियर पिघल
रहे हैं।
विश्वाशी-खेती बिना किसी मानव निर्मित खाद और रसायन के की जाती है
जिस से प्रदुषण नहीं फेलता है।जितनी भी वनस्पतियाँ या जीवजन्तु परमेश्वर
ने बनाये हैं सब जरुरी हैं। इन्हें मारने का कोई भी उपाय अमल में नहीं
लाया जाता है।
ऐसा करने से खेतों का उद्धार हो जाता है उस में आशीषों की बारिश होने
लगती है।हमारे खेत अदन की बाड़ी में परिवर्तित होने लगते हैं।कुदरती
हवा,जल,कुदरती आहार ,चारा,ईंधन सब आसानी से उपलब्ध रहता है।
हम पर्या -मित्र समूह के सदस्य हैं,पिछले 27 सालों से विश्वाशी -खेती
कर रहे हैं तथा इस के प्रचार-प्रसार में सलग्न हैं।हमारा उदेश्य
जाती,धर्म,भाषा और छेत्रीय भेद भाव के बिना प्रभु यीशु मसीह के बताये
मार्ग पर विश्वाश करते विश्वाशी खेती करते हुए सच्चा ग्रामीण विकास करना
है। यही हमारी सामाजिक परिवर्तन योजना का लक्ष्य है।
हमारे हर पासवान की ये जिम्मेदारी है की वह प्रभु यीशु की शिक्षा के
माध्यम से लोगों के मन में विश्वाश जाग्रत करे उन्हें अविश्वाशी खेती के
दुश्परिनामो के प्रति जाग्रत कर विश्वाशी खेती के लाभों की जानकारी दे
खुद सीखें और सिखाएं क्यों की उद्धार की कुंजी धरती माँ के हाथों में
है।
शालिनी एवं राजू टाईटस
ग्राम -खोजनपुर जि .होशंगाबाद .म .प्र .
1 comment:
Excellent write up and best way to live life. Needs trust and patience to implement.
Regards,
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