Wednesday, December 12, 2012

CARIER IN NATURAL FARMING बिना-जुताई की कुदरती खेती कर अपना भविष्य सुरक्षित करें।

बिना-जुताई की कुदरती खेती कर अपना भविष्य सुरक्षित करें।

    आज-कल जब से आधुनिक वैज्ञानिक खेती का चलन शुरू हुआ है खेती-किसानी की हालत बहुत ख़राब हो गयी है। ऐसा खेतों में जुताई करने और रसायनों के इस्तमाल से हुआ है।

वैसे तो बरसों से फसलों को पैदा करने के लिए की जा रही जमीन की जुताई एक पवित्र काम माना जाता रहा है। किन्तु इस से होने वाले नुकसान को नजर-अंदाज करने के कारण जमीने बहुत कमजोर हो जाती हैं,वे मरुस्थल (केंसर के रोगी की तरह ) में परणित हो जाती हैं। मरुस्थल में फसलों को पैदा करने के लिए खाद दवाओं का इस्तमाल बढ़ते क्रम में रहता है,और उत्पादन तथा गुणवत्ता घटते क्रम में रहती है इस कारण किसान को लगातार घाटा होता रहता है।
                                                              कुदरती चावल की फसल 
यही कारण है की किसान खेती छोड़ रहे हैं, कर्जे में डूब रहे हैं,आत्म -हत्या करने लगे हैं। किन्तु जब से बिना-जुताई की खेती का चलन शुरू हुआ है, इस में ब्रेक लगा है। अनेक किसान इस से लाभ कमा रहे है। बिना-जुताई और बिना रसायनों से खेती करने से जमीने पुन: ताकतवर हो जाती हैं। उनमे ताकतवर फसलें पैदा होती हैं किसी भी प्रकार की दवा की जरुरत नहीं रहती है। इस लिए फसलें कुदरती गुणों से भरपूर रहती हैं। इन फसलों को खाने से केंसर जैसा रोग भी ठीक हो जाता है।

कुदरती खेतों में कुदरती खेती करने से एक और लागत 80% घट जाती है  वहीँ उत्पादन हर मोसम बढ़ता जाता है उसकी गुणवत्ता भी बढती जाती है। इस लिए कुदरती उत्पाद बहुत महंगे बिकते हैं। आज -कल हमारे पढ़े-लिखे युवक-युवतियों के आगे रोजगार की गंभीर समस्या है। मंदी के कारण पिछले अनेक सालों से उधोग धंदे पनप नहीं पा रहे हैं। इस लिए बेरोजगारी की गंभीर समस्या उत्पन्न हो गयी है। बड़े से बड़े किसान का बेटा  या बड़ी से बड़ी डिग्री वाला आज चपरासी की नोकरी के लिए तरस रहा है।
किन्तु हम जो पिछले 27 सालों से बिना-जुताई की कुदरती खेती कर रहे हैं का ये दावा है की कोई भी आज आसानी से एक चोथाई एकड़ में इस पद्धति से खेती कर आत्म निर्भर बन सकता है। इस खेती का अविष्कार जापान के कृषि वैज्ञानिक श्री मस्नोबू फुकुओकाजी ने किया है। जब जमीन की जुताई की जाती है तो बारीक बखरी मिट्टी बरसात के पानी के साथ मिलकर कीचड में तब्दील हो जाती है जो बरसात के पानी को जमीन में नहीं जाने देती है। जुताई के कारण चूहों ,चीटे -चीटि ,केंचुओं आदि के घर जो बरसात के पानी को जमीन के भीतर ले जाने का काम करते हैं मिट जाते हैं,जिस से भी बरसात का पानी जमीन में नहीं जाता है।

ऊपरी सतह की मिट्टी असली कुदरती खाद होती है करीब 10 टन प्रति एकड़ कुदरती खाद  हर साल इस प्रकार बह जाती है। खेत भूके और प्यासे रहते हैं। किन्तु जुताई नहीं करने से इस के विपरीत खेत ताकतवर हो जाते हैं। उनमे ताकतवर फसलें पैदा होती हैं। ताकतवर फसलों में बीमारी का कोई प्रकोप नहीं रहता है।

हम मोसम अनुसार फसलों के बीजों का छिडकाव कर देते हैं जरुरत पड़ने पर पानी दे देते हैं। फसलें पकने के बाद उनको काट कर गहाई करने के बाद बचे अवशेषों को वापस खेतों में जहां का तहां वापस डाल देते हैं। बिना-जुताई की कुदरती खेती जिसे बिना-जुताई की जैविक खेती भी कहा जाता है के उत्पाद केंसर जैसी गंभीर बीमारी को ठीक करने के काम आते हैं जो बहुत कम उपलब्ध हैं इस लिए बहुत महंगे बिकते हैं।

                                                          कुदरती गेंहूं की फसल
 इस खेती को करके कोई भी कुदरती आहार पैदा कर उन्हें खाकर ,बेच कर अपना भविष्य सुरक्षित कर सकता है। अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें। ये खेती सामाजिक,पर्यवार्नीय, धार्मिक और वैज्ञानिक सत्य पर आधारित है।
राजू टाइटस
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*Raju Titus.Natural farm.Hoshangabad. M.P. 461001.*
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