Tuesday, August 23, 2016

धरती माता का लहू बह रहा है , खेत और किसान मर रहे हैं। बिना जुताई की कुदरती खेती अपनाये।

धरती माता का लहू बह रहा है , खेत और किसान मर रहे हैं।
बिना जुताई की कुदरती खेती अपनाये। 


ज कल बरसात के दिन हैं सभी जगहों पर नदी नालो डबरों में मटमैला पानी नजर आ रहा है। पानी जो बरसता है  बिलकुल साफ़ रहता पर यह मटमैला क्यों हो जाता है ? यह धरती माता के लहू के कारण हो जाता है जिसे हम क्ले (कीचड ) कहते हैं। यह क्ले असली "कुदरती खाद "है। जब हम इस क्ले  का सूख्स्म अध्यन करते हैं तो हमे पता चलता है की इस में असंख्य जमीन को उर्वरकता  प्रदान करने वाले सूक्ष्म जीवाणु है। आज तक किसी वैज्ञानिक ने क्ले के एक कण में कितने और कौन कौन से जीवाणु है का पता नहीं लगा पाया है।
 जापान के जग प्रसिद्ध सूक्ष्म जीवाणु  वैज्ञानिक और कुदरती खेती के किसान  स्व. मस्नोबू फुकुओकाजी ने इसके महत्व को जान कर "बिना जुताई की कुदरती खेती "का आविष्कार किया  है। जिसके कारण जुताई आधारित आधुनिक और देशी खेती करने की तकनीकें हमारे पर्यावरण के लिए बहुत घातक सिद्ध हो गयी हैं।
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धरती माता का लहू बह रहा है। 
बिना -जुताई की कुदरती खेती जिसे हम भारत में पिछले ३० सालो से कर रहे हैं।  हम अपने खेतों में फसलों को उगाने के लिए अनेक बीजों को क्ले में मिलाकर करीब आधे इंच की व्यास की गोलियां बना लेते हैं। जिन्हें एक वर्ग मीटर में 10 गोलियों के हिसाब से बिखरा देते हैं।

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सीड बॉल से ऊगता नन्हा पौधा

इस प्रकार धरती माता का लहू बहना  रुक जाता है और खेत ताकतवर और पानीदार हो जाते है जिस से बिना खर्च और महनत  के बम्पर  फसल मिलती है।
क्ले से बनी सीड बॉल्स 

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